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खण्डित शिवलिंग, जिसकी पूजा होती है
खण्डित शिवलिंग, जिसकी पूजा होती है ।
हमारे देश में एक दो स्थानों पर और भी खण्डित शिवलिंग है जिनके साथ कई तरह की कथाएं जुडी हुई है किंतु इस शिवलिंग की जैसी प्रमाणिकता कहीं नहीं मिलती । जिस स्थान पर यह शिवलिंग है पहले समुद्र इस जगह तक फैला हुआ था और मो.गजनवी सोमनाथ पर 17 वीं बार आक्रमण करने के बाद राजस्थान की ओर वापसी में अपनी सेना के साथ इसी जगह पर पडाव डाला । उसकी सेना के घोडों की टापों से यह शिवलिंग टुट गया इसके बाद गजनवी नें इस शिवलिंग पर आकर अपना भाला घुसेड दिया और पैर रखकर खडा हो गया जिससे क्रुद्ध होकर भगवान शिव भौंरे के रूप में इस शिवलिंग के छिद्रों से बाहर आकर सारी सेना पर हमला कर दिये और गजनवी सहित सारी सेना को समाप्त कर दिये । जब आसपास के लोगों नें इस शिवलिंग को टुटा देखे तो इसकी पूजा बंद कर दिये लेकिन कुछ ही दिनों के बाद इस शइवलिंग से गंगाजल बाहर आने लगा जिसकी वजह से फिर से इस खण्डित शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हो गई है ।
अब इस कथा को सुकर मैं चौंक गया की क्या सचमुच गजनवी की मौत यहीं पर हुई थी मैने फिर से पुछा और जवाब फिर यही मिला । जब मैने इस शिवलिंग को गौर से देखा तो सचमुच इसपर घडों की टापों के निशान दिखे और साथ ही बीच में एक गढ्ढा भी दिखा जिससे गंगाजल निकलता है । इस शिवलिंग पर कई गोल गोल छिद्र हैं जैसे अक्सर भौंरे या ततैय्या के घरौंदो के होते हैं ।
इसके बाद बारी थी गजनवी की ... मुझे इसकी मौत के बारें में कोई भी प्रमाणिकता अभी तक नही मिली है । उसकी मौत कैसे हुई है इस बारे में भी कोई उल्लेख नही हैं इसलिये मैं इस कथआ को सत्य मानते हुए यह कह सकता हूँ की गजनवी का अंत स्वयं भोलेनाथ नें ही किये हैं और उसके साथ उसकी सारी सेना को गायब करके साबित कर दिये की वे स्वयं अपनी रक्षा कर सकते हैं ।
मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
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