व्यक्ति जन्म से ही ढूंढता है ............. आनंद !
मनुष्य जन्म से ही अपने वास्तविक आनंद की खोज करने लगता है
1. बाल्यावस्था में उसे लगता है की माँ के दुध में और पिता के प्रेम में ही सच्चा आनंद है!
2. किशोरावस्था में उसे लगता है की मित्रों और खिलौने में ही सच्चा आनंद है!
3. युवावस्था में उसे लगता है की पत्नी,.बच्चे और अर्थ की प्राप्ति में ही सच्चा आनंद है !
4 . प्रौढ़ावस्था में उसे लगता है की मान-सम्मान, यश-कीर्ति में ही सच्चा आनंद है !
5 . वृद्धावस्था में उसे लगता है की पुत्र-पौत्र में ही सच्चा आनंद है!
मृत्यु के समय उसे जब अपने किये हुए पापो की याद करके भयंकर वेदना होती है तब उसे महसूस होता है की सच्चा आनंद इश्वर में है .... लेकिन तब तक वो इश्वर का दिया हुआ अनमोल मानव जीवन व्यर्थ कर चूका होता है
वास्तविकता यही है की जीव का परम लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है और सच्चा आनंद, आनंद स्वरुप परमात्मा में है अर्थात..... मानव देह पाकर यदि इश्वर को नहीं जाना तो पुनः चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाना होगा....अतएव मानव देह का महत्त्व समझ कर इश्वर को समझना है .......जिससे है अपने परम चरम लक्ष्य आनंदघनस्वरुप अविनाशी परमानन्द परब्रम्ह को प्राप्त कर सकें
1. बाल्यावस्था में उसे लगता है की माँ के दुध में और पिता के प्रेम में ही सच्चा आनंद है!
2. किशोरावस्था में उसे लगता है की मित्रों और खिलौने में ही सच्चा आनंद है!
3. युवावस्था में उसे लगता है की पत्नी,.बच्चे और अर्थ की प्राप्ति में ही सच्चा आनंद है !
4 . प्रौढ़ावस्था में उसे लगता है की मान-सम्मान, यश-कीर्ति में ही सच्चा आनंद है !
5 . वृद्धावस्था में उसे लगता है की पुत्र-पौत्र में ही सच्चा आनंद है!
मृत्यु के समय उसे जब अपने किये हुए पापो की याद करके भयंकर वेदना होती है तब उसे महसूस होता है की सच्चा आनंद इश्वर में है .... लेकिन तब तक वो इश्वर का दिया हुआ अनमोल मानव जीवन व्यर्थ कर चूका होता है
वास्तविकता यही है की जीव का परम लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है और सच्चा आनंद, आनंद स्वरुप परमात्मा में है अर्थात..... मानव देह पाकर यदि इश्वर को नहीं जाना तो पुनः चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाना होगा....अतएव मानव देह का महत्त्व समझ कर इश्वर को समझना है .......जिससे है अपने परम चरम लक्ष्य आनंदघनस्वरुप अविनाशी परमानन्द परब्रम्ह को प्राप्त कर सकें
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