ये झूठे यार हैं, ये झूठा प्यार है

 जहाँ मोहब्बत अब समझौता बन गई है,

और रिश्ते, हवस के सौदे…

वहाँ आवाज़ उठानी ज़रूरी है,

क्योंकि ये आग, अब हर घर तक पहुँच गई है।


ये झूठे यार हैं, ये झूठा प्यार है,

चौड़े में मरवा दे, ये झूंठे नर, नार हैं।

चेहरे पे मुस्कान, अंदर से ख़ंजर,

हर रिश्ते की लाश पे होता इनका मंज़र।


जिस थाली में खाएं, उसी में छेद करें,

दोस्त की बहन पे भी नज़र डाले, ऐसे फरेब करें।

मुँह पे मीठी बातें, पीठ पीछे वार,

यारी अब सिर्फ़ दिखावा, अंदर है हवसी यार।


जो साथ थे बचपन से, घर में आना-जाना रहा,

आज खून की होली में, उसी का हाथ रहा।

अब यारी नहीं रही, भरोसे वाली बात,

दोस्त ही मार गया दोस्त को, ये कैसा घात?


दिल में झाँक ज़रा, इंसानियत की कुछ शर्म तो बचा,

ये तेरी हवस की भूंख, सब कुछ देगी जला।


सावित्री जैसी नारी, अब दुर्लभ है,

कृष्ण-सुदामा सी दोस्ती, अब मिलती नहीं है।

हीर-राँझा का प्यार, अब कहानी बना,

अब, जिस्मानी और दौलत को तेरा यार बना।


पत्नी ने पति के, और अपने यार से लड़ाया लाड,

दोस्ती की हाँडी में, पकाया बेशर्मी का पाप।

सोलह आने सच कहूँ, अख़बारों में छपता है,

हर मोहल्ले में, अब यही तमाशा चलता है।


दिल में नाग हैं, फुफकारते फरेब,

हर मौके पे डसें, ना छूटा कोई ऐब।


अब रिश्तों में नहीं बचा कोई विश्वास,

पति या पत्नी – दोनों ही क़ातिल बनते जा रहे।

बेवफाई के नाम पर, उठती तलवार,

कभी पत्नी मरे, कभी पति का संहार।


मोबाइल की चैट में, इश्क़ का जाल,

रातों को भागती बीवियाँ, मुँह काला कर।

मर्डर, अफेयर, और धोखे की भरमार,

बच्चों को छोड़कर, चलती हवस की सरकार।


ये प्यार नहीं, ये पाप का खेल है,

हर खबर चीख रही — मोहब्बत अब जेल है।


"रिश्ते निभाने के लिए दिल चाहिए,

चालाक दिमाग नहीं।

मोहब्बत अगर सच्ची न हो,

तो वो सबसे बड़ा जुर्म है।

अब भी वक्त है —

रिश्तों को चरित्रवान बनकर संभाल लो,

वरना ये आग, सब कुछ राख कर देगी…"

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