विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
धूल मिट्टी से नाक में एलर्जी हो जाती है। उपरोक्त परेशानियों में निम्नलिखित नुस्खे आजमाएं -
सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीकर और मिश्री सभी द्रव्यों का चूर्ण 10-10 ग्राम, बीज निकाला हुआ मुनक्का 50 ग्राम, गोदंती हरताल भस्म 10 ग्राम तथा तुलसी के दस पत्ते सभी को मिलाकर खूब घोंटकर पीस लें और 3-3 रत्ती की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें।
2 गोली सुबह व 2 गोली शाम को गर्म पानी के साथ तीन माह तक सेवन करें। ठंडे पदार्थ, बर्फ, दही, ठंडे पेय से परहेज करें। नाक की एलर्जी दूर हो जाएगी।
तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है। लहसुन : 200 ग्राम लहसुन पीसकर उसमें 60 मिली शहद मिलाकर एक साफ-सुथरी शीशी में भरकर ढक्कन लगाएं और किसी भी अनाज में 31 दिन के लिए रख दें। 31 दिनों के बाद 10 ग्राम की मात्रा में 40 दिनों तक इसको लें। इससे यौन शक्ति बढ़ती है। जायफल : एक ग्राम जायफल का चूर्ण प्रातः ताजे जल के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही यौन दुर्बलता दूर होती है। दालचीनी : दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है और यौन दुर्बलता दूर होती है। खजूर : शीतकाल में सुबह दो-तीन खजूर को घी में भूनकर नियमित खाएं, ऊपर से इलायची- शक्कर डालकर उबला हुआ दूध पीजिए। यह उत्तम यौन शक्तिवर्धक है।
सौंफ में विटामिन सी की जबर्दस्त मात्रा है और इसमें आवश्यक खनिज भी हैं जैसे कैल्शियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन और पोटेशियम।
पेट की बीमारियों के लिए यह बहुत प्रभावी दवा है जैसे मरोड़, दर्द और गैस्ट्रिक डिस्ऑर्डर के लिए।
दिलचस्प बात यह है कि सौंफ आपकी याददाश्त बढ़ाती है, निगाह तेज करती है, खांसी भगाती है और कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रण में रखती है।
अगर आप चाहते हैं कि आपका कोलेस्ट्रॉल स्तर न बढ़े तो खाने के लगभग 30 मिनट बाद एक चम्मच सौंफ खा लें।
सूखी, रोस्टेड और कच्ची सौंफ को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे खाने के बाद खाएं। इससे पाचनक्रिया बेहतर रहेगी और आप हल्का महसूस करेंगे।
अगर आप एक चम्मच सौंफ 2 कप पानी में उबाल लें और इस मिश्रण को दिन में दो-तीन बार लें तो आपकी आंतें अच्छा महसूस करेंगी और खांसी भी लापता हो जाएगी।
सौंफ की पत्तियों में खांसी संबंधी परेशानियां जैसे दमा व ब्रोन्काइटिस को दूर रखने की भी क्षमता होती है।
सौंफ को अंजीर के साथ खाएं और खांसी व ब्रोन्काइटिस को दूर भगाएं। मासिक चक्र को नियमित बनाने के लिए सौंफ को गुड़ के साथ खाएं। चमत्कारी सौंफ के सेहत के लिए फायदे कुछ इस प्रकार हैं-
भोजन के बाद रोजाना 30 मिनट बाद सौंफ लेने से कॉलेस्ट्रोल काबू में रहता है।
5-6 ग्राम सौंफ लेने से लीवर और आंखों की ज्योति ठीक रहती है। अपच संबंधी विकारों में सौंफ बेहद उपयोगी है। बिना तेल के तवे पर तली हुई सौंफ और बिना तली सौंफ के मिक्चर से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है।
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दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है।
अस्थमा और खांसी के उपचार में सौंफ सहायक है।
कफ और खांसी के इलाज के लिए सौंफ खाना उपयोगी है।
गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है।
यह शिशुओं के पेट और उनके पेट के अफारे को दूर करने में बहुत उपयोगी है।
एक चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबलने दें और 20 मिनट तक इसे ठंडा होने दें। इससे शिशु के कॉलिक का उपचार होने में मदद मिलती है।
शिशु को एक या दो चम्मच से ज्यादा यह घोल नहीं देना चाहिए।
सौंफ के पावडर को शकर के साथ बराबर मिलाकर लेने से हाथों और पैरों की जलन दूर होती है। भोजन के बाद 10 ग्राम सौंफ लेनी चाहिए।
पिसी हुई सूखी मेहंदी एक कप, कॉफी पावडर पिसा हुआ 1 चम्मच, दही 1 चम्मच, नीबू का रस 1 चम्मच, पिसा कत्था 1 चम्मच, ब्राह्मी बूटी का चूर्ण 1 चम्मच, आंवला चूर्ण 1 चम्मच और सूखे पोदीने का चूर्ण 1 चम्मच। इतनी मात्रा एक बार प्रयोग करने की है। इसे एक सप्ताह में एक बार या दो सप्ताह में एक बार अवकाश के दिन प्रयोग करना चाहिए।
सभी सामग्री पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर भिगो दें और दो घंटे तक रखा रहने दें। पानी इतना लें कि लेप गाढ़ा रहे, ताकि बालों में लगा रह सके। यदि बालों में रंग न लाना हो तो इस नुस्खे से कॉफी और कत्था हटा दें। पानी में दोघंटे तक गलाने के बाद इस लेप को सिर के बालों में खूब अच्छी तरह, जड़ों तक लगाएं और घंटे भर तक सूखने दें।
इसके बाद बालों को पानी से धो डालें। बालों को धोने के लिए किसी भी प्रकार के साबुन का प्रयोग न करके, खेत या बाग की साफ मिट्टी, जो कि गहराई से ली गई हो, पानी में गलाकर, कपड़े से पानी छानकर, इस पानी से बालों को धोना चाहिए। मिट्टी के पानी से बाल धोने पर एक-एक बाल खिल जाता है जैसे शैम्पू से धोए हों।
आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
शादी के बाद पहली बार अरुणा ने अपने पति विनय को एक स्वेटर गिफ्ट किया। उसकी पैकिंग भी खुद अरुणा ने ही की, जिसे देखकर विनय काफी प्रभावित हुआ। उसने तुरंत अरुणा की रचनात्मकता की तारीफ कर डाली। अभी इस तारीफ से अरुणा के होठों पर मुस्कान आई ही थी कि विनय ने गिफ्ट पैक खोलकर उसमें रखा शर्ट देखा।
आव देखा न ताव, उसने गुस्से से अरुणा से कहा 'तुम जानती ही हो कि मैं ब्रांडेड कपड़े पहनता हूँ। यह सस्ती शर्ट कहाँ से उठाकर ले आई हो। तुम्हें कपड़े खरीदने का सेंस नहीं है तो मुझसे पूछा होता।' पहली बार बहुत भावनाओं के साथ दिया गया अरुणा का वह गिफ्ट बेरहमी से ठुकरा दिया गया। यह बात अरुणा आज शादी के दो साल बाद भी नहीं भूलती।
शब्दों के बाण किसी को भी भीतर तक लहूलुहान कर देते हैं। शब्दों की ताकत से हममें से हर कोई वाकिफ है। शब्द हमारे संबंधों को निर्धारित करते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही यह कथा प्रचलित है कि अभिमन्यु ने अपने पिता अर्जुन से गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख ली थी। आज चिकित्सक भी इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि गर्भ में भी बच्चा शब्दों के प्रभाव से अछूता नहीं रहता।
बोले गए शब्दों के घाव तलवार से भी गंभीर होते हैं। जीवन की जटिल राहों में शब्द धूप-छाँव दोनों का काम करते हैं। इसलिए सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल करके हम अपनी ही नहीं, दूसरों की भी राहों को आसान बना सकते हैं। अक्सर लोग अपनी स्पष्टता और साफगोई को अपने व्यक्तित्व की एक बड़ी खासियत मानते हैं।
यह अच्छी बात है। लेकिन सीधे व सपाट शब्दों में अगर किसी को उसकी गलती बताई जाए तो वह गलती करने वाले आदमी को बदला लेने के लिए उकसाती है। ऐसे में ऐसी परिस्थितियों से निपटने का एक तरीका है कि उसे उसकी कुछ खासियतों के साथ गलती को इस ढंग से बताएँ कि उसे वह गलती अपमान की तरह न लगे। तो बस मौके को समझें और उस हिसाब से शब्दों का प्रयोग करें।
आज फिर सुबह से ही शिवानी भाभी के रसोईघर से पकवानों की खुशबू आ रही है। लगता है बेटा-बहू बेंगलुरू से आने वाले हैं। बस अब तीन-चार दिन तक यही सिलसिला चलता रहेगा। शिवानी भाभी मेरे बगल वाले फ्लैट में रहती हैं। उनका बड़ा बेटा व बहू दोनों बेंगलुरू में जॉब करते हैं।
कोई बड़ा त्योहार या अधिक दिन की छुट्टियाँ होते ही माँ से मिलने आ जाते हैं। बेसन के लड्डू, मठरी, पापड़, अचार व अन्य कई तरह की चीजें बनाने लग जाती हैं, शिवानी भाभी- 'ये मेरे बेटे को पसंद है ये मेरी बहू को पसंद है' कहकर।
जब भाभी से सामना हुआ तो मैं मुस्करा पड़ी, 'क्यों भाभी कब आ रहे हैं रोहित और अन्नू?' भाभी भी मुस्करा पड़ीं, 'बस अगले हफ्ते ही आने वाले हैं। उनके साथ बैठती नहीं हूँ तो दोनों नाराज हो जाते हैं। कहते हैं कि हम इतनी दूर से आए हैं और आपको फुर्सत ही नहीं है!' मैंने कहा- 'सही तो बोलते हैं।' 'अरे! इसलिए ही तो अब उनकी पसंद की सारी चीजें बनाकर, पैक करके चैन से बैठूँगी।' भाभी ने कहा।
समय बदला है, सोच बदली है और बदली-सी भूमिका में है आज की सास-बहू का रिश्ता। मुझे याद आ रहा है ऐसी ही कुछ तैयारियाँ माँ किया करती हैं छुट्टियों में जब मैं मायके जाती हूँ, पर बदलते परिवेश में यह नजारा भी आम हो चला है।
सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह देखने में आया है कि पुरानी पीढ़ी की सोच पर अब ये बातें हावी नहीं हैं कि हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था या हमने तो वही किया जो घर के बड़े-बुजुर्ग चाहते थे। इस सोच से वे पूर्णतः मुक्त हैं।
अधिकांश परिवार बेटे-बहू अपनी जॉब के सिलसिले में दूसरे शहरों में रह रहे हैं और किन्हीं कारणों से माता-पिता का वहाँ जाना असंभव है। वहाँ सास की भूमिका कुुछ इसी तरह नजर आ रही है।
समय के साथ रिश्तों का स्वरूप चाहे हर युग में बदलता रहे मगर ममता का स्वरूप नहीं बदला। ऐसी हर स्थिति के लिए लगभग वे तैयार भी हैं। बाकी अपवाद तो हर जगह होते ही हैं। समय के साथ स्वयं को ढाल लेने में ही समझदारी है। यह बात आज की पीढ़ी अच्छी तरह समझती है।
सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह देखने में आया है कि पुरानी पीढ़ी की सोच पर अब ये बातें हावी नहीं हैं कि हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था या हमने तो वही किया जो घर के बड़े-बुजुर्ग चाहते थे। इस सोच से वे पूर्णतः मुक्त हैं। आज पढ़ाई-लिखाई का स्तर बढ़ने के साथ ही जॉब में अच्छे अवसर उपलब्ध हैं, जिन्हें युवा खोना नहीं चाहते हैं। अतः अभिभावकों का पूर्ण सहयोग भी उन्हें प्राप्त है, जिससे वे ऊँचे आयामों को छू लेने में सक्षम हैं।
पीढ़ियों का अंतर तो है लेकिन वैचारिक मतभेद नहीं है यानी समय के साथ कदमताल बैठाना सबको आ गया है। यही वक्त की माँग भी है कि लकीर का फकीर बनने से अच्छा है, जमाने के साथ चला जाए। इस बात को शिवानी भाभी जैसी सासू माँ अच्छी तरह से जानती हैं।
यही अपनत्व की डोर है जो रिश्तों को बाँधकर रखती है। तभी तो बेटे-बहू की प्यारभरी आगवानी होती है और वैसी ही बिदाई भी। वे भी गर्व से बताते नहीं चूकते कि 'माँ के हाथ की बनी चीज की बात ही कुछ और है।' कुछ पल अपने के साथ बिताने पर यकीनन भावनात्मक संबल तो मिलता ही है, एक कड़ी से जुड़े रहने का। साथ ही विश्वास भी मजबूत होता है, तभी तो रिश्तों की महक बरकरार रहती है।
दोनों सास-बहू का प्रेम लोगों के लिए मिसाल हुआ करता था। सास पीछे बैठती व बहू स्कूटर चलाती। सास के चेहरे पर एक आत्मसंतुष्टि का भाव या यूँ कहिए कि इस बात का घमंड था कि उसकी बहू कितनी अच्छी है। जहाँ आज के समय सास-बहू साथ नहीं रहती हैं वहाँ उन दोनों के बीच इतना अच्छा सामंजस्य सचमुच ईर्ष्या की बात थी।
दोनों से अकेले में भी मिलने पर एक-दूसरे की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं। चाहे कोई कितना ही उनके मन को टटोले एक-दूसरे की बुराई का एक शब्द नहीं सुन पाता था। परंतु कुछ दिनों से दोनों की एक-दूसरे से बोलचाल बंद है। अब दोनों एक-दूसरे की बुराई करने को आतुर है। घर स्वर्ग से नर्क बन गया है।
पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। बहुत कुरेदने पर बहू ने बताया कि इस अनबन की शुरुआत तब से हुई जब सास की एक सहेली ने बताया कि तुम्हारी सास मुझसे कह रही थी कि जबसे बहू आई है सुबह के समय उनकी दिनचर्या में परिवर्तन आ गया है। पोते के स्कूल जाने की वजह से अब वह सबेरे न तो घूमने जा पाती हैं न ही मंदिर। खाना-पीना भी बहू की पसंद का बनता है और भी न जाने क्या-क्या। बस यही सब सुनकर उसका मन कसैला हो गया। सोचा सास, सास ही होती है।
ऐसा ही कुछ सास के साथ भी हुआ बहू उनके बारे में क्या कहती है, कोई उल्टी-सीधी कह गया और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। अब स्थिति यह है कि दोनों को एक-दूसरे के किए में खोट नजर आती है।
ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ भी हुआ। मेरी ऑफिस की एक सहकर्मी, जो एक साल पहले नियुक्त हुई थी, हमेशा जब भी मिलती मुस्करा कर अभिवादन अवश्य करती। काम की व्यस्तता के बीच भी वह नमस्ते तो कर ही लेती। परन्तु पिछले कुछ दिनों से वह मुझे नजरंदाज करने लगी। पहले मैंने अपने मन को समझाया कि ऐसा कुछ नहीं है, मैं अत्यधिक संवेदनशील हूँ शायद ऐसा मुझे इसीलिए लगा होगा। किन्तु जब यही क्रम 15-20 दिनों तक जारी रहा तो मेरा मन नहीं माना। मैंने उसे बुलाकर पूछा। पहले तो वह आई नहीं, जब आई तो आवेश में थी। वह भरी हुई थी। उसने मुझे जो बताया वह सुनकर मैं दंग रह गई। उसने कहा- एक अन्य सहकर्मी जो कुछ दिनों पहले ही ट्रांसफर होकर आई थीं, उन्होंने उसे बताया कि मैंने उसके बारे में कुछ बुराई की है और वह बातें जो मैंने कही ही नहीं है वह उसने मुझे बताई। मैं भी आवेश में आ गई।
मैंने उससे कहा-"चलो, अभी आमने-सामने कर देते हैं। मैंने ऐसा कब कहा? जिससे मैं बात कम ही करती हूँ उससे मैं क्यों कुछ कहूँगी!" यह बात उसे भी समझ आ गई। मैंने कुछ नहीं कहा। परन्तु साथ ही उसे यह समझाया कि यदि किसी ने कुछ कहा तो मुझसे पूछती तो सही कि क्या यह सच है। यूँ हम गलतफहमी का शिकार तो नहीं होते। बातचीत बंद करना किसी समस्या का समाधान तो नहीं। ऊपर जो कुछ उदाहरण थे उनमें भी यही हुआ। किसी ने कुछ कह दिया, हमने उसे मान लिया। हमने उस बात की तह तक जाने की कोशिश नहीं की। न ही हमने अपने अंतरंग मित्र से उस बात को कहा जिससे हमने बातचीत बंद की। जिसने भी हमारे रिश्ते में सेंध लगाई, उसने साथ में यह भी अवश्य कहा होगा कि तुम उससे यह बात मत कहना, बेकार में झगड़ा होगा। परंतु यह क्या हुआ?
झगड़े में कुछ तो साफ होता। यहाँ तो सब कुछ अंदर ही रह गया और बढ़ती गई गलतफहमी की दीवार। दुश्मनों की चाल कामयाब हो गई। वे उनके सगे हो गए और आप दुश्मन! अब जब हमने बातचीत ही बंद कर दी है तो सुलह कैसे हो सकती है?
कहने का तात्पर्य यही है कि आपके अपनों से कभी भी किसी भी परिस्थिति में बोलना बंद मत कीजिए। क्योंकि जब अबोला लंबा खिंच जाता है, तो रिश्ते रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाते हैं। समय निकल जाता है, हाथ में कुछ नहीं रहता है। सिर्फ रह जाता है दर्द का अहसास। इस दर्द को सहने से तो बेहतर है कि किसी से कोई असहमति या मन में कोई बात होने पर खुलकर बात कर ली जाए ताकि आपके रिश्तों में
ज्यादातर माता-पिता नहीं जानते कि बच्चों में भोजन के प्रति रुचि कैसे जगाएं। वे अकसर इसी दुविधा में रहते हैं कि बच्चे को भोजन में ऐसा क्या दें, जिससे बच्चे को संतुष्टि मिल सके।
माताओं में आम धारणा यह होती है कि यदि शिशु को ज्यादा खिलाएंगी तो वे मोटे हो जाएंगे। ऐसा कदापि न करें, साथ ही बच्चे के मोटापे से भी चिंतित न हों, बच्चे का मोटापा व्यायाम, हिलाने-डुलाने व सक्रियता के जरिये भी कम किया जा सकता है। बच्चे को खेलने के ऐसे खिलौने दें, जिनसे खेलते हुए उसका व्यायाम हो जाए, वह ज्यादा दौड़-भाग करे।
बच्चे के मोटापे को देखकर उसके खाने-पीने में कमी न करें, इससे उसको मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी हो जाएगी। इससे उसके मानसिक व शारीरिक विकास में बाधा आएगी।
नेशनल डेयरी काउंसिल के आहार विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों को खाना खिलाना मां-बाप के लिए बहुत कठिन काम है, मगर माताएं अकसर यही याद रखती हैं कि बच्चे ने कितना खाया और कितनी उपेक्षा की।
बढ़ते बच्चे की भूख का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसमें पाचन क्षमता कमजोर होती है, इसलिए उन्हें एक बार अधिक से अधिक नहीं खिलाना चाहिए, बल्कि दिन में दो-तीन बार भोजन कराना चाहिए।
यह जरूरी नहीं कि बार-बार खाना ही दिया जाए। एक जैसा खाना मिलने पर बच्चा खाने से जी चुराने लगता है। बच्चों को स्नैक्स, मिल्क शेक, फल, मक्खन, किशमिश आदि दिए जा सकते हैं।
मक्खन, अंडे, दूध, फल व सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता होती है, यह ध्यान रखना चाहिए कि आहार बच्चे की खुराक के अनुकूल हो। बच्चे को केक, बिस्कुट दिए जा सकते हैं, मगर अधिक से अधिक विटामिन व प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ देने चाहिए साथ ही वैरायटी भी होना जरूरी है।
* जो बच्चे स्तनपान करते हैं, उन्हें बचपन से लेकर बाद तक कम बीमारियां होती हैं, यानी शुरू से लेकर आखिर तक स्तनपान करने वाले शिशु स्वस्थ रहते हैं।
* स्तनपान छोड़ने पर बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, तब उसे संतुलित व पौष्टिक आहार की जरूरत होती है, अतः स्तनपान छोड़ने पर बच्चे को फल, हरी सब्जियां, मछली पर्याप्त मात्रा में दें।
* बच्चे के स्वास्थ्य के लिए ज्यादा मीठा अच्छा नहीं होता, क्योंकि इसका सीधा संबंध दांत से होता है।
* बच्चों में दांत साफ करने की आदत डालें, मुलायम ब्रश से ही दांत साफ कराएं, बच्चे में व्यायाम करने की भी आदत डालें।
* बच्चे को ताजी हवा में जरूर घुमाएं, खांसी सर्दी, जुकाम या एलर्जी की शिकायत हो तो तुरंत डॉक्टर को संपर्क करें, बच्चे को प्रातः सूर्य की कोमल किरणों का सेवन जरूर कराएं।
* मैं तो तुम्हारी पसंद का ध्यान रखूंगी ही पर तुम भी रखना। गृहस्थी की गाड़ी दो पहियों से चलती है। वो भी सोच-समझ में समान होना चाहिए।
* जीवन में जितनी भी उलझनें होंगी उन्हें दोनों बाँटेंगे, जरूरत होने पर बच्चों से भी शेयर करेंगे। व मशविरा लेंगे।
* दोस्तों से (चाहे वे महिला हो या पुरुष) घर व ऑफिस के संबंध अपनी-अपनी जगह रहने देंगे। जरूरत होने पर हम दोनों इन संबंधों को बनाए रखने में सहयोग करेंगे।
* घर में या बाहर रिश्तेदारों, मित्रों या नौकरों के सामने अपनी ही बात को ऊंचे स्वर में कहने के बजाए मधुरता से रखेंगे। तात्पर्य किसी की तौहीन न हो।
* हारी बीमारी में मैं तो तुम्हारी सेवा करूंगी ही, क्योंकि तुम मेरे पति, मित्र व प्रेमी हो पर तुम्हारे द्वारा भी ऐसा करने से तुम बच्चों व मेरी नजरों में और भी ऊंचे हो जाओगे।
* बजाए दूसरों की बात सुनने व मानने के, हम दोनों एक-दूसरे की बात सुनेंगे न कि सिर्फ कहेंगे।
* कितनी भी उम्र हो जाए 'हम एक दूजे के लिए' वाली भावना को याद रखेंगे। एक दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे जीवन से रिटायरमेंट तक।
* बहू, दामाद के सामने अपने परिवार की मर्यादा व आदर्श बनाए रखेंगे। उतना ही दखल देंगे जितनी जरूरत होगी।
* पराई पत्तल का घी नहीं देखकर अपनी ही पत्तल पर ध्यान देंगे हर मामले में।