चमकते योद्धाओं के, तलवार, त्रिशूल,

 चमकते योद्धाओं के, तलवार, त्रिशूल,

गूंजी रणभूमि में, जयकार, उसूल। 

शिवा की छाया में, उठा स्वाभिमान,

हर क्रांतिकारी बना, माँ का सम्मान। 



सीने में ज्वाला, हाथों में शक्ति,

रखवाले हैं हम, देश की भक्ति। 

कफ़न बाँध निकले, ना कोई डर,

मातृभूमि के लिए, चढ़े वीर पथ। 



राणा की हुंकार, हल्दीघाटी का शोर,

लहू से लिखा गया, गौरवमयी भोर।

बंदा बैरागी की, ज्वाला सी पुकार,

फाँसी पे हँसकर बोले, वंदे मातरम्। 



त्रिशूलों की चमक, अब भी बताती,

आज़ादी उपहार नहीं, थी वो बलिदानी। 

जो आज खड़े हैं, वो देश के योद्धा,

हर साँस में गूंजे, मातृभूमि के सुर। 



हम युवा हैं, पर विरासत से गहरे,

भूलेंगे ना वीरों की यादें स्वर्ण रेखाएं। 

हर पग पर खून, वतन के लिए,

तलवार, त्रिशूल, सुरक्षा के लिए। 



सीने में ज्वाला, हाथों में शक्ति,

रखवाले हैं हम, देश की भक्ति। 

चमकते योद्धाओं के, तलवार, त्रिशूल,

अब भी गूंजे, योद्धाओं के उसूल। 


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अब भी नहीं जागे, तो इतिहास माफ़ नहीं करेगा

"अब भी नहीं जागे, तो इतिहास माफ़ नहीं करेगा!"

मानवता के बिना, न धर्म बचता है, न मजहब, न पूजा-पाठ।

जिस दिल में दया नहीं, वहाँ ईश्वर का वास नहीं।


आज आप जिस देश में आज़ाद हैं,

वो शहीदों के बलिदान से है,

किसी नेता के झूठे वादों से नहीं।


तो फिर देश को तोड़ने वालों का साथ क्यों देते हो?

गुमराह करने वालों की बातें कब तक सुनोगे?

अपनी बुद्धि से क्यों नहीं सोचते?


इंसान चाँद पर पहुँच गया,

और तुम आज भी खून बहाकर जन्नत की तलाश में हो?

क्या यही तुम्हारी समझ है?


सोचो…!

क्या तुम चाहते हो कि कोई कहे –

"यह उस देशद्रोही का बेटा है..."

क्या तुम अपने माँ-बाप का नाम बदनाम करना चाहते हो?

या उनका सिर गर्व से ऊँचा करना चाहते हो?


माँ-बाप का सम्मान बढ़ाना हर संतान का धर्म है।

देश का सम्मान बढ़ाना हर नागरिक का कर्तव्य है।


अब समय है उन नेताओं, मुल्लाओं, पाखंडी बाबाओं और भड़काऊ भाषण देने वालों से सावधान होने का

जो धर्म, जाति और राजनीति के नाम पर हमें आपस में लड़ाते हैं।


🌍 जाति और मजहब से पहले – देश और मानवता है!

देश को मजबूत बनाना है तो हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देना होगा।

समानता का कानून (UCC) ही भारत को सशक्त बनाएगा।


जो नेता समाज को बाँटते हैं,

जो सत्य नहीं, नफरत का प्रचार करते हैं –

उन्हें एक भी वोट मत दो।


देश तोड़ने वालों का समर्थन सबसे बड़ा पाप है।


🛑 अब भारत रुकेगा नहीं – क्योंकि अब जाग चुका है युवा!

✅ राजनीति के भेड़ियों से सावधान रहो।

✅ समानता और मानवता के लिए आवाज़ उठाओ।

✅ देशभक्त बनो, गद्दार नहीं।


🙏 अब भी वक़्त है –

मानवता को बचाओ,

संस्कारों को फिर से जियो,

और भारत माता की जय के साथ जीना सीखो।


✊ आपका शुभचिंतक – एक जागरूक, राष्ट्रप्रेमी नागरिक

जय हिंद! वंदे मातरम्! 🇮🇳

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🌺 "फैशन नहीं, संस्कार ही असली पहचान है!"

 

🌺 "फैशन नहीं, संस्कार ही असली पहचान है!"

आज के इस आधुनिक युग में,
जहाँ तकनीक ने तरक्की की है,
वहीं फैशन की आड़ में शर्म और मर्यादा को
छोड़ देना एक नया चलन बन गया है।

हर उम्र की महिलाएँ,
अक्सर तंग, कटे-फटे कपड़ों में,
बिना आँचल या चूनरी के,
अपने शरीर की हर रेखा को
सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करती हुई नज़र आती हैं।

प्रश्न उठता है –
इसका उद्देश्य क्या है?
कौन-सी आज़ादी है जो शरीर के प्रदर्शन से जुड़ी है?

भारतीय संस्कृति ने कभी स्त्री को दबा कर नहीं रखा,
बल्कि उसे 'माँ', 'बहन', 'लक्ष्मी' और 'शक्ति' के रूप में पूजा है।
लेकिन जब वही स्त्री शालीनता की जगह अश्लीलता चुनती है,
तो समाज में कामुकता, अपराध और अव्यवस्था को जन्म देती है।

इतिहास गवाह है –
जब-जब सदाचार की सीमा टूटी है,
तब-तब कामुक भेड़ियों ने इंसानियत को नोच डाला है।
किसी को फ्रिज में बंद किया गया,
किसी को जला दिया गया,
किसी को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया।

👉 क्या यह सब उस स्त्री का दोष था?
नहीं!
लेकिन क्या हम यह नकार सकते हैं कि
कुछ हद तक उत्तेजक कपड़े, उकसावे और नजरों का कारण बनते हैं?


🚨 सिर्फ पुरुष ही नहीं – स्त्रियों को भी आत्ममंथन करना होगा।

शादी से पहले शील और मर्यादा में रहना,
भारतीय परंपरा का मूल रहा है।

यह पाबंदी नहीं, सुरक्षा है –
मान, सम्मान और भविष्य की रक्षा है।

बिना आँचल या मर्यादा के
अगर कोई स्त्री अपने शरीर को ‘प्रदर्शन’ बनाती है,
तो वह अनजाने में ही कई कमजोर मानसिकता वाले पुरुषों को भटकाती है।
फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री –
दोष दोनों का है।

चरित्रहीनता स्त्री या पुरुष में नहीं –
चरित्र में होती है।

शादी से पहले "इच्छा",
शादी के बाद "असंतोष",
क्या यही आज़ादी है?

भगवान ने जो दिया,
उसमें संतुष्ट रहना ही सच्चा जीवन है।

पर जब हम वासनाओं के पीछे भागते हैं,
तो सिर्फ खुद नहीं,
पूरा परिवार, समाज और पीढ़ियाँ तबाह हो जाती हैं।

सुपर्णखा ने अपनी इच्छाओं में मर्यादा लांघी –
नाक कटी और कुटुंब खत्म हुआ।

विश्वामित्र जैसे तपस्वी भी मोहिनी रूप में बहके –
तो आम पुरुष कौन सा अपवाद है?


🌼 अब समय है – चरित्र और संस्कारों की ओर लौटने का।

  • सशक्त बनो, लेकिन शालीन भी।

  • आज़ाद बनो, पर मर्यादा के भीतर।

  • फैशन ऐसा हो जो आत्मसम्मान बढ़ाए,
    ना कि दूसरों की नीयत बिगाड़े।

स्त्री और पुरुष दोनों की ज़िम्मेदारी है –
कि वो चरित्रवान बनें,
समाज को बिगाड़ें नहीं।

👉 आधुनिकता में डूबकर संस्कृति को मत भूलो।
क्योंकि देश सभ्यता से बनता है, केवल विकास से नहीं।


🙏 आपका शुभचिंतक – एक सजग, संवेदनशील और संस्कारित नागरिक।

जय हिंद! 🚩

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मराठा, माटी के लाल हैं हम

 जय भवानी, जय शिवाजी!

मराठा, माटी के लाल हैं हम,

धर्म-रक्षक, वीर विशाल हैं हम।



एक तलवार थी, पर ममता थी, 

हर वार में भी करुणा थी। 

शिवाजी की छाया में,

धरती ने जन्मा राणा था। 



धरती ने जन्मा राणा था।


गणिमी कावा, बुद्धि के बाण,

दुश्मन कांपे, नाम से जान। 

गांव-गांव में शौर्य पला, 

हर दिल में था भगवा जला। 



Maratha Sanga Yoddha है,

ना झुकता, ना रुकता है। 

देश के लिए जीता है, 

धर्म पर ही मरता है। 



तना था सीना, आंखों में आग, 

मुग़ल भी कांपे, देखे जब भाग। 

तानाजी बोला – "गढ़ आया है", 

पर शेर गया, बलिदान लाया है। 


बाजी प्रभु, एक सेना पूरा, 

घाटी में लिखा विजय का सूरा। 

रानी ताराबाई, चिंगारी बनी, 

हर नारी भी रण में रानी बनी। 



शिव की जयकार, भवानी का नाम,

इनके बिना अधूरा है हिंदुस्तान। 



संस्कारों का कवच पहना, 

मर्यादा में ही प्रेम बसा। 


मर्यादा में ही प्रेम पहना। 


ना तलवार भूले, ना ईमान भूले,

वीर, धर्म पर ही मरता है। 

आज भी जो बोले सच्चाई से, 

वो चलता है उसी परछाई से। 


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Pure Love Song Lyrics

 इश्क़ हो, सच्चे मन

प्यार हो, बिना दिखावा

मोहब्बत में हो, आदर

न हो, कोई बहकावा


मर्यादा जब, टूट जाती

चरित्रहीनता, पास आती

इश्क़ फिर, बदनाम होता

प्यार भी, बर्बाद हो जाता


चरित्र को, पहले समझो

फिर दिल से, प्यार करो

मर्यादा में रहकर, चाहो

सच्चे रिश्ते, तैयार करो


प्यार वो, जो सम्मान दे

मोहब्बत, जो संस्कार दे

इश्क़ वो, जो संयम रखे

ना कोई, ग़लत राह पकड़े


सच्चा प्रेम, शांत होता

शब्द नहीं, भाव बोलते

चरित्रवान हो, दोनों दिल

तब रिश्ते, उम्र भर चलते


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Ekta ka Tasan, Yuva Dilon ki Awaaz

 जाति ना देख,

धर्म ना पूछ।

भारत है माँ,

सब उसकी संतान।




जाति छोड़,

मजहब छोड़,

देश से,

नाता जोड़!


हाथ में हाथ,

एक साथ बात।

प्यार ही धर्म,

भारत ही कर्म।



कौन क्या था?

पूछ मत आज।

दिल है साफ़,

देश है पास।


रंग मत देख,

दिल को चेक।

सबका खून,

लाल ही एक।



मंदिर हो या,

मस्जिद कहो बस।

गुरुद्वारा हो,

या चर्च खास।


ईश्वर एक,

नाम अनेक।

भारत माँ,

सबका टेक।



बांटो मत अब,

जोड़ो हर जन।

भारत बोले,

"हम सब एक।"



जाति छोड़,

मजहब छोड़,

देश से,

नाता जोड़!


रग-रग बोले,

"वन्दे मातरम्!"

एकता बोले,

"जय हिन्द वतन!"



नाम नहीं मायने,

कर्म ही पहचान।

देश पुकारे,

आओ अब जानो।


“भारत माता की जय” 

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जिसके दिल में दर्द न हो, वो तो बस बेरहम है

 जिसके दिल में दर्द न हो, वो तो बस बेरहम है,

जो किसी का ग़म समझे, बस वही इंसान है,

बाकी तो सब चेहरों पे नक़ाब पहने फिरते हैं,

मुस्कान की आड़ में, खंजर लिए चलते हैं,



सड़क पे कोई तड़पता है, तो हँसी आती है,

कोई मजबूर काम करने आता, इनको गाली आता है,

जिनके पास रहम नहीं है, वो सबसे ज़्यादा बेरहम हैं,

जो जीवों का भी दर्द समझे, वो ही तो आज इंसान है,


गोश्त के टुकड़ों में अब जानवर नहीं दिखते,

बस "डिश" के नाम पे, लाशों को बिकते देखते,

क्या पेट भरने को ज़रूरी है जान लेना,

या ज़िंदा रहना अब मतलब, बेरहम हैवान होना है,



जिसके दिल में दर्द न हो, वो तो बस बेरहम है,

जो किसी का ग़म समझे, बस वही इंसान है,

किसी की चीख़ पे भी जो चुप रह जाए,

वो चाहे ज़िंदा हो… मगर दिल से मरा इंसान है,



जंगल से आया शिकार कम था क्या,

अब तो आदमी ही आदमी को निगल रहा है,

खून की गंध में आदत बस गई है,

रहम, दया, मोहब्बत – ये बातें किताबों में सिमट गई हैं,


मासूम जानवर, जो बोले भी नहीं सकते,

उनकी हत्या पे जश्न? ये कैसा इंसान बन बैठे,

कितनी भूख है तुम्हें, जो मासूमों की जान भी कम पड़ती है,

सच कहो… क्या अब भी आत्मा तुम्हारी कभी तड़पती है,


(हुक दोहराव)

जिसके दिल में दर्द न हो, वो तो बस बेरहम है,

जो किसी का ग़म समझे, बस वही इंसान है,

जिसे देखकर दूसरों का दर्द जाग जाए,

ऐसा चेहरा अब इस भीड़ में कहाँ पाए,



भले ही मंदिर बनाओ, या मस्जिद सजाओ,

जब दिल पत्थर का हो, तो किस खुदा को पुकारो,

धर्म का मतलब है – दया सब पे बराबर,

ना की पूजा के नाम पे निर्दोष की क़ुर्बानी हर घर,


आदमी अब नंबर बन गया है, नाम नहीं,

हर रिश्ता अब सौदे का सामान बन गया है,

लेकिन आज भी कोई हो, जो आँसू देख के रुक जाए,

तो यक़ीन करो, वो अब भी इंसान कहलाए,



जिसके दिल में दर्द न हो, वो तो बस बेरहम है,

जो किसी का ग़म समझे, बस वही इंसान है,

जब तक ये दुनिया ऐसे दिलवालों से भरी रहे,

तब तक उम्मीद ज़िंदा है, तिनके से भी भारी रहे,

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ये बलिदान की धरती है, ये हिन्दुस्तान की धरती है

 मंगल पांडे ने पहला शंखनाद किया,  

फाँसी पे चढ़कर विद्रोह का बिगुल बजा दिया।  

तात्या टोपे ने रण में ज्वाला जलाई,  

धरती माँ के लिए हँसते-हँसते जान गँवाई।  


रानी लक्ष्मीबाई लड़ी दुश्मन की सेना से,  

शेरनी बन भिड़ी अंग्रेजी सदी के घेरे से।  

आज भी गूंजे झाँसी की तलवार,  

"मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी" का अमर उद्घोष अपार।


ये मिट्टी शहीदों की पहचान है,  

हर कण-कण में उनका बलिदान है।  

जिनका नाम नहीं, वो भी महान हैं,  

हम सबका शीश उनके चरणों में नत है।  

**ये बलिदान की धरती है,  

ये हिन्दुस्तान की धरती है।** 


भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की जोड़ी,  

फाँसी पे हँसते गए, वीरता में ना कोई तोड़ी।  

"इंकलाब ज़िंदाबाद" गूंजा हर गली,  

उनके लहू से ही तो आज़ादी की मशाल जली।  


चंद्रशेखर आज़ाद ने खुद को गोली मारी,  

पर अंग्रेज़ों के हाथ कभी न आए हमारी।  

नेताजी सुभाषचंद्र कहाँ खो गए,  

"तुम मुझे खून दो…" कहकर अमर हो गए।  


ये मिट्टी शहीदों की पहचान है,  

हर कण-कण में उनका बलिदान है।  

जिनका नाम नहीं, वो भी महान हैं,  

हम सबका शीश उनके चरणों में नत है।  

**ये बलिदान की धरती है,  

ये हिन्दुस्तान की धरती है।** 


भगवती चरण वोहरा बम के संग खो गए,  

बिस्मिल, अशफ़ाक, रोशन सिंह भी फाँसी पे सो गए।  

हिंदू-मुस्लिम साथ लड़े जब-जब,  

देश रहा सर्वोपरि, बाकी सब रहा निष्प्रभ।  


लाला लाजपत राय ने लाठियाँ झेली,  

पर उनकी आत्मा कभी न डगमगायी, रही अकेली।  

वीर सावरकर ने कालापानी सहा,  

पर वंदेमातरम् से मन उनका सदा रहा गरमा।  


चाफेकर बंधु, तीनों की कथा निराली,  

पुणे की धरती आज भी गाता उनकी लाली।  

मास्टर सूर्यसेन का साहस अद्वितीय,  

उनका बलिदान भी अमर और पावन पवित्रतम था विशेष।  


कितने नाम दब गए इतिहास की धूल में,  

पर वो जिए हमारे रक्त के मूल में।  

हर गाँव, हर कोने में बसी है कहानी,  

जिसने दी जान, पर ना पाई पहचानी।  


तो सुनो, ऐ भारत के लालों,  

ये आज़ादी किसी की मेहरबानी नहीं।  

ये खून से लिखी अमर कहानी है,  

वीरों की गाथा, त्याग की निशानी है।  


जो भूले उनको, वो खुद को खो देगा,  

जो सीखे उनसे, वही भारत संजोएगा।  

**ये बलिदान की धरती है,  

ये हिन्दुस्तान की धरती है।** 


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ये झूठे यार हैं, ये झूठा प्यार है

 जहाँ मोहब्बत अब समझौता बन गई है,

और रिश्ते, हवस के सौदे…

वहाँ आवाज़ उठानी ज़रूरी है,

क्योंकि ये आग, अब हर घर तक पहुँच गई है।


ये झूठे यार हैं, ये झूठा प्यार है,

चौड़े में मरवा दे, ये झूंठे नर, नार हैं।

चेहरे पे मुस्कान, अंदर से ख़ंजर,

हर रिश्ते की लाश पे होता इनका मंज़र।


जिस थाली में खाएं, उसी में छेद करें,

दोस्त की बहन पे भी नज़र डाले, ऐसे फरेब करें।

मुँह पे मीठी बातें, पीठ पीछे वार,

यारी अब सिर्फ़ दिखावा, अंदर है हवसी यार।


जो साथ थे बचपन से, घर में आना-जाना रहा,

आज खून की होली में, उसी का हाथ रहा।

अब यारी नहीं रही, भरोसे वाली बात,

दोस्त ही मार गया दोस्त को, ये कैसा घात?


दिल में झाँक ज़रा, इंसानियत की कुछ शर्म तो बचा,

ये तेरी हवस की भूंख, सब कुछ देगी जला।


सावित्री जैसी नारी, अब दुर्लभ है,

कृष्ण-सुदामा सी दोस्ती, अब मिलती नहीं है।

हीर-राँझा का प्यार, अब कहानी बना,

अब, जिस्मानी और दौलत को तेरा यार बना।


पत्नी ने पति के, और अपने यार से लड़ाया लाड,

दोस्ती की हाँडी में, पकाया बेशर्मी का पाप।

सोलह आने सच कहूँ, अख़बारों में छपता है,

हर मोहल्ले में, अब यही तमाशा चलता है।


दिल में नाग हैं, फुफकारते फरेब,

हर मौके पे डसें, ना छूटा कोई ऐब।


अब रिश्तों में नहीं बचा कोई विश्वास,

पति या पत्नी – दोनों ही क़ातिल बनते जा रहे।

बेवफाई के नाम पर, उठती तलवार,

कभी पत्नी मरे, कभी पति का संहार।


मोबाइल की चैट में, इश्क़ का जाल,

रातों को भागती बीवियाँ, मुँह काला कर।

मर्डर, अफेयर, और धोखे की भरमार,

बच्चों को छोड़कर, चलती हवस की सरकार।


ये प्यार नहीं, ये पाप का खेल है,

हर खबर चीख रही — मोहब्बत अब जेल है।


"रिश्ते निभाने के लिए दिल चाहिए,

चालाक दिमाग नहीं।

मोहब्बत अगर सच्ची न हो,

तो वो सबसे बड़ा जुर्म है।

अब भी वक्त है —

रिश्तों को चरित्रवान बनकर संभाल लो,

वरना ये आग, सब कुछ राख कर देगी…"

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कुर्सीधारी नहीं, न्याय का प्रहरी चाहिए

 कुर्सीधारी नहीं, न्याय का प्रहरी चाहिए


👁️ जो खुद अंधकार में डूबा है, वो रौशनी क्या फैलाएगा?,

👊 जो चरित्रहीन है, वो नेतृत्व कैसे निभाएगा?,

🕯️ जिसके शब्दों में न हो मर्यादा की लौ,

उसे कुर्सी देना – समाज को अंधेरे में ढकेलना है।


💰 जो भ्रष्ट है, वो तंत्र को दीमक की तरह चाट जाएगा,

राष्ट्र का नहीं, बस अपने स्वार्थ का झंडा उठाएगा।

📉 जो रोज़ सामाजिक मूल्यों को कुचले,

उसके शासन में तो न्याय भी कांपे, सत्य भी उखड़े।


🔥 जिसके इरादों में भरा हो विष और विभाजन,

समझो लोकतंत्र बना दिया गया उसका निजी भवन।

🗣️ अहंकार जिसमें नीति बन जाए,

वो कुर्सीधारी ही – तो साज़िश का साया है।


✊ नारी का सम्मान – समाज की असली पहचान!,

⚖️ और कुर्सी धारी वही, जिसका हो सच्चा ईमान!,

📢 ना हो भ्रष्ट, ना हो राष्ट्र द्रोही विचारों का व्यापारी,

🛑 वो चाहिए जो बोले – "जनता ही सर्वोच्च अधिकारी!"


📛 जो इंसानियत को रोज़ करे कलंकित,

क्या वो संविधान के मूल्य करेगा प्रतिष्ठित?,

👎 जिसका अतीत हो अपराधों की छाया,

उसे कुर्सी देकर – क्यों बढ़ाया अपराध का साया?


🌍 अगर हर गली, हर बेटी अब भी डरी है,

तो सोचो कुर्सी धारी कितना गिरा हुआ है।

👨‍⚖️ हमें सुरक्षा चाहिए – भ्रष्ट कुर्सीधारी बिल्कुल नहीं,

कुर्सी धारी वो ही हो, जिसमें मानवता भी हो कहीं।


✊ नारी का सम्मान – है राष्ट्र की असली जान!,

⚖️ वही, जिसकी नीयत में हो राष्ट्र भक्ति!,

🎯 पद उसे दो – जो करे सुरक्षा, सेवा, और सच्चाई की बात,

🔥 ना कि वो, जो मिटा दे इंसानियत की बात।


🔍 क्या कुर्सी इतनी सस्ती हो गई?,

कि झूठ बोले, और कुर्सी से चिपका रहे वहीं?

🕊️ अब ज़रूरत है – एक नई चेतना की अलख समान,

जहां सेवा हो राजनीति, और नारी को मिले मान, सम्मान।


✊ ये देश तभी बदलेगा – जब कुर्सी होगी ईमान की मिसाल,

🎤 चाहिए ऐसा कुर्सी धारी – जो हो ईमान का रखवाल।

🌸 नारी की आंखों में न हो आँसू, बस आत्म विश्वास की बात,

🛡️ तभी कहलाएगा भारत महान – जब हर बहन हो सुरक्षित, दिन और रात।


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