डायरिया के घरेलू नुस्‍खे Home remedies for diarrhea


जब आदमी बार-बार मल त्‍याग करे या पतला मल निकले या दोनों ही स्थितियां हो तो उसे डायरिया या अतिसार कहते हैं। 

डायरिया या अतिसार

पतले दस्त जिसमें जल की मात्रा ज्यादा होती है थोडे-थोडे समय के अंतराल पर आता है। खाने में बरती गई असावधानी इसका प्रमुख कारण होता है। डायरिया के तीव्र प्रकोप से पेट के निचले हिस्से में पीडा या बेचैनी प्रतीत होती है। पेट मरोडना, उल्टी आना, बुखार होना, कमजोरी महसूस करना डायरिया के लक्षण हैं। डायरिया देर तक रहने पर आदमी को कमजोरी और निर्जलीकरण की समस्या पैदा हो जाती है। एक दिन में 5 या उससे ज्यादा बार मल त्याग करने पर स्थिति चिंताजनक होती है। डायरिया आमतौर पर अगर एक हफ्ते में ठीक नहीं होता है तो क्रॉनिक डायरिया कहलाता है। डायरिया की स्थिति देर तक बने रहने पर आदमी बेहोश हो जाता है और समय से इलाज न होने पर मृत्यु हो सकती है।

डायरिया से बचाव के नुस्खे

नमक और पानी का घोल

डायरिया होने पर 1 से 2 घंटे के अंतराल पर कम से कम 1 लीटर से ज्यादा पानी पीना चाहिए। पानी का सेवन करने से निर्जलीकरण नहीं होगा। नमक के छोटे-छोटे टुकडे चूसकर खाएं। नमक और पानी का घोल बनाकर प्रयोग करें।

ओआरएस का घोल

डायरिया होने पर शरीर के अंदर से तरल व खनिज लवण बाहर निकलते हैं। इनकी कमी को पूरा करने के लिए ओआरएस का घोल पिएं।


चाय और अदरक

अदरक का सेवन करने से डायरिया में राहत मिलती है। अदरक की चाय पीने से पेट की पीडा कम होती है। अदरक का रस, नीबूं का रस और काली मिर्च का पाउडर पानी में मिलाकर पीने से राहत मिलती है।

केला और सेब

केला व सेब का मुरब्बा और टोस्ट का मिश्रण जिसे ब्रॉट कहते हैं, इसके इस्तेमाल से भी डायरिया में राहत मिलती है। केला आंतों की गति को नियंत्रण करने में और दस्त को बांधने में सहायता करता है। सेब और केले में मौजूद पेक्टिन दस्त की मात्रा कम करके डायरिया में फायदा देता है।

चावल

डायरिया के उपचार में चावल बहुत कारगर होता है। चावल आंतों की गति को कम करके दस्त को बांधता है।

भोजन बंद न करें

डायरिया होने पर भोजन बिलकुल बंद न करें। केला, चावल, सेवफल का गूदा, मुरब्बा या सॉस जिसे ब्रॉट कहते हैं, इन सबका प्रयोग खाने में करें। ब्रॉट न केवल डायरिया पर नियंत्रण करता है बल्कि गैस्टोएंटराइटिस जैसी समस्याओं के लिए भी भी प्रभावशाली नुस्खा है। डायरिया में पर्याप्त मात्रा में पोषक और तरल पदार्थ लेना चाहिए। डायरिया से निजात पाने के 48 घंटे तक मसालेदार खाना, फल और एलकोहल का प्रयोग न करें।

दूध का प्रयोग बंद करें

डायरिया होने पर दूध और उससे बनी हुई चीजों का प्रयोग बंद करें। दूध या उससे से बने प्रोडक्ट आसानी से पच नहीं पाते हैं।
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अजवाइन


अजवाइन रुचिकारक एवं पाचक होती है। पेट संबंधी अनेक रोगों को दूर करने में सहायक होती है, जैसे- वायु विकार, कृमि, अपच, कब्ज आदि। अजवाइन में स्वास्थ्य सौंदर्य, सुगंध तथा ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व होते हैं। यह बहुत ही उपयोगी होती है।

1- सरसों के तेल में अजवायन डालकर अच्छी तरह गरम करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर जोड़ों के दर्द में आराम होता है।
2- अजवाइन मोटापे को कम करने में मदद करती है। अतः रात्रि में एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में भिगोएं। सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने पर लाभ होता है।

3- मसूड़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूँदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है।

4- अजवाइन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फाँकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढ़ना बंद हो जाएगा।

5- आंतों में कीड़े होने पर अजवाइन के साथ काले नमक का सेवन करने पर काफी लाभ होता है।
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कुछ उपाय जो वजन घटाएं


पूरी नींद यानी पूरी सेहत

पर्याप्त नींद और तनाव का गहरा ताल्लुक है। कई शोध नींद और वजन के संबंधों के बारे में इशारा करते हैं। इनमें पाया गया है कि बहुत कम या बहुत अधिक नींद से वजन बढ़ने लगता है। अच्छी नींद लेने वाला व्यक्ति न सिर्फ तनाव मुक्त रहता है बल्कि मोटापा कम करने में भी मदद मिलती है।

वॉकिंग- उठाइए सेहत के कदम

पैदल चलने से शरीर की मांसपेशियों की अच्छी कसरत हो जाती है। कड़ी कसरत के 90 फीसदी फायदे मिल जाते हैं। अगर आप जिम नहीं जाना चाहते हैं, और भारी-भरकम वजन उठाना आपको पसंद नहीं, तो आप पैदल चलकर भी कसरत के फायदे पा सकते हैं। एक मील यानी करीब 1.6 किलोमीटर पैदल चलने से 100 कैलोरी तक बर्न होती हैं। हफ्ते में अगर तीन दिन दो-दो मील की वॉक करें तो हर तीसरे हफ्ते आधा किलो वजन कम हो सकता है।

जल है तो जीवन है

पानी हमारे शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में बहुत मददगार होता है। जिससे आपका मेटाबोलिज्म तेज हो जाता है और आपका वजन कम होने लगता है। इसलिए दिन में कम से कम 10-12 गिलास पानी जरुर पियें। कई शोधों में माना गया है कि दिन में आठ से नौ गिलास पानी से 200 से 250 कैलोरी आप बर्न कर सकते है।

चबा चबाकर खाएं

खाना धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबाकर खाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि खाना देर तक खाएंगे। कम खाना खा पाएंगे और इससे वजन भी नहीं बढ़ेगा। यानी बहुत देर तक लगातार खाने से आपकी भूख मर जाएगी। चबाकर खाने से खाना जल्दी पच जाता है और आपको बहुत ज्यादा देर तक भूख नहीं लगती।

फलों का रस

फलों के रस में यदि ऊपर से चीनी न मिलाई गई हो, तो वजन घटाने का यह बेहद कारगर उपाय होता है। सॉफ्ट ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक जैसे पेय पदार्थों से जहां वजन बढ़ता है वही दूध, पानी, नारियल पानी, जूस इत्यादि वजन कम करने में लाभकारी होते हैं।

सेब जिसने खाया, वजन घटाया

सेब में कैलोरी बहुत कम होती है। इसमें मौजूद पेक्टिन नामक फाइबर एलडीएल कोलेस्ट्रोल या संतृप्त वसा के स्तर को नियंत्रित करता है। दिन में दो बार सेब का सेवन करने वाले लोग अपना 16 प्रतिशत कोलेस्ट्रोल कम कर सकते हैं जो वजन घटाने में सहायक होता है।

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गुलाब को यों ही फूलों का फूल नहीं कहा जाता।



गुलाब के रंग-बिरंगे फूल सिर्फ ड्रॉइंगरूम में फूलदान पर
ही अच्छे नहीं लगते, बल्कि इसकी पंखुड़ियां भी बड़े काम
की हैं। गुलाब जल का इस्तेमाल फेस मास्क में भी होता है
और यह खाने को भी लज्जतदार बनाता है। गुलाब विटामिन
ए, बी 3, सी, डी और ई से भरपूर है। इसके अलावा इसमें
कैल्शियम, जिंक और आयरन की भी मात्र काफी होती है।

* गुलाब को यों ही फूलों का फूल नहीं कहा जाता। दिखने में
यह फूल बेहद खूबसूरत है और इसकी हर पंखुड़ी में समाए हैं
अनगिनत गुण। त्वचा को सुंदर बनाने से लेकर शरीर
को चुस्त-दुरुस्त रखने में गुलाब कितने काम आता है ।

* सुबह-सबेरे अगर खाली पेट गुलाबी गुलाब
की दो कच्ची पंखुड़ियां खा ली जाएं, तो दिन भर
ताजगी बनी रहती है। वह इसलिए क्योंकि गुलाब बेहद
अच्छा ब्लड प्यूरिफायर है।

* अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, ब्रोंकाइटिस, डायरिया, कफ,
फीवर, हाजमे की गड़बड़ी में गुलाब का सेवन बेहद
उपयोगी होता है।

* गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल चाय बनाने में भी होता है।
इससे शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाता है।
पंखुड़ियों को उबाल कर इसका पानी ठंडा कर पीने पर तनाव
से राहत मिलती है और मांसपेशियों की अकड़न दूर होती है।

* एक शीशी में ग्लिसरीन, नीबू का रस और गुलाब जल
को बराबर मात्रा में मिलाकर घोल बना लें। दो बूंद चेहरे पर
मलें। त्वचा में नमी और चमक बनी रहेगी और
त्वचा मखमली-मुलायम बन जाएगी।
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मिलावट से बचने के लिए


इस काम की जानकारी को सभी Share करें...
1) सेब की चमक देखकर ज्यादा खुश मत होइए। ज्यादातर यह चमक सेब पर वैक्स
पॉलिश की वजह से दिखती है। इसकी जांच के लिए बस एक ब्लेड लीजिए और सेब
को हल्के-हल्के खुरचिए। अगर कुछ सफेद पदार्थ निकले, तो आपको बधाई
क्योंकि आप मोम खाने से बच गए!
2) अगली बार चाय बनाने से पहले चायपत्ती को जरूर जांचें। चायपत्ती ठंडे पानी में डालने पर रंग छोड़े तो साफ है कि उसमें मिलावट है या वह एक बार यूज हो चुकी है।
3) मटर के दाने खरीदें हैं, तो उसमें से एक हिस्से को पानी में डालकर हिलाएं और 30
मिनट तक छोड़ दें। अगर पानी रंगीन हो जाता है तो नमूने में मेलाकाइट हरे की मिलावट है। ऐसी मिलावटी चीजें खाने से पेट से संबंधित गंभीर बीमारियां (अल्सर, ट्यूमर आदि) होने का खतरा रहता है।
4) खाने में पिसी हल्दी का रोजाना इस्तेमाल होता है। हल्दी में मेटानिल येलो की मौजूदगी से कैंसर हो सकता है। इसका टेस्ट भी हल्दी पाउडर में पांच बूंद हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पांच बूंद पानी डालकर कर सकते हैं। अगर सैंपल बैंगनी हो जाए, तो हल्दी मिलावटी है।
5) अगर आप पिसी हल्दी में मिलावट से बचने के लिए साबूत हल्दी को लाकर खुद
पिसवाते हैं या किसी और तरीके से साबूत हल्दी को इस्तेमाल करते हैं, तो यह
भी काफी रिस्की है। हल्दी की पहचान करने के लिए पेपर पर हल्दी को रखकर
ठंडा पानी मिलाएं। अगर रंग अलग हो जाए तो हल्दी पॉलिश की हुई है।
6) मसाले में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी में अमरूद की छाल मिलाई जाती है। इसे हाथ पर रगड़कर देखें, अगर यह नकली होगी तो कोई कलर नहीं आएगा।-
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दूध पीने के नियम


बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- सुबह सिर्फ काढ़े के साथ दूध लिया जा सकता है .
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; जबकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- कपालभाती प्राणायाम और नस्य लेने से बेहतर केशियम एब्ज़ोर्प्शन होता है और केल्शियम , आयरन और विटामिन्स की कमी नहीं हो सकती साथ ही बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास होगा .
- दूध के साथ कभी भी नमकीन या खट्टे पदार्थ ना ले .त्वचा विकार हो सकते है .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .
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वृक्कों (गुर्दों) में पथरी-Renal (Kidney) Stone


वृक्कों गुर्दों में पथरी होने का प्रारंभ में रोगी को कुछ पता नहीं चलता है, लेकिन जब वृक्कों से निकलकर पथरी मूत्रनली में पहुंच जाती है तो तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। पथरी के कारण तीव्र शूल से रोगी तड़प उठता है।

उत्पत्ति :
भोजन में कैल्शियम, फोस्फोरस और ऑक्जालिकल अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो पथरी का निर्माण होने लगता है। उक्त तत्त्वों के सूक्ष्म कण मूत्र के साथ निकल नहीं पाते और वृक्कों में एकत्र होकर पथरी की उत्पत्ति करते हैं। सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी पथरी वृक्कों में तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। कैल्शियम, फोस्फेट, कोर्बोलिक युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से पथरी का अधिक निर्माण होता है।

लक्षण :
पथरी के कारण मूत्र का अवरोध होने से शूल की उत्पत्ति होती है। मूत्र रुक-रुक कर आता है और पथरी के अधिक विकसित होने पर मूत्र पूरी तरह रुक जाता है। पथरी होने पर मूत्र के साथ रक्त भी निकल आता है। रोगी को हर समय ऐसा अनुभव होता है कि अभी मूत्र आ रहा है। मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। पथरी के कारण रोगी के हाथ-पांवों में शोध के लक्षण दिखाई देते हैं। मूत्र करते समय पीड़ा होती है। कभी-कभी पीड़ा बहुत बढ़ जाती है तो रोगी पीड़ा से तड़प उठता है। रोगी कमर के दर्द से भी परेशान रहता है।

क्या खाएं?
* वृक्कों में पथरी पर नारियल का अधिक सेवन करें।
* करेले के 10 ग्राम रस में मिसरी मिलाकर पिएं।
* पालक का 100 ग्राम रस गाजर के रस के साथ पी सकते हैं।
* लाजवंती की जड़ को जल में उबालकर कवाथ बनाकर पीने से पथरी का निष्कासन हो जाता है।
* इलायची, खरबूजे के बीजों की गिरी और मिसरी सबको कूट-पीसकर जल में मिलाकर पीने से पथरी नष्ट होती है।
* आंवले का 5 ग्राम चूर्ण मूली के टुकड़ों पर डालकर खाने से वृक्कों की पथरी नष्ट होती है।
* शलजम की सब्जी का कुछ दिनों तक निरंतर सेवन करें।
* गाजर का रस पीने से पथरी खत्म होती है।
* बथुआ, चौलाई, पालक, करमकल्ला या सहिजन की सब्जी खाने से बहुत लाभ होता है।
* वृक्कों की पथरी होने पर प्रतिदिन खीरा, प्याज व चुकंदर का नीबू के रस से बना सलाद खाएं।
* गन्ने का रस पीने से पथरी नष्ट होती है।
* मूली के 25 ग्राम बीजों को जल में उबालकर, क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर पिएं।
* चुकंदर का सूप बनाकर पीने से पथरी रोग में लाभ होता है।
* मूली का रस सेवन करने से पथरी नष्ट होती है।
* जामुन, सेब और खरबूजे खाने से पथरी के रोगी को बहुत लाभ होता है।
नोट: पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन करने से पहले चिकित्सक से अवश्य परामर्श कर लें।

क्या न खाएं?
* वृक्कों में पथरी होने पर चावलों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* गरिष्ठ व वातकारक खाद्य व सब्जियों का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।
* चइनीज व फास्ट फूड वृक्कों की विकृति में बहुत हानि पहंुचाते हैं।
* मूत्र के वेग को अधिक समय तक न रोकें।
* अधिक शारीरिक श्रम और भारी वजन उठाने के काम न करें।
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हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले आहार



भोजन में अनेक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर का विकास करते हैं, उसे स्वस्थ रखते हैं और शक्ति प्रदान करते हैं। हमें अपने आहार में हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले फल एवं सब्जियों को शामिल करना चाहिए। हीमोग्लोबिन को बढ़ाने के लिए संतुलित आहार, व्यायाम, भोजन में हरी सब्जियां, दालें, अनार आदि फल लेना चाहिए।

हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले आहार के स्रोत:

अमरूद- अमरूद जितना ज्यादा पका हुआ होगा, उतना ही पौष्टिक होगा। पके अमरूद को खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होती। इसलिए महिलाओं के लिए यह और भी लाभदायक हो जाता है।

आम- आम खाने से हमारे शरीर में रक्ति अधिक मात्रा में बनता है, एनीमिया में यह लाभकारी होता है।

सेब- सेब एनीमिया जैसी बीमारी में लाभकारी होता है। सेब खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन बनता है।

अंगूर- अंगूर में भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है। जो शरीर में हीमोग्लोबिन बनाता है, और हीमोग्लोबिन की कमी संबंधी बीमारियों को ठीक करने में सहायक होता है।

चुकन्दर- चुकन्दर से प्राप्त उच्च गुणवत्ता का लोह तत्व रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण व लाल रक्तकणों की सक्रियता के लिए बेहद प्रभावशाली है। खून की कमी यानी एनीमिया की शिकार महिलाओं के लिए चुकंदर रामबाण के समान है। चुकन्दर के अलावा चुकन्दर की हरी पत्तियों का सेवन भी बेहद लाभदायी है। इन पत्तियों में तीन गुना लौह तत्व अधिक होता है।

तुलसी- तुलसी रक्त की कमी को कम करने के लिए रामबाण है। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है।

सब्जियां- शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। हरी सब्जियों में हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में पाये जाते है।

तिल- तिल हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता है। तिल खाने से रक्ताअल्पता की बीमारी ठीक होती है।

पालक- सूखे पालक में आयरन काफी मात्रा होती है। जो शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को ठीक करता है।

नारियल- नारियल शरीर में उत्तकों, मांसपेशियों और रक्त जैसे महत्वपूर्ण द्रव्यों का निर्माण करता है, यह संक्रमण का सामना करने के लिए इन्जाइम और रोग प्रतिकारक तत्वों के विकास में सहायक होता है।

अंडा- अंडे के दोनों भागों में प्रोटीन, वसा, कई तरह के विटामिन, मिनरल्स, आयरन और कैल्शियम जैसे गुणकारी तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। बहुत कम खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला विटामिन डी भी अंडे में पाया जाता है।

गुड़- गुड़ में अधिक खनिज लवण होते है। जो हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है।
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ये पौष्टिक तो हैं ही


* दिमाग तेज बनाने के लिए रोजाना सुबह सैर करें। हरी घास पर चलने से दिमाग के साथ-साथ ब्लड प्रेशर भी ठीक बना रहता है।

* दांत मजबूत बनाने के लिए नीम की दातून का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे दांत में कीड़ा नहीं लगता और आपके दांत मजबूत भी बनते हैं।

* सर्दियों में अपनी डाइट में ड्राई फ्रूट्स को भी शामिल करें। ये पौष्टिक तो हैं ही, त्वचा के लिए भी लाभदायक हैं।

* फ्रिज की ठंडी चीजें सीधे खाने से बचें। इसे हल्का सा गर्म करके खायेंगे, तो पाचन तंत्र ठीक रहेगा।

* गर्दन में दर्द न हो, इसके लिए सोने का सही तरीका अपनाएं। तकिए का इस्तेमाल कम करें। फिर भी दर्द है तो एक्सरसाइज या योग करें। तब भी आराम न मिले तो डाक्टर से सलाह लें।

* गर्म मसाला चूर्ण को नींबू के रस में भिगो दें। भोजन के बाद इसे आधा चम्मच लें। यह पाचन के लिए बेहतरीन दवाई का काम करता है।

* ज्यादा लिपिस्टिक लगाने से कभी-कभी होठों का रंग काला पड़ने लगता है। हो सके तो इसे लगाने से परहेज करें। लगानी भी पड़े तो, बाद में उसे साफ करके होंठों पर नींबू का रस लगायें। इससे आपके होंठ काले नहीं पडेंगे।

* अगर आपको पिंपल की समस्या है, तो साबून का प्रयोग न करें। साबुन आपके चेहरे से आयल को सोख लेता है जिससे आपकी समस्या कम होने की जगह बढ़ सकती है। चेहरे पर नीम का फेस पैक लगाएं।

* अगर आपकी आंखों के नीचे काले घेरे या झुर्रियां पड़ गयी हैं, तो दूध की मलाई से उस जगह की रोजाना मालिश करें।

* त्वचा को मुलायम बनाने के लिए शहद में नींबू का रस मिलाकर पांच मिनट मालिश करें।

* तनाव न हो, इसके लिए सकारात्मक सोच अपनाएं। अधिक तनाव से केवल आपके दिमाग पर असर पड़ता है बल्कि ब्यूटी पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। जैसे बालों का गिरना, आंखों के नीचे काले घेरे होना और चेहरे की चमक घीरे-धीरे गायब होने लगेगी।

* बाल सफेद न हों, इसके लिए विटामिन-ई युक्त तेल का प्रयोग करें। इससे आपके बाल असमय सफेद नहीं होंगे साथ ही गिरना बन्द हो जायेंगे। खाने में भी इस तेल का इस्तेमाल फायदेमंद होता है।
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गोरी त्वचा पाने के घरेलू उपायHome remedies to get fair skin

भारत में गोरेपन को खूबसूरती का पैमाना माना जाता है। इसी खूबसूरती को हासिल करने के लिए तरह-तरह के उपाय भी किए जाते हैं। महंगी से महंगी क्रीम, लोशन आदि सबका उपयोग किया जाता है। लेकिन यह भी सच है कि रंगत केवल एक ही रात में नही बदली जा सकती इसमें समय लगता है। अगर आप भी अपनी रंगत को गोरा करना चाहते है तो घर में उपलब्‍ध चीजों की सहायता से ऐसा किया जा सकता है।

एक बाल्टी ठण्डे या गुनगुने पानी में दो नींबू का रस मिलाकर गर्मियों में कुछ महीने तक नहाने से त्वचा का रंग निखरने लगता है।
आंवले का मुरब्बा रोज खाने से दो-तीन महीने में ही रंग निखरने लगता है।
गाजर का जूस आधा गिलास खाली पेट सुबह लेने से एक महीने में रंग निखरने लगता है।
पेट को हमेशा ठीक रखें, कब्ज न रहने दें।
अधिक से अधिक पानी पीएं।
चाय कॉफी का सेवन कम करें।
रोजाना सुबह शाम खाना खाने के बाद थोड़ी मात्रा में सोंफ खाने से खून साफ होने लगता है और त्वचा की रंगत बदलने लगती है।

गोरी त्वचा पाने के घरेलू उबटन - इन सब उपायों के अलावा आप विभिन्न प्रकार के घरेलू उबटन लगा कर भी अपनी त्वचा की रंगत निखारी जा सकती है।

हल्दी पैक- त्वचा की रंगत को निखारने के लिए हल्दी एक अच्छा तरीका है। पेस्ट बनाने के लिए हल्दी और बेसन या फिर आटे का प्रयोग करें। हल्दी में ताजी मलाई, दूध और आटा मिला कर गाढा पेस्ट बनाएं, इस पेस्ट को अपने चेहरे पर 10 मिनट लगाएं और ठंडे पानी से धो लें।

हनी आल्मड स्क्रब- बादाम भी रंगत निखारने का काम करता है। रात को 10 बादाम पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उसे छील कर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट में थोड़ा सा शहद मिलाएं और इस पेस्ट को अपनी त्वचा पर लगाकर स्क्रब करें।

चंदन- गोरी रंगत देने के अलावा यह एलर्जी और पिंपल को भी दूर करता है। पेस्ट बनाने के लिए चंदन पाउडर में 1 चम्मच नींबू और टमाटर का रस मिलाएं और पेस्ट को अपने चेहरे और गर्दन में अच्छी तरह से लगाकर थोड़ी देर बाद ठंडे पानी से धो लें।

केसर पैक- उबटन बनाने के लिए आपको दही और क्रीम में थोड़ा सा केसर मिला लें। इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं। सूखने के बाद इसे धो लें। केसर के इस उबटन से भी कुछ दिन में आपकी त्वचा गोरी होने लगेगी।

चिरौंजी का पैक- गोरी रंगत के लिए मजीठ, हल्दी, चिरौंजी का पाउडर लें इसमें थोड़ा सा शहद, नींबू और गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे, गरदन, बांहों पर लगाएं और एक घंटे के बाद चेहरा धो दें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से चेहरे का रंग निखर जाएगा।

मसूर दाल पैक- मसूर की दाल का पाउडर लें इसमें अंडे की जर्दी, नीबू का रस व कच्चा दूध मिलाकर पेस्ट बना लें। रोज इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं, सूखने पर ठंडे पानी से धो लें। चेहरे का रंग निखर जाएगा।

बेसन का उबटन- बेसन 2 चम्मच, सरसों का तेल 1 चम्मच और थोड़ा सा दूध मिला कर पेस्ट बना लें। पूरे शरीर पर इस उबटन को लगा लें। कुछ देर बाद हाथ से रगड कर छुडाएं और स्नान करें। त्वचा गोरी व मुलायम हो जाएगी।

इन सब घरेलू उपायों को अपना कर आप कुछ ही दिनों में स्वस्थ, सुंदर, चमकदार और गोरी त्वचा पा सकती है।
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एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है।


एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है।

* एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है।

* एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है।

* जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है।

* एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है।

* रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं।

* एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है।

* एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है।

* गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है।

* एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।
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पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है........Papaya is considered a boon for the stomach.

फलों में पपीता को गुणों की खान कहा जाता है। यह पेट के लिए काफी लाभदायक है। इसके सेवन से त्वचा में भी निखार आता है। पपीता कई बीमारियों से दूर रखता है।

मोटापा, पाचनतंत्र में गड़बड़ी, कमजोर आंतें, भूख न लगने आदि तकलीफों से आप जूझ रहे हैं तो पपीता इन सभी में लाभ पहुंचाता है। पेट का ख्याल रखने के साथ साथ यह चेहरे पर भी चमक लाता है। इसमें मौजूद विटामिन ए, बी, डी, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह आदि इसे सेहत का खजाना बना देते हैं।

पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है। इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाने में मदद करता है। पपीता का सेवन रोज करने से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता है, मोटापे को नियंत्रित करता है और अगर आपको खट्टी डकारें आती हैं तो पपीते का रस उसे भी बंद कर देगा। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बना कर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।

पपीते का रस अरुचि, अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज व आंव-दस्त आदि रोगों को ठीक करता है। आपको भूख नहीं लगती या पेशाब ठीक से नहीं होता तो सुबह में नियमित रूप से पके पपीते का सेवन करें। इससे भूख भी लगने लगेगी और पेशाब से संबंधित समस्या भी दूर हो जाएगी। पपीते के रस के सेवन से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। यह हृदय रोग, आंतों की कमजोरी आदि को भी दूर करता है। पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की धड़कन ठीक रहती है। यह पौरुष को बढ़ाता है, पागलपन को दूर करता है एवं वात दोषों को नष्ट करता है। पपीते का निरंतर सेवन जख्म भी जल्द भरने में मदद करता है।

कच्चे पपीते का दूध त्वचा रोग के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। पपीते का प्रयोग लोग फेस पैक में भी करते हैं। त्वचा को ठंडक पहुंचाने वाला पपीता आंखों के नीचे के काले घेरे को दूर करता है। अगर आप कील-मुंहासों से परेशान हैं तो कच्चे पपीते के गूदे को शहद में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और जब वह सूख जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। उसके बाद मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। एक महीने तक नियमित रूप से ऐसा करने से आपको काफी लाभ होगा। पपीता कफ के साथ आने वाले खून को रोकता है और खूनी बवासीर को भी ठीक करता है। हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदाक होता है।
क्या-क्या मिलता है?

प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, बी और सी के साथ ही कुछ मात्रा में विटामिन-डी भी मिलता है। पपीता पेप्सिन नामक पाचक तत्व का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है। इसमें कैल्शियम और कैरोटीन भी अच्छी मात्रा में मिलता है। इसके अलावा फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट्स, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। पपीता सालभर बाजार में उपलब्ध होता है।

पपीता के गुण

पपीता पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे पाचन तंत्र ठीक रहता है और पेट के रोग भी दूर होते हैं। पपीता पेट के तीन प्रमुख रोग आम, वात और पित्त तीनों में ही राहत पहुंचाता है। यह आंतों के लिए उत्तम होता है।

पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन-ए होता है। इसलिए यह आंखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी तो अच्छी होती ही है, त्वचा भी स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है।

पपीते में कैल्शियम भी खूब मिलता है। इसलिए यह हड्डियां मजबूत बनाता है।

यह प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है।

पपीता फाइबर का अच्छा स्रोत है।

इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कैंसर रोधी और हीलिंग प्रॉपर्टीज भी होती है।

जिन लोगों को बार-बार सर्दी-खांसी होती रहती है, उनके लिए पपीते का नियमित सेवन काफी लाभकारी होता है। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।

इसमें बढ़ते बच्चों के बेहतर विकास के लिए ज़रूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। शरीर को पोषण देने के साथ ही रोगों को दूर भी भगाता है।
पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है........

फलों में पपीता को गुणों की खान कहा जाता है। यह पेट के लिए काफी लाभदायक है। इसके सेवन से त्वचा में भी निखार आता है। पपीता कई बीमारियों से दूर रखता है।

मोटापा, पाचनतंत्र में गड़बड़ी, कमजोर आंतें, भूख न लगने आदि तकलीफों से आप जूझ रहे हैं तो पपीता इन सभी में लाभ पहुंचाता है। पेट का ख्याल रखने के साथ साथ यह चेहरे पर भी चमक लाता है। इसमें मौजूद विटामिन ए, बी, डी, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह आदि इसे सेहत का खजाना बना देते हैं।

पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है। इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाने में मदद करता है। पपीता का सेवन रोज करने से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता है, मोटापे को नियंत्रित करता है और अगर आपको खट्टी डकारें आती हैं तो पपीते का रस उसे भी बंद कर देगा। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बना कर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।

पपीते का रस अरुचि, अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज व आंव-दस्त आदि रोगों को ठीक करता है। आपको भूख नहीं लगती या पेशाब ठीक से नहीं होता तो सुबह में नियमित रूप से पके पपीते का सेवन करें। इससे भूख भी लगने लगेगी और पेशाब से संबंधित समस्या भी दूर हो जाएगी। पपीते के रस के सेवन से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। यह हृदय रोग, आंतों की कमजोरी आदि को भी दूर करता है। पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की धड़कन ठीक रहती है। यह पौरुष को बढ़ाता है, पागलपन को दूर करता है एवं वात दोषों को नष्ट करता है। पपीते का निरंतर सेवन जख्म भी जल्द भरने में मदद करता है।

कच्चे पपीते का दूध त्वचा रोग के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। पपीते का प्रयोग लोग फेस पैक में भी करते हैं। त्वचा को ठंडक पहुंचाने वाला पपीता आंखों के नीचे के काले घेरे को दूर करता है। अगर आप कील-मुंहासों से परेशान हैं तो कच्चे पपीते के गूदे को शहद में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और जब वह सूख जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। उसके बाद मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। एक महीने तक नियमित रूप से ऐसा करने से आपको काफी लाभ होगा। पपीता कफ के साथ आने वाले खून को रोकता है और खूनी बवासीर को भी ठीक करता है। हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदाक होता है।
क्या-क्या मिलता है?

प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, बी और सी के साथ ही कुछ मात्रा में विटामिन-डी भी मिलता है। पपीता पेप्सिन नामक पाचक तत्व का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है। इसमें कैल्शियम और कैरोटीन भी अच्छी मात्रा में मिलता है। इसके अलावा फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट्स, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। पपीता सालभर बाजार में उपलब्ध होता है।

पपीता के गुण

पपीता पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे पाचन तंत्र ठीक रहता है और पेट के रोग भी दूर होते हैं। पपीता पेट के तीन प्रमुख रोग आम, वात और पित्त तीनों में ही राहत पहुंचाता है। यह आंतों के लिए उत्तम होता है।

पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन-ए होता है। इसलिए यह आंखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी तो अच्छी होती ही है, त्वचा भी स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है।

पपीते में कैल्शियम भी खूब मिलता है। इसलिए यह हड्डियां मजबूत बनाता है।

यह प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है।

पपीता फाइबर का अच्छा स्रोत है।

इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कैंसर रोधी और हीलिंग प्रॉपर्टीज भी होती है।

जिन लोगों को बार-बार सर्दी-खांसी होती रहती है, उनके लिए पपीते का नियमित सेवन काफी लाभकारी होता है। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।

इसमें बढ़ते बच्चों के बेहतर विकास के लिए ज़रूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। शरीर को पोषण देने के साथ ही रोगों को दूर भी भगाता है।
पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है........

फलों में पपीता को गुणों की खान कहा जाता है। यह पेट के लिए काफी लाभदायक है। इसके सेवन से त्वचा में भी निखार आता है। पपीता कई बीमारियों से दूर रखता है।

मोटापा, पाचनतंत्र में गड़बड़ी, कमजोर आंतें, भूख न लगने आदि तकलीफों से आप जूझ रहे हैं तो पपीता इन सभी में लाभ पहुंचाता है। पेट का ख्याल रखने के साथ साथ यह चेहरे पर भी चमक लाता है। इसमें मौजूद विटामिन ए, बी, डी, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह आदि इसे सेहत का खजाना बना देते हैं।

पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है। इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाने में मदद करता है। पपीता का सेवन रोज करने से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता है, मोटापे को नियंत्रित करता है और अगर आपको खट्टी डकारें आती हैं तो पपीते का रस उसे भी बंद कर देगा। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बना कर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।

पपीते का रस अरुचि, अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज व आंव-दस्त आदि रोगों को ठीक करता है। आपको भूख नहीं लगती या पेशाब ठीक से नहीं होता तो सुबह में नियमित रूप से पके पपीते का सेवन करें। इससे भूख भी लगने लगेगी और पेशाब से संबंधित समस्या भी दूर हो जाएगी। पपीते के रस के सेवन से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। यह हृदय रोग, आंतों की कमजोरी आदि को भी दूर करता है। पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की धड़कन ठीक रहती है। यह पौरुष को बढ़ाता है, पागलपन को दूर करता है एवं वात दोषों को नष्ट करता है। पपीते का निरंतर सेवन जख्म भी जल्द भरने में मदद करता है।

कच्चे पपीते का दूध त्वचा रोग के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। पपीते का प्रयोग लोग फेस पैक में भी करते हैं। त्वचा को ठंडक पहुंचाने वाला पपीता आंखों के नीचे के काले घेरे को दूर करता है। अगर आप कील-मुंहासों से परेशान हैं तो कच्चे पपीते के गूदे को शहद में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और जब वह सूख जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। उसके बाद मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। एक महीने तक नियमित रूप से ऐसा करने से आपको काफी लाभ होगा। पपीता कफ के साथ आने वाले खून को रोकता है और खूनी बवासीर को भी ठीक करता है। हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदाक होता है।
क्या-क्या मिलता है?

प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, बी और सी के साथ ही कुछ मात्रा में विटामिन-डी भी मिलता है। पपीता पेप्सिन नामक पाचक तत्व का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है। इसमें कैल्शियम और कैरोटीन भी अच्छी मात्रा में मिलता है। इसके अलावा फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट्स, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। पपीता सालभर बाजार में उपलब्ध होता है।

पपीता के गुण

पपीता पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे पाचन तंत्र ठीक रहता है और पेट के रोग भी दूर होते हैं। पपीता पेट के तीन प्रमुख रोग आम, वात और पित्त तीनों में ही राहत पहुंचाता है। यह आंतों के लिए उत्तम होता है।

पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन-ए होता है। इसलिए यह आंखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी तो अच्छी होती ही है, त्वचा भी स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है।

पपीते में कैल्शियम भी खूब मिलता है। इसलिए यह हड्डियां मजबूत बनाता है।

यह प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है।

पपीता फाइबर का अच्छा स्रोत है।

इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कैंसर रोधी और हीलिंग प्रॉपर्टीज भी होती है।

जिन लोगों को बार-बार सर्दी-खांसी होती रहती है, उनके लिए पपीते का नियमित सेवन काफी लाभकारी होता है। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।

इसमें बढ़ते बच्चों के बेहतर विकास के लिए ज़रूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। शरीर को पोषण देने के साथ ही रोगों को दूर भी भगाता है।
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सौंठ के लड्डू- Saunth ke laddoo


सोंठ का प्रयोग एक औषधि के रूप में अधिक किया जाता हैं। यह कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए यह काफी हितकारी है, इसके अलावा वातविकार, उदरवात, जोड़ों का दर्द, सूजन आदि रोगों में भी यह अत्यंत लाभदायक है। खासतौर पर सर्दियों में इसका सेवन लाभप्रद रहता हैं।

कितने लोगों के लिए : 10

सामग्री

500 ग्राम आटा, 300 ग्राम देसी घी, 200 ग्राम चीनी, 1 कप पानी, 1/2 टी स्पून इलायची पाउडर, 1/2 टी स्पून सौंठ पाउडर, 100 ग्राम सूखे मेवे (काजू, बादाम, चिरौंजी और किशमिश)।

विधि

एक कड़ाही में घी डालकर मध्यम आंच पर आटे को सुनहरा भून लें। पानी और चीनी को मिलाकर चाशनी तैयार कर लें। अब इस चाशनी में भुना हुआ आटा, सूखे मेवे और इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण के लड्डू बना लें ठंडे हो जाने पर एयरटाइट कंटेनर में रख दें। —
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दही को सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।


इसमें कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं, जिसके कारण यह दूध की अपेक्षा जल्दी पच जाता है। जिन लोगों को पेट की परेशानियां जैसे- अपच, कब्ज, गैस बीमारियां घेरे रहती हैं, उनके लिए दही या उससे बनी लस्सी, मट्ठा, छाछ का उपयोग करने से आंतों की गरमी दूर हो जाती है। डाइजेशन अच्छी तरह से होने लगता है और भूख खुलकर लगती है।

दही में एक ऐसा पदार्थ पाया जाता है जो रक्त में उपलब्ध कोलेस्ट्रोल को कम करता है, अतः यह हृदय रोग में लाभ पहुंचाता है।

पेट की गड़बड़ी (कब्जियत) ही सभी रोगों की जड़ है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधी क्षमता में ह्रास होता है परन्तु दही का समुचित मात्रा में सेवन प्रतिरोधी क्षमता का विकास करता है।

1- त्वचा को नर्म और साफ रखने के लिए दही में नींबू का रस मिलाकर चेहरे, गले व बाहों पर लगाने से त्वचा में चमक आती है।
2- दही में बेसन मिलाकर लगाने से त्वचा की सफाई हो जाती है। इस प्रयोग स मुंहासों में भी लाभ होता है।
3- दही में आटे का चोकर मिलाकर दस मिनट रखें। फिर इसे उबटन की तरह प्रयोग करें। इस उबटन से त्वचा को विटामिन ‘सी’ व ‘ई’ मिलता है जिससे उसमें चमक बनी रहती है।
4- दही में काली मिट्टी मिलाकर केश धोने से केश मुलायम, चमकीले व घने हो जाते हैं।
5- दही का रोजाना सेवन सर्दी और साँस की नली में होने वाले इंफेक्शन से बचाता है।
6- मुंह के छालों में दही कम करने के लिए दिन में कई बार दही की मलाई लगाएं। इसके अलावा शहद व दही की समान मात्रा मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
7- अलग-अलग शैंपू और रंगों का उपयोग करने से बालों की चमक कम हो गई हैं तो दही में बेसन घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद सिर धो लें। इससे बालों की चमक लौट आएगी और बालों की रूसी की समस्या से भी आपको निजात मिलेगी।

सावधानियां

1. सायंकालीन भोजन व रात्रि में दही का सेवन नहीं करें।

2. विद्यार्थियों को परीक्षा के दिनों में दही का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। जिन छात्रों को दोपहर व सायंकाल परीक्षा का समय हो तो विशेष सावधानी रखना चाहिए। दही आलस्य लाता है।

3. खट्टा दही सेवन न करें। ताजे दही का प्रयोग करें।

4. सर्दी, खांसी, अस्थमा के रोगियों को भी दही से परहेज करना चाहिए।

5. त्वचा रोगों में दही का सेवन सावधानी पूर्वक चिकित्सक के निर्देशन में करना चाहिए।

6. मात्रा से अधिक दही के सेवन से बचना चाहिए।

7. अर्श (पाईल्स ) के रोगियों को भी दही का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।तो ऐसी है दही ,बड़ी गुणकारी,रोगों में दवा पर सावधानी से करें प्रयोग।

8. दही सदैव ताजी एवं शुद्ध घर में मिटटी के बर्तन की बनी हो तो अत्यंत गुणकारी होती है।
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श्वेतार्क ........


प्रिय मित्रो श्वेतार्क ( मदार ) से आप सब लॊग लगभग परिचित ही होगे ! इसकी तंत्र शास्त्र में बहुत उपयोगिता है / जहा इसके पुष्प भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है वही जिनका सूर्य अशुभ हो तो इसकी समिधा से यज्ञ करने पर सूर्य कृत कष्टों में कमी आती है ! मदार के पौधे में कही भी एक खरोच लगा दे - तत्काल दूध निकल पडेगा .. कोई भी पत्ता तोड़े तुरंत उस जगह से दूध टपकने लगेगा ! यह दूध विषाक्त होता है और प्रयोग भेद से दवाओ के निर्माण में प्रमुख घटक बनता है ! आख में पड़ने पर यह आख की पुतली को भारी हानि पंहुचा सकता है अतः इसे तोड़ते समय लोग दूध की छिटो से बहुत सावधान रहते है !
मित्रो बैगनी रंग के फूल वाला मदार बहुतायत से मिलता है ! इसे काला मदार ,कृष्ण मदार आदि नामो से भी जाना जाता है ! एक मदार ऐसा भी है जिसके फूल बिलकुल सफ़ेद होते है बस इसी पौधे की जरुरत है आप को आध्यात्म में ! जिस दिन रविपुष्य हो उस दिन इसका प्रयोग करना सिद्धि प्रद है !
इसके कुछ प्रयोग स्पष्ट कर रहा हु आशा करता हु की आप लोग अवश्य लाभान्वित होगे !

(१) रवि पुष्य के दिन प्रातः स्नान आदि करने के बाद यह सफ़ेद मदार का पौधा विधिवत ले आये इसकी मूल को जल से साफ़ कर अपने पूजा कक्ष में चौकी के ऊपर रखकर विधिवत पूजन कर ले उसके बाद (ॐ गं गणपतये नमः) मंत्र का ५ माला जप कर इसकी मूल ( जड़ ) का कुछ भाग ताबीज में करके धारण कर ले या किसी को करवा दे तो यह प्रयोग समस्त वायव्य बाधाओ - नजर , टोना तंत्र प्रयोग आदि से पूरी सुरक्षा रखता है !

(२) रवि पुष्य के दिन प्रातः स्नान आदि करने के बाद यह सफ़ेद मदार का पौधा विधिवत ले आये अब सर्वप्रथम अपनी दैनिक पूजा आदि कर ले फिर सफ़ेद मदार की मूल को देशी घी ( गाय का ) के साथ पत्थर पर चन्दन की भाति घिसते जाए और ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का मानसिक जप करते रहे जितना भी आप को पेस्ट बनाना है उतना घिस लेने के बाद उसमें शुद्ध गोरोचन मिलाकर पूरा मिक्स कर ले और तैयार पेस्ट को किसी पात्र में निकालकर धुपित कर ले और इसके सामने अपने इष्ट मंत्र की १ माला और १ माला गणेश मंत्र ॐ गं गणपतये नमः की जप कर यह लेप तिलक की भाति लगाले! यह तिलक प्रबल सम्मोहनकारी होता है ! इस लेप को रवि पुष्य के दिन बना कर तैयार कर ले जब आवश्यकता हो तिलक कर के समारोह - मीटिंग -अधिकारी के समक्ष जाए पूरा लाभ मिलता ही है बिजनेस करने वालो को तो नित्य इसका तिलक करना ही चाहिए जिससे उनको अपनी बात ग्राहकों के समक्ष रखने में अनुकूलता प्राप्त होती ही है !

(३) विधिवत रविपुष्य में प्राप्त और पूजित श्वेतार्क मूल का टुकड़ा किसी धागे के सहारे कमर में बाँधकर सम्भोग रत होने से ! यह काम शक्ति को बढ़ाते हुए , वीर्य स्तम्भन तक कर देता है ऐसा सिद्धो का मत है !
नोट - श्वेतार्क मूल को शुभ मुहूर्त में लाने की पूरी एक विधवत विधि होती है और उस तरह से लाने और प्रयोग करने पर पूर्ण लाभ प्राप्त होता ही है !

भाईयो - बहनों समय कम है साधना -प्रयोग अनंत है अपनी सुविधा अनुसार प्रयोग करे ! एक दिन में एक से अधुक प्रयोग आप अपनी सुविधा अनुसार कर सकते है ! पुनः आप सब को बता दू की दिनांक २७ अक्तूबर -२०१३ को पड़ने वाला रवि पुष्य इस वर्ष का अन्तिम रविपुष्य है !

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त्वचा की देखभाल कैसे की जाए


अकसर युवा अपनी त्वचा को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं क्योंकि ऐसे मौसम में ही त्वचा पर इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। वैसे आप उबटन से पा सकते हैं दमकती त्‍वचा लेकिन हम कुछ खास टिप्स युवाओं के लिए बता रहे हैं। आइए जानें टिप्स फॉर यूथ। 

आपकी जीवनशैली और खानपान आपकी त्वचा को बहुत प्रभावित करती है। जंकफूड आपकी त्वचा को डल बनाता है इसीलिए खाने-पीने का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।
चेहरे की चमक-दमक बरकरार रखने के लिए रोज चेहरे की ठीक तरह से साफ-सफाई करना जरूरी है।
हर रोज चेहरे को क्लीजिंग, टोनिंग, एक्सफोलिएशन, मॉश्चराइजिंग से सुबह-शाम धोना और साफ करना चाहिए।
धूप में जब भी बाहर निकले सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल कीजिए।
आप अपने चेहरे को ग्लो देने के लिए फेशियल भी करवा सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि आपको ये पता होना जरूरी है कि फेशियल क्लीजिंग या ट्रीटमेंट में से कौन सा आपको करवाना है।
हरी सब्जियों के पानी से चेहरा धोने से भी त्वचा में चमक आती है।
युवा लड़कियों को फेशियल करवाने से बचना चाहिए लेकिन वे पील-ऑफ करवा सकती है। इससे त्वचा को अंदरूनी तौर पर किसी तरह का नुकसान नहीं होता बल्कि चेहरे पर जमा डेड स्किन हट जाती है।
चेहरे को चमकाने के लिए फेस मास्क का प्रयोग किया जा सकता है। इसे आप घर में भी कर सकती है। फेस मास्क मौसम के हिसाब से अलग-अलग होते है। गर्मियों में कूलिंग मास्क का प्रयोग किया जाता है। खीरे और मुल्तानी मिट्टी वाले फेस मास्क चेहरे का तरोताजा बनाते हैं साथ ही ठंडक भी देते हैं।
एक चम्मच शहद में एक चम्मच पानी मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएँ। सूख जाने पर पानी से चेहरा धो लें। इससे त्वचा चिकनी और कोमल होगी।
पौष्टिक भोजन के साथ ही व्यायाम, एक्सरसाइज करने से भी त्वचा में प्राकृतिक निखार आएगा।
आने लाइफ स्टाइल को बदले और जल्दी सोकर जल्दी उठने से भी आप हेल्दी रहेंगे और फ्रेश महसूस करेंगी।
हेल्दी और ग्लोइंग स्किन पाने के लिए तनावमुक्त रहना भी बेहद जरूरी है। साथ ही अपनी नींद पूरी करें।
तीन-चार बादाम दूध में भिगो दें। जब फूल जाएँ तब उन्हें दूध में पीसकर लेप बना लें और रात को सोने से पहले कुछ देर तक चेहरे पर मालिश करें और सुबह पानी से चेहरा धो लें।
बेसन में थोड़ा दही मिलाकर लेप बना लें और उसे चेहरे पर लगाएं। कुछ देर लगा रहने दें। फिर चेहरे को पानी से धो लें। इससे त्वचा का रंग सुधरेगा तथा चेहरे पर पड़े दाग-धब्बे, झुर्रियाँ आदि दूर होंगी।
दूध, शहद, संतरे का रस तथा गाजर का रस लेकर अच्छी तरह मिलाकर लेप तैयार कर लें। इससे चेहरे पर धीरे-धीरे मालिश करें। कुछ देर बाद चेहरा धो लें।

इन टिप्स को अपनाकर न सिर्फ आप ग्लोइंग स्किन पा सकती हैं बल्कि तरोताजा महसूस करते हुए हेल्दी भी रहेंगी।
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धूम्रपान का नकारात्‍मक असर पड़ता है इनसान की कार्यक्षमता पर


धूम्रपान का असर मानव कार्यक्षमता पर

धूम्रपान की लत हमारी सेहत के लिए कितनी खतरनाक है यह तो हम जानते ही हैं। हमें मालूम है कि धूम्रपान करने से कई बीमारियां इनसान को अपना शिकार बना लेती हैं। हृदय रोग, फेफड़े का रोग और कैंसर जैसे खतरनाक रोगों का बड़ा कारण धूम्रपान ही होता है। लेकिन, क्‍या धूम्रपान का असर केवल इनसान के स्‍वास्‍थ्‍य पर ही पड़ता है। 

एक ताजा सर्वे में यह बात सामने आयी है कि धूम्रपान करने की लत न केवल सेहत, बल्कि व्‍यक्ति की कार्यक्षमता पर भी असर डालती है। यानी सिगरेट की लत इनसान पर दोहरी मार करती है। व्‍यक्ति की सेहत और काम दोनों के लिए यह आदत बुरी मानी जाती है।

इस सर्वे में पाया गया कि सिगरेट पीने के लिए लोग अपने काम से ब्रेक लेते हैं। जिससे वे रोजाना करीब 45 मिनट अपनी सीट पर मौजूद नहीं रहते। इन सबको मिलाकर वे साल में एक हफ्ते की छुट्टी के बराबर काम से नदारद रहते हैं। यानी हर बार सिगरेट पीने के लिए अपनी सीट से उठने पर अपने काम का नुकसान करते हैं।

ब्रिटेन की एक कंपनी ने अपने सर्वे में यह दावा किया है। इसमें शामिल पांच में से एक व्‍यक्ति ने माना कि सिगरेट पीने के कारण वे उन सहकर्मियों के मुकाबले कम काम कर पाते हैं जो धूम्रपान नहीं करते। धूम्रपान करने वाले लोगों ने स्‍वीकारा कि वे रोजाना काम से छह बार ब्रेक लेते हैं। और हर बार सिगरेट पीने पर वह करीब साढ़े सात मिनट खर्च करते हैं।
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तुलसी के पौधे के मुरझाने का कारण


आपके घर में तुलसी के पौधे का न बढ़ पाने तथा कुछ समय बाद ही मुरझा जाने के तथ्य से पहले आपको यह जानना होगा कि आप के आसपास का वातावरण कैसा है? क्योंकि आज के इंसानी शरीर के अन्दर वातावरण को जानने की शक्ति नहीं बची है | आधुनिक जीवनशैली का मनुष्य काम। क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार के दोष से जकड़ा हुआ है |

वातावरण को जानने की शक्ति सिर्फ जानवरों तथा पक्षियों के पास ही बची हुई है | आप ध्यान से देखना जिस जगह का वातावरण नकारात्मक होता है, उस जगह पर जानवर तथा पक्षी भी नहीं जाते हैं क्योंकि इनके अन्दर नकारात्मक ऊर्जा को पहचानने की शक्ति होती है | जानवरों व पक्षियों से अधिक पेड़-पौधों में नकारात्मक ऊर्जा को जानने की शक्ति होती है |

आपके घर का वातावरण नकारात्मक ऊर्जा से भरा है तो आपके घर में तुलसी के पौधे का न बढ़ पाने व कुछ ही समय में मुरझा जाने का भी मुख्य कारण यही है |

आईये अब मैं आपको तुलसी के पौधे के विषय में समझाता हूँ | तुलसी का पौधा हमेशा पाजिटिव ऊर्जा में ही चल सकता है | तुलसी का पौधा खुद अपने आप में एक पाजिटिव ऊर्जा लिये होता है क्योंकि पांच तत्वों के अनुसार तुलसी के पौधे में अग्नि तत्व की मात्रा बहुत अधिक होती है तथा पांच तत्वों में अग्नि तत्व को प्रधान तत्व माना गया है | इसीलिये तुलसी का पौधा बहुत ही ज्यादा गर्मी लिये हुये होता है |

उदाहरण के तौर पर जब आपको सर्दी, खांसी व जुकाम हो जाता है तो तुलसी के चार पत्तों की चाय आपको तुरन्त गर्मी देकर आपके सर्दी, खांसी व जुकाम को ठीक कर देती है |
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गुड के औषधीय गुण



गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए , जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल ना हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा।इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है।
- देशी गुड़ प्राकृतिक रुप से तैयार किया जाता है तथा कोई रसायन इसके प्रसंस्करण के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे अपने मूल गुण को नहीं खोना पड़ता है, इसलिए यह लवण जैसे महत्वपूर्ण खनिज से युक्त होता है।
- गुड़ सुक्रोज और ग्लूकोज जो शरीर के स्वस्थ संचालन के लिए आवश्यक खनिज और विटामिन का एक अच्छा स्रोत है।
- गुड़ मैग्नीशियम का भी एक अच्छा स्रोत है जिससे मांसपेशियों, नसों और रक्त वाहिकाओं को थकान से राहत मिलती है।
- गुड़ सोडियम की कम मात्रा के साथ-साथ पोटेशियम का भी एक अच्छा स्रोत है, इससे रक्तचाप को नियंत्रित बनाए रखने में मदद मिलती है।
- भोजन के बाद थोडा सा गुड खा ले ; सारा भोजन अच्छे से और जल्दी पच जाएगा।
- गुड़ रक्तहीनता से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि यह लोहे का एक अच्छा स्रोत है यह शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर को बढाने में मदद करता है।
- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है।
- गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और जस्ता होता है जो बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।
- यह रक्त की शुद्धि में भी मदद करता है, पित्त की आमवाती वेदनाओं और विकारों को रोकने के साथ साथ गुड़ पीलिया के इलाज में भी मदद करता है।
- गुड़ शरीर को विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने में मदद करता है। सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।
- यह खांसी, दमा, अपच, माइग्रेन, थकान व इसी तरह की अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से निपटने में मदद करता है। - यह संकट के दौरान तुरन्त ऊर्जा देता है।
- लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने यह मददगार होता है।
- गुड़ गले और फेफड़ों के संक्रमण के इलाज में फायदेमंद होता है।
- यह व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में सहायक होता है।
- गुड़ शरीर में जल के अवधारण को कम करके शरीर के वजन को नियंत्रित करता है।
- उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त गुड़ उच्च स्तरीय वायु प्रदूषण में रहने वाले लोगों को इससे लड़ने में मदद करता है, संक्षेप में कहें, तो गुड़ एक खाद्य पदार्थ कम, औषधि ज्यादा है।

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सिर्फ तीन आसान एक्सरसाइज और तोंद गायब


सिर्फ तीन आसान एक्सरसाइज और तोंद गायब

बढ़ती तोंद अगर इन दिनों आपके जीवन का सबसे बड़ा तनाव है और इसे कम करने की मशक्कत में पसीना बहाकर आप तंग आ चुके हैं तो हमारे पास आपके लिए तीन आसान एक्सरसाइज हैं। हेल्दी डाइट और रोज सुबह 20 मिनट की सैर यकीनन आपके पेट की चर्बी घटाने में कारगर होगी।

1. साइकिल क्रंच
जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं और दोनों हाथों को सिर के नीचे लगाएं। अब पैरों से हवा में साइकिल चलाने का अभ्यास करें, साथ ही शरीर के ऊपरी हिस्से को उसी अवस्था में ऊपर उठाएं कि कोहनी से घुटने छूने चाहिए। तीन मिनट तक इसका अभ्यास दिन में कम से कम दो बार करें।

2. बोट स्टाइल
'बोट' यानी नाव के आकार में शरीर को स्ट्रेच करने की यह एक्सरसाइज पेट का फैट कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके लिए जमीन पर बैठ जाएं, दोनों पैर सीधे होने चाहिए। अब दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए सांस खींचें और झुकते हुए दोनों पंजों को हाथों से छुएं। कोशिश करें कि आपके कंधों से घुटने छूने चाहिए। रोज दिन में तीन बार यह एक्सरसाइज करें।

3. प्लैंक
पेट के बल सीधे लेट जाएं जिससे पंजे और माथा जमीन पर टिका हो। अब पंजों और हाथों के बल शरीर को ऊपर उठाएं जिससे शरीर का भार इन पर ही पड़े। 10 सेकंड तक इसी अवस्था में रहने के बाद सामान्य अवस्था में आ जाएं। दिन में तीन बार इसे करें।

रोज इन्हें अपने रुटीन में शामिल करेंगे तो वाकई फर्क महसूस करेंगे।
 

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आंवले के प्रयोग Uses of Amla


बालों के रोग : -आंवले का चूर्ण पानी में भिगोकर रात्रि में रख दें। सुबह इस पानी से रोजाना बाल धोने से उनकी जड़े मजबूत होंगी, उनकी सुंदरता बढ़ेगी और मेंहदी मिलाकर बालों में लगाने से वे काले हो जाते हैं।

"पेशाब की जलन : -* आधा कप आंवले के रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर पिएं।
* हरे आंवले का रस 50 ग्राम, शक्कर या शहद 25 ग्राम थोड़ा पानी मिलाकर सुबह-शाम पीएं। यह एक खुराक का तोल है। इससे पेशाब खुलकर आयेगा जलन और कब्ज ठीक होगी। इससे शीघ्रपतन भी दूर होता है।"

"हकलाहट, तुतलापन : -* बच्चे को 1 ताजा आंवला रोजाना कुछ दिनों तक चबाने के लिये दें। इससे जीभ पतली, आवाज साफ, हकलाना और तुतलापन दूर होता है।
* हकलाने और तुतलाने पर कच्चे, पके हरे आंवले को कई बार चूस सकते हैं।"

खून के बहाव (रक्तस्राव) : -स्राव वाले स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाएं, स्राव बंद हो जाएगा।

धातुवर्द्धक (वीर्यवृद्धि) : -एक चम्मच घी में दो चम्मच आंवले का रस मिलाकर दिन में 3 बार कम-से-कम 7 दिनों तक ले सकते हैं।

पेशाब रुकने पर : -कच्चे आंवलों को पीसकर बनी लुग्दी पेडू पर लगाएं।

आंखों (नेत्र) के रोग में : -* लगभग 20-50 ग्राम आंवले के फलों को अच्छी तरह से पीसकर 2 घंटे तक आधा किलो ग्राम पानी में उबालकर उस जल को छानकर दिन में 3 बार आंखों में डालने से आंखों के रोगों में बहुत लाभ होता है।
* वृक्ष पर लगे हुये आंवले में छेद करने से जो द्रव पदार्थ निकलता है। उसका आंख के बाहर चारों ओर लेप करने से आंख के शुक्ल भाग की सूजन मिटती है।
* आंवले के रस को आंखों में डालने अथवा सहजन के पत्तों का रस 4 ग्राम तथा सेंधानमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग इन्हें एक साथ मिलाकर आंखों में लगाने से शुरुआती मोतियाबिंद (नूतन अभिष्यन्द) नष्ट होता है।
* लगभग 6 ग्राम आंवले को पीसकर ठंडे पानी में भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उन आंवलों को निचोड़कर फेंक दें और उस जल में फिर दूसरे आंवले भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उनको भी निचोड़ कर फेंक दें। इस प्रकार 3-4 बार करके उस पानी को आंखों में डालना चाहिए। इससे आंखो की फूली मिटती है।
* आंवले का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आंवले के साथ हरा धनिया पीसकर खाने से भी आंखों के रोग में लाभ होता है"

सुन्दर बालों के लिए : -* सूखे आंवले 30 ग्राम, बहेड़ा 10 ग्राम, आम की गुठली की गिरी 50 ग्राम और लौह चूर्ण 10 ग्राम, रात भर कढाई में भिगोकर रखें। बालों पर इसका रोजाना लेप करने से छोटी आयु में सफेद हुए बाल कुछ ही दिनों में काले पड़ जाते हैं।
* आंवले, रीठा, शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते हैं।
* आंवले और आम की गुठली की मज्जा को साथ पीसकर सिर में लगाने से मजबूत लंबे केश पैदा होते हैं।

आवाज का बैठना : -* अजमोद, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक इनको समान मात्रा में मिलाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु और 1 चम्मच घी के साथ चाटने से आवाज का बैठना ठीक हो जाता है।
* एक चम्मच पिसे हुए आंवले को गर्म पानी से फंकी लेने से बैठा हुआ गला खुल जाता है और आवाज साफ आने लगती है।
* कच्चे आंवले बार-बार चूस-चूसकर खाएं।

हिक्का (हिचकी) : -* पिपली, आंवला, सोंठ इनके 2-2 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर बार-बार प्रयोग करने से हिचकी तथा श्वास रोग शांत होते हैं।
* आंवले के 10-20 ग्राम रस और 2-3 ग्राम पीपल का चूर्ण, 2 चम्मच शहद के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
* 10 ग्राम आंवले के रस में 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण और 5 ग्राम शहद मिलाकर चाटने से हिचकियों से राहत मिलती है।
* आंवला, सोंठ, छोटी पीपल और शर्करा के चूर्ण का सेवन करने से हिचकी नहीं आती है।
* आंवले के मुरब्बे की चाशनी के सेवन से हिचकी में बहुत लाभ होता है।


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एक रहस्य जो आपका जीवन बदल सकता है.



एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था । किन्तु किसी गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्युहो गयी । अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया ।

जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा, “बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमतका पता लगाओ | लेकिन ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है |”

युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली |

”अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा |

”देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो | तौलने के काम आएगा |”- सब्जी वाली बोली ।

युवक आगे बढ़ गया । इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही ।

दुकानदार बोला, ” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ, देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ” |

युवक इस बार एक सुनार के पास गया, सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की |

फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला |

और अंत में युवक शहर के सबसेबड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला,” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें” |

विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला, ”यह तो एक अमूल्य हीरा है | करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है” |

यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है | यह अलग बात है कि हम में से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझ तुच्छ कामो में लगा देते हैं ।

आइये हम प्रार्थना करें कि परमेश्वर सभी को इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें .
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कटहल खाने के 7 तरीके: ऐसे खाएंगे तो ये रोग बिल्कुल खत्म हो जाएंगे

ग्रामीण अंचलों में सब्जी के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफ़िल्लस है। कटहल के फलों में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बोहाईड्रेड्स के अलावा विटामिन्स पाए जाते है। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल के फलों का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। आदिवासी अंचलों में कटहल का उपयोग अनेक रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।

चलिए आज जानते हैं कुछ ऐसे ही चुनिन्दा हर्बल नुस्खों के बारे में..

कटहल के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

अल्सर में है बेहतरीन दवा
कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी होती है। हरी ताजा पत्तियों को साफ धोकर सुखा लिया जाए। सूखने के बाद पत्तियों का चूर्ण तैयार किया जाए और पेट के अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति को इस चूर्ण को खिलाया जाए तो आराम मिलता है।

मुंह के छालों में असरदार
जिन्हें मुंह में बार-बार छाले होने की शिकायत हो उन्हें कटहल की कच्ची पत्तियों को चबाकर थूकना चाहिए, आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह छालों को ठीक कर देता है।

खाना जल्दी पचा देता है
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए। इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फ़ायदा मिलता है।

जोड़ों के दर्द में रामबाण
फल के छिलकों से निकलने वाला दूध यदि गांठनुमा सूजन, घाव और कटे-फ़टे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है। इसी दूध से जोड़ दर्द होने पर जोड़ों पर मालिश की जाए तो आराम मिलता है।

डायबिटीज में लाभदायक
डांग- गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह डायबिटीज के रोगियों को देते है। यही रस हाईब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए भी उत्तम है।

गले के रोगों को मिटा देता है
कटहल पेड़ की ताजी कोमल पत्तियों को कूट कर छोटी-छोटी गोली बनाकर लेने से गले के रोग में फायदा होता है।

कब्ज को खत्म करता है
पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार पके फलों का ज्यादा सेवन करने से पेट साफ होता है और अपचन की समस्या का निवारण हो जाता है।
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करेले के कड़वेपन पर न जाइए ये बीमारियां हैं तो जरूर खाइए


जो लोग करेले की सब्जी को शौक से
नहीं खाते वह भी इसके अचूक गुणों के कारण
मुरीद हो जाते हैं। प्रति 100 ग्राम करेले
में लगभग 92 ग्राम नमी होती है। साथ
ही इसमें लगभग 4 ग्राम कार्बोहाइडेट,
15 ग्राम प्रोटीन, 20 मिलीग्राम
कैल्शियम, 70 मिलीग्राम फस्फोरस, 18
मिलीग्राम, आयरन तथा बहुत
थोड़ी मात्रा में वसा भी होती है। इसमें
विटामिन ए तथा सी भी होती है
जिनकी मात्रा प्रति 100 ग्राम में
क्रमश: 126 मिलीग्राम तथा 88
मिलीग्राम होती है।
- करेला मधुमेह में रामबाण औषधि का कार्य
करता है, छाया में सुखाए हुए करेला का एक
चम्मच पावडर प्रतिदिन सेवन करने से
डायबिटीज में चमत्कारिक लाभ मिलता है
क्योंकि करेला पेंक्रियाज को उत्तेजित कर
इंसुलिन के स्रावण को बढ़ाता है।
- विटामिन ए की उपस्थिति के कारण
इसकी सब्जी खाने से रतौंधी रोग
नहीं होता है। जोड़ों के दर्द में करेले
की सब्जी का सेवन व जोड़ों पर करेले के
पत्तों का रस लगाने से आराम मिलता है।
- करेले के तीन बीज और तीन कालीमिर्च
को पत्थर पर पानी के साथ घिसकर
बच्चों को पिलाने से उल्टी-दस्त बंद होते
हैं।करेले के पत्तों को सेंककर सेंधा नमक
मिलाकर खाने से अम्लपित्त के
रोगियों को भोजन से पहले होने
वाली उल्टी बंद होती है।
- करेला खाने वाले को कफ की शिकायत
नहीं होने पाती। इसमें प्रोटीन तो भरपूर
पाया जाता है। इसके अलावा करेले में
कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन
पाए जाते हैं। करेले की छोटी और
बड़ी दो प्रकार की प्रजाति होती है,
जिससे इनके कसैलेपन में भी अंतर आता है।
- करेले का रस और 1 नींबू का रस मिलाकर
सुबह सेवन करने से शरीर की चर्बी कम
होती है और मोटापा कम होता है।
पथरी रोगी को 2 करेले का रस प्रतिदिन
पीना चाहिए और
इसकी सब्जी खाना चाहिए। इससे
पथरी गलकर पेशाब के साथ बाहर निकल
जाती है।
- लकवे के रोगियों को करेला जबरदस्त
फायदा पहुंचाता है। दस्त और
उल्टी की शिकायत की सूरत में करेले का रस
निकालकर उसमें काला नमक और
थोड़ा पानी मिलाकर पीने से
फायदा देखा गया है।

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बथुआ का परिचय तथा औषधीय लाभ Introduction and medicinal benefits of Bathua


परिचय :बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तूक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे पत्ते होने के भेद से दो प्रकार का होता है। बथुए के पौधे 1 हाथ से लेकर कहीं-कहीं चार हाथ तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते मोटे, चिकने, हरे रंग के होते हैं। बडे़ बथुए के पत्ते बड़े होते हैं और पुष्ट होने पर लाल रंग के हो जाते हैं। बथुए के पौधे गेहूं तथा जौ के खेतों में अपने आप उग जाते हैं। इसके फूल हरे होते हैं। इसमें काले रंग के बीज निकलते हैं। बथुआ एक मशहूर साग है। इसमें लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है। यह पथरी होने से बचाता है। आमाशय को बलवान बनाता है। अगर गर्मी से बढ़े हुए लीवर को ठीक करना है तो बथुए का प्रयोग करें। बथुए का साग जितना ज्यादा खाया जाये उतना ही फायदेमंद और लाभदायक है। बथुआ के साग में कम से कम मसाला और नमक डालकर या नमक न ही मिलायें और खाया जाये तो फायदेमंद होता है। यदि स्वादिष्ट बनाने की जरूरत पड़े तो सेंधानमक मिलायें और गाय या भैंस के घी में छौंका लगायें। बथुआ का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है और दही में बनाया हुआ रायता भी स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ को रोज खाना चाहिए। बथुआ के पराठे भी बनाये जाते हैं जो ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं तथा इसको उड़द की दाल में बनाकर भी खाया जाता है। बथुआ वीर्यवर्धक है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिन्दी बथुआ, रक्त बथुआ
संस्कृत वास्तूक, क्षारपत्र
बंगाली वेतुया
फारसी मुसेलसा सरमक
अंग्रेजी व्हाइट गूज फुट

गुण : बथुआ जल्दी हजम होता है, यह खून पैदा करता है। इससे गर्म स्वभाव वालों को अत्यंत फायदा होता है। यह प्यास को शांत करता है। इसके पत्तों का रस गांठों को तोड़ता है, यह प्यास लाता है, सूजनों को पचाता है और पथरी को गलाता है। छोटे-बड़े दोनों प्रकार के बथुवा क्षार से भरे होते हैं यह वात, पित्त, कफ (बलगम) तीनों दोषों को शांत करता है, आंखों को अत्यंत हित करने वाले मधुर, दस्तावर और रुचि को बढ़ाने वाले हैं। शूलनाशक, मलमूत्रशोधक, आवाज को उत्तम और साफ करने वाले, स्निग्ध पाक में भारी और सभी प्रकार के रोगों को शांत करने वाले हैं। चिल्ली यानी लाल बथुआ गुणों में इन दोनों से अच्छा है। लाल बथुआ गुणों में बथुए के सभी गुणों के समान है। बथुवा, कफ (बलगम) और पित्त को खत्म करता है। प्रमेह को दबाता है, पेशाब और सुजाक के रोग में बहुत ही फायदेमंद है।

विभिन्न रोंगों का बथुआ से उपचार :

1 पेट के रोग में :-जब तक बथुआ की सब्जी मिलती रहे, रोज इसकी सब्जी खांयें। बथुए का उबाला हुआ पानी पीयें। इससे पेट के हर प्रकार के रोग लीवर (जिगर का रोग), तिल्ली, अजीर्ण (पुरानी कब्ज), गैस, कृमि (कीड़े), दर्द, अर्श (बवासीर) और पथरी आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

2 पथरी :-1 गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर रोज पीने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।

3 कब्ज : -बथुआ आमाशय को ताकत देता है और कब्ज को दूर करता है। यह पेट को साफ करता है। इसलिए कब्ज वालों को बथुए का साग रोज खाना चाहिए। कुछ हफ्ते लगातार बथुआ का साग खाते रहने से हमेशा होने वाला कब्ज दूर हो जाता है।

4 जुंए :-*बथुआ के पत्तों को गर्म पानी में उबालकर छान लें और उसे ठंडा करके उसी पानी से सिर को खूब अच्छी तरह से धोने से बाल साफ हो जायेंगे और जुएं भी मर जायेंगी।
*बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर को धोने से जुंए मर जाती हैं और सिर भी साफ हो जाता है।"

5 मासिक-धर्म की रुकावट :-2 चम्मच बथुआ के बीज को 1 गिलास पानी में उबालें। उबलने पर आधा पानी बचने पर इसे छानकर पीने से रुका हुआ मासिक-धर्म खुलकर आता है।

6 आंखों की सूजन पर : -रोजाना बथुए का साग खाने से आंखों की सूजन दूर हो जाती है।

7 सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़ा, कुष्ठ और त्वचा रोग में : -बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीये और सब्जी साग बना कर खायें। बथुए के उबले हुए पानी से त्वचा को धोयें। बथुआ के कच्चे पत्ते पीसकर निचोड़कर रस निकालें। 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की आग पर गर्म करें। जब रस खत्म होकर तेल रह जाये तब छानकर किसी साफ साफ शीशी में सुरक्षित रख लें और त्वचा पर रोज लगायें। इस प्रयोग को लम्बे समय तक करने से सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़ा, कुष्ठ और त्वचा रोग के सारे रोग दूर हो जाते हैं।

8 फोड़े :-बथुए को पीसकर इसमें सोंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेंकें। सेंकने के बाद इसे फोड़े पर बांध लें इस प्रयोग से फोड़ा बैठ जायेगा या पककर जल्दी फूट जायेगा।

9 जलन :-आग से जले अंग पर कच्चे बथुए का रस बार-बार लगाने से जलन शांत हो जाती है।

10 गुर्दे के रोगों में :-गुर्दे के रोग में बथुए का साग खाना लाभदायक होता है अगर पेशाब रुक-रुककर आता हो, या बूंद-बूंद आता हो, तो बथुए का रस पीने से पेशाब खुलकर आता है।

11 पेशाब के रोग :-आधा किलो बथुआ और 3 गिलास पानी लेकर उबालें, और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिलाकर लें। इसमें स्वादानुसार नींबू, जीरा, जरा-सी कालीमिर्च और सेंधानमक मिलाकर पी जायें। इस प्रकार तैयार किया हुआ पानी दिन में 3 बार पीयें। इससे पेशाब में जलन, पेशाब कर चुकने के बाद होने वाला दर्द ठीक हो जाता है। दस्त साफ आते हैं। पेट की गैस, अपच (भोजन न पचना) दूर होती है। पेट हल्का लगता है। उबले हुए पत्ते भी दही में मिलाकर खाने से बहुत ही स्वादिष्ट लगते हैं।

12 कब्ज :-*बथुआ की सब्जी बनाकर रोजाना खाते रहने से कब्ज की शिकायत कभी नहीं होती है। बथुआ आमाशय को ताकत देता है और शरीर में ताकत व स्फूर्ति लाता है।
*बथुआ को उबालकर उसमें इच्छानुसार चीनी मिलाकर एक गिलास सुबह और शाम पीने से कब्ज में आराम मिलता है।
*बथुआ के पत्तों का 2 चम्मच रस को रोजाना पीने से कब्ज दूर हो जाती है।
*बथुआ का साग, रस और इसका उबला हुआ पानी पीने से कब्ज ठीक हो जाती है।
*बथुआ और चौलाई की पकी सब्जी को मिलाकर सेवन करने से कब्ज समाप्त हो जाती है।"

13 गर्भनिवारक योग :-बथुआ के बीज 20 ग्राम की मात्रा में लेकर आधे किलो पानी में पकाते हैं। पकने पर इसे आधा रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही औरत को पिला देते हैं। इससे गर्भ बाहर आ जाएगा। एक इन्द्रायण (इंडोरन) को पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में पकाते हैं। पक जाने पर इसे निचोड़कर रस निचोड़ लेते हैं। रूई का फोहा इस पानी में भिगोकर योनि में बांधना चाहिए। इससे मृतक बच्चा भी गर्भ से बाहर आ जाएगा। यदि इंडोरन ताजी हो तो पकाने की जरूरत नहीं है। इसके रस को गर्म करके सेवन करना चाहिए।

14 गर्भपात : -बथुआ के 20 बीज को लगभग 200 मिलीलीटर पानी में उबालते हैं। इसके बाद इसके एक चौथाई रह जाने पर इसे पीने से गर्भपात हो जाता है।

15 दस्त :-बथुआ के पत्तों को लगभग 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर उसे 2 चम्मच की मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी-सी चीनी मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सुबह और शाम पिलाने से दस्त में लाभ मिलता है।

16 कष्टार्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) : -5 ग्राम बथुए के बीजों को 200 मिलीलीटर पानी में खूब देर तक उबालें। उबलने पर 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाने पर इसे छानकर पीने से मासिक-धर्म के समय होने वाली पीड़ा नहीं होती है।

17 बवसीर (अर्श) :-बथुआ का साग और बथुआ को उबालकर उसका पानी
पीने से बवासीर ठीक हो जाती है।

18 जिगर का रोग :-बथुआ, छाछ, लीची, अनार, जामुन, चुकन्दर, आलुबुखारा, के सेवन करने से यकृत (जिगर) को शक्ति मिलती है और इससे कब्ज भी दूर हो जाती है।

19 आमाशय की जलन :-बथुआ को खाने से आमाशय की बीमारियों से लड़ने के लिए रोगी को ताकत मिलती है।

20 अम्लपित्त के लिए :-बथुआ के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ पीने से आमाशय की गंदगी साफ हो जाती है और यह पित्त को बाहर निकाल देता है।

21 प्रसव पीड़ा :-बथुए के 20 ग्राम बीज को पानी में उबालकर, छानकर गर्भवती स्त्री को पिला देने से बच्चा होने के समय पीड़ा कम होगी।

22 अनियमित मासिकस्राव :-50 ग्राम बथुआ के बीजों को लेकर लगभग आधा किलो पानी में उबालते हैं। जब यह पानी 250 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो उसका सेवन करना चाहिए। इसे तीन दिनों तक नियमित रूप से सेवन करने से माहवारी खुलकर आने लगती है।

23 पेट के सभी प्रकार के रोग :-बथुआ की सब्जी मौसम के अनुसार खाने से पेट के रोग जैसे- जिगर, तिल्ली, गैस, अजीर्ण, कृमि (कीड़े) और बवासीर ठीक हो जाते हैं।

24 पेट के कीड़ों के लिए : -*बथुआ को उबालकर उसका आधा कप रस निकालकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
*1 कप कच्चे बथुआ के रस में इच्छानुसार नमक मिलाकर रोजाना पीने से पेट के कीड़ें खत्म हो जाते हैं।
*बथुआ के बीजों को पीसकर 1 चम्मच शहद में मिलाकर चाटने से पेट के कीड़े दूर हो जाते हैं।
*बथुए का रस निकालकर पीने से पेट के कीड़ें मर जाते हैं।
*चम्मच बथुए का रस रोजाना सुबह और शाम बच्चों को पिलाने से उनके पेट मे कीड़े नहीं होते हैं।
*बथुए के बीज को 1 चम्मच पिसे हुए शहद में मिलाकर चाटने से भी लाभ होता है तथा रक्तपित्त का रोग भी ठीक हो जाता है।"

25 प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) : -बथुए को उबालकर उसका उबला हुआ पानी पीने या कच्चे बथुए के रस में नमक डालकर पीने से तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने का रोग ठीक हो जाता है।

26 नकसीर : -नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में 4-5 चम्मच बथुए का रस पीने से लाभ होता है।

27 त्वचा के रोग के लिए :-चमड़ी के रोगों में बथुए को उबालकर निचोड़ लें और इसका रस निकाल कर पी लें और सब्जी को खा लें। बथुए के उबले हुए पानी से चमड़ी को धोने से भी त्वचा के रोगों में लाभ होता है। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर और निचोडकर उसका रस निकाल लें। इस 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर पका लें। जब रस जलकर तेल ही बचा रह जाये तो इसे छानकर त्वचा के रोगों पर काफी समय तक लगाने से लाभ होता है।

28 खाज-खुजली : -*रोजाना बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस निकालकर पीयें और सब्जी खायें। इसके पानी से त्वचा को धोने से भी खाज-खुजली में लाभ होता है।
*4 भाग कच्चे बथुए का रस और 1 भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म कर लें जब पानी जलकर सिर्फ तेल रह जाये तो उस तेल की मालिश करने से खुजली दूर हो जाती है।"

29 हृदय रोग :-बथुए की लाल पत्तियों को छांटकर उसका लगभग आधा कप रस निकाल लें। इस रस में सेंधानमक डालकर सेवन करने से दिल के रोगों में आराम आता है।

30 पीलिया का रोग :-100 ग्राम बथुए के बीज को पीसकर छान लें। 15-16 दिन तक रोजाना सुबह आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

31 दाद के रोग में :-बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस पी लें और इसकी सब्जी खा लें। उबले हुए पानी से त्वचा को धोएं। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर, निचोड़कर उसका रस निकाल लें। 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर पका लें। जब रस जल जायें और बस तेल बाकी रह जाये तो तेल को छानकर शीशी में भर लें और त्वचा के रोगों में लम्बे समय तक लगाते रहने से दाद, खाज-खुजली समेत त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

32 विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-बथुआ, सौंठ और नमक को एक साथ पीसकर इसके लेप को गीले कपड़े में बांधकर इसके ऊपर मिट्टी का लेप कर दें और इसे आग पर रख कर सेंक लें। फिर इसे खोलकर गर्म-गर्म ही फुंसियों पर बांध लें। इससे फुंसियों का दर्द कम होगा और मवाद बाहर निकल जायेगी।

33 जलने पर :-*बथुए के पत्तों पर पानी के छींटे मारकर पीस लें और शरीर के जले हुए भागों पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और दर्द भी समाप्त होता है।
*शरीर के किसी भाग के जल जाने पर बथुआ के पत्तों को पीसकर लेप करने से जलन मिट जाती है।"

34 सफेद दाग होने पर : -बथुआ की सब्जी खाने से सफेद दाग में लाभ होता है। इसका रस निकालकर सफेद दागों पर लगाने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। बथुआ को रोजाना उबालकर निचोड़कर इसका रस निकालकर पी लें और इसकी सब्जी बनाकर खायें। बथुए के उबले हुए पानी से त्वचा को धोयें। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर निचोड़ लें और उसका रस निकाल लें। 2 कप बथुए के पत्तों के रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर रख दें। जब रस पूरी तरह जल जाये और बस तेल बाकी रह जाये तो तेल को छानकर शीशी में भर लें और रोजाना सफेद दागों पर लगायें। लगातार यह तेल लगाने से समय तो ज्यादा लगेगा पर सफेद दाग ठीक हो जायेंगे।

35 शरीर का शक्तिशाली होना : -बथुआ को साग के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। पत्तों के साग में बथुआ का साग सबसे अधिक फायदेमंद और सेहतमंद होता है। इसका सेवन निरंतर रूप से करने से मनुष्य की मर्दानगी बढ़ती है, खून में वृद्धि होती है, याददाश्त तेज होती है, आमाशय मजबूत होता है, पथरी से बचाव होता है, कब्ज और पेट में होने वाली जलन से छुटकारा मिल जाता है। हरे बथुए का सेवन अधिक लाभकारी होता है। अगर हरा बथुआ न मिले तो इसे सूखाकर रोटी में मिलाकर खाने से बहुत लाभ मिलता है।
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कुछ रिश्ते

कुछ रिश्ते
दिल से होते
मन में बसते
चाहे अनचाहे
अनजाने में बनते
किसी रिश्ते से
कम नहीं होते
निरंतर मिलने की
ख्वाइश तो होती
मुलाक़ात हो ना हो
दूरियां उनमें
खलल नहीं डालती
नजदीकियां
दिल की होती
इक कसक दोनों
तरफ होती
दिल से दुआ
एक दूजे के लिए
निकलती
कमी दिल में सदा
खलती
याद से रौनक
चेहरे पर आती
जहन में सुखद
अनुभूती होती
कुछ रिश्ते........
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*बुखार न उतर रहा हो तो अपनाएं ये नायाब आयुर्वेदिक नुस्खा

बुखार एक बहुत
ही आम समस्या है
जो कभी वायरल
फीवर के रूप में
तो कभी घातक
मलेरिया बनकर
अलग-अलग नामों से
यह
सभी को अपनी चपेट
में ले ही लेता है।
लेकिन अधिकतर
लोग सामान्य
बुखार में डॉक्टर के
पास जाने से बचते हैं,
ऐसे में
बिना डॉक्टर के
परामर्श दवा खाने
से अच्छा है कि आप
घरेलू आयुर्वेदिक
नुस्खों को अपनाएं।
आज हम
आपको बताने
जा रहे हैं
नानी का एक खास
औषधि। इस
औषधि को चिरायता कहा जाता है।
कैसा भी बुखार
हो चिरायता एक
ऐसी देहाती जड़ी-
बूटी मानी जाती है
जो कुनैन
की गोली से अधिक
प्रभावी होती है।
एक प्रकार से यह
एक देहाती घरेलू
नुस्खा है।पहले
चिरायते को घर में
सुखा कर
बनाया जाता था लेकिन
आजकल यह बाजार
में कुटकी चिरायते
के नाम से
भी मिलता है।
लेकिन घर पर
बना हुआ ताजा और
विशुद्ध
चिरायता ही अधिक
कारगर होता है।

*चिरायता बनाने
की विधि-
100 ग्राम
सूखी तुलसी के पत्ते
का चूर्ण, 100
ग्राम नीम
की सूखी पत्तियों का चूर्ण,
100 ग्राम सूखे
चिरायते का चूर्ण
लीजिए। इन
तीनों को समान
मात्रा में मिलाकर
एक बड़े डिब्बे में भर
कर रख लीजिए। यह
तैयार चूर्ण
मलेरिया या अन्य
बुखार होने
की स्थिति में दिन
में तीन बार दूध से
सेवन करें। मात्र
दो दिन में
आश्चर्यजनक लाभ
होगा।
कारगर

*एंटीबॉयोटिक-
बुखार ना होने
की स्थिति में
भी यदि इसका एक
चम्मच सेवन
प्रतिदिन करें
तो यह चूर्ण
किसी भी प्रकार
की बीमारी चाहे
वह स्वाइन फ्लू
ही क्यों ना हो, उसे
शरीर से दूर
रखता है। इसके सेवन
से शरीर के सारे
कीटाणु मर जाते हैं।
यह रोग
प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ाने में
भी सहायक है। इसके
सेवन से खून साफ
होता है
तथा धमनियों में
रक्त प्रवाह सुचारू
रूप से संचालित
होता है।

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कमर को पतली और आकर्षक बनाना है तो ये तरीका अपनाएं If you want to make your waist thin and attractive then follow this method

अगर आप अपने बढ़ते
वजन
या मोटी कमर से
परेशान हैं तो हम
आपको बताने
जा रहे हैं एक
ऐसा नेचुरल उपाय
जिसे अपनाकर आप
अपनी कमर
को एकदम
पतली और फिट
बना सकते हैं। कमर
पतली करने
का सबसे कारगर
उपाय है गरुड़ासन।
इस आसन से कमर
पतली हो होगी ही साथ
में कई अन्य
स्वास्थ्य लाभ
भी होते हैं। इस
आसन में
व्यक्ति का आकर
गरुड़ की तरह
हो जाता है,
इसलिए इसे
गरुड़ासन कहते हैं।

*गरुडासन
की विधि-
समतल और शांत
तथा स्वच्छ वायु
(हवा) के प्रवाह
वाले स्थान पर
गरुड़ासन
करना चाहिए। इस
आसन में पहले
सामान्य
स्थिति (सावधान
की स्थिति) में खड़े
हो जाएं। इस के
बाद बाएं पैर
को सीधा रखें और
दाएं पैर को बाएं
पैर में लता की तरह
लपेट लें। अब
दोनों हाथों को सीने
के सामने रखकर
हाथों को आपस में
लता की तरह लपेट
कर हाथों को थोड़े
से आगे की ओर करें।
इस स्थिति में
दोनों हाथ गरुड़
की चोंच की तरह
बना रहें। इसके बाद
स्थिर पैर (बाएं
पैर) को धीरे-धीरे
नीचे झुकाते हुए
दाएं पैर
को पंजों पर सटाने
की कोशिश करें। इस
स्थिति में 1 मिनट
तक रहें। इस के बाद
सामान्य स्थिति में
आ जाएं। फिर दाएं
पैर को नीचे
सीधा खड़ा रखकर
बाएं पैर को उस
लता की तरह लपेट
लें।
हाथों की स्थिति पहले
की तरह ही रखें।
इस तरह इस
क्रिया को दोनों पैरों से
5-5 बार करें। इस के
अभ्यास को धीरे-
धीरे बढ़ाते जाएं।

लाभ- गरुड़ासन से
रीढ़ की हड्डी में
लचीलापन आता है,
कमर
पतली होती है
तथा बाहों व
टांगों की मांसपेशियां तथा नस
नाडिय़ां चुस्त
बनती है। इससे पैर,
घुटने व
जांघों को मजबूती मिलती हैं।
यह कंधे, बाहें
तथा कोहनियों आदि के
दर्द व कम्पन
को ठीक करता है।
यह शरीर के कम्पन
को दूर करता है।
यह कमर दर्द,
गठिया (जोड़ों का दर्द),
और आंत उतरने
की बीमारी (हर्निया)
आदि रोग ठीक
होता है। बवासीर,
अण्डकोष
वृद्धि (हाइड्रोसिल)
तथा मूत्र
सम्बन्धी रोग के
रोगियों को यह
आसन करना अधिक
लाभकारी हैं।
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स्त्री और पुरुषों की इन प्रॉब्लम्स में ये देहाती पौधा है


आप इसे छुने जाइए,
इसकी पत्तियाँ शर्मा कर
सिकुड़ जाएंगी,
अपने इस स्वभाव
की वजह से इसे
शर्मिली के नाम से
भी जाना जाता है।
शर्मिले स्वभाव के
इस पौधे में जिस
तरह के औषधीय गुण
हैं, आप भी जानकर
दाँतों तले
उंगली दबा लेंगे।
छुई-मुई को जहाँ एक
ओर देहातों में
लाजवंती या शर्मीली के
नाम से
जाना जाता है
वहीं इसे
वानस्पति जगत में
माईमोसा पुदिका के
नाम से
जाना जाता है।
संपूर्ण भारत में
उगता हुआ दिखाई
देने वाला यह
पौधा आदिवासी अंचलों में
हर्बल नुस्खों के
तौर पर अनेक
रोगों के निवारण
के लिए उपयोग में
लाया जाता है।
चलिए आज जानते है
इस पौधे से जुडे
तमाम
आदिवासी हर्बल
नुस्खों के बारे में..
छुई-मुई से
जुड़ी समस्याओं और
उनके निवारण के
संदर्भ में रोचक
जानकारियों और
परंपरागत हर्बल
ज्ञान का जिक्र
कर रहें हैं डॉ दीपक
आचार्य
(डायरेक्टर-
अभुमका हर्बल
प्रा. लि.
अहमदाबाद)। डॉ.
आचार्य पिछले 15
सालों से अधिक
समय से भारत के
सुदूर
आदिवासी अंचलों जैसे
पातालकोट
(मध्यप्रदेश), डाँग
(गुजरात) और
अरावली (राजस्थान)
से आदिवासियों के
पारंपरिक ज्ञान
को एकत्रित कर
उन्हें आधुनिक
विज्ञान की मदद
से प्रमाणित करने
का कार्य कर रहें
हैं।

छुई-मुई
को आदिवासी बहुगुणी पौधा मानते
हैं, उनके अनुसार यह
पौधा घावों को जल्द
से जल्द ठीक करने के
लिए बहुत
ज्यादा सक्षम
होता है।

इसकी जड़ों का 2
ग्राम चूर्ण दिन में
तीन बार गुनगुने
पानी के साथ
लिया जाए
तो आंतरिक घाव
जल्द आराम पड़ने
लगते हैं।
आधुनिक विज्ञान
की शोधों से ज्ञात
होता है कि हड्डियों के
टूटने और माँस-
पेशियों के आंतरिक
घावों के उपचार में
छुई-मुई की जड़ें
काफी महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करती हैं।
घावों को जल्दी ठीक
करने में इसकी जड़ें
सक्रियता से कार्य
करती हैं।

छुई-मुई की जड़ों और
बीजों का चूर्ण दूध
के साथ लेने से
पुरूषों में वीर्य
की कमी की शिकायत
में काफी हद तक
फायदा होता है।

पातालकोट के
आदिवासी रोगियों को जड़ों और
बीजों के चूर्ण
की 4ग्राम
मात्रा हर रात
एक गिलास दूध के
साथ लेने की सलाह
देते हैं। ऐसा एक
माह तक लगातार
किया जाए
तो सकारात्मक
परिणाम देखे
जा सकते हैं।

पातालकोट के
आदिवासियों के
अनुसार छुई-मुई
की जड़ और
पत्तों का पाउडर
दूध में मिलाकर
दो बार देने से
बवासीर और भंगदर
रोग ठीक होता है।
डाँग में
आदिवासी पत्तियों के
रस को बवासीर के
घाव पर सीधे
लेपित करने
की बात करते हैं।
इनके अनुसार यह
रस घाव को सुखाने
का कार्य करता है
और अक्सर होने
वाले खून के बहाव
को रोकने में
भी मदद करता है।

मध्यप्रदेश के कई
इलाकों में
आदिवासियों छुई-
मुई के पत्तों का 1
चम्मच पाउडर
मक्खन के साथ
मिलाकर भगंदर और
बवासीर होने पर
घाव पर रोज सुबह-
शाम या दिन में 3
बार लगाते हैं।

छुई-मुई के
पत्तों को पानी में
पीसकर नाभि के
निचले हिस्से में लेप
करने से पेशाब
का अधिक आना बंद
हो जाता है।
आदिवासी मानते हैं
कि पत्तियों के रस
की 4 चम्मच
मात्रा दिन में एक
बार लेने से
भी फायदा होता है।

यदि छुई-मुई
की 100 ग्राम
पत्तियों को 300
मिली पानी में
डालकर
काढा बनाया जाए
तो यह
काढा मधुमेह के
रोगियों को काफ़ी फ़ायदा होता है।
इसके बीजों को
एकत्र कर
सुखा लिया जाए
और चूर्ण तैयार
किया जाए।

पातालकोट के
आदिवासी हर्बल
जानकार इसके
बीजों के चूर्ण (3
ग्राम) को दूध के
साथ मिलाकर
प्रतिदिन रात
को सोने से पहले
लिया जाए
तो शारीरिक
दुर्बलता दूर कर
ताकत प्रदान
करता है।

छुई-मुई और
अश्वगंधा की जड़ों
की समान
मात्रा लेकर पीस
लिया जाए और
तैयार लेप को ढीले
स्तनों पर हल्के
हल्के मालिश
किया जाए
तो स्तनों का ढीलापन
दूर होता है।

छुई-मुई
की जड़ों का चूर्ण
(3ग्राम) दही के
साथ खूनी दस्त से
ग्रस्त
रोगी को खिलाने
से दस्त जल्दी बंद
हो जाती है।
वैसे डाँगी आदिवासी मानते है कि जड़ों
का पानी में
तैयार काढा भी
खूनी दस्त
रोकने में कारगर
होता है।
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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...