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Sunday, February 5, 2012

कबीर के पद

काहे री नलिनी तू कुमिलानी। तेरे ही नालि सरोवर पानी॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि॥ कहे 'कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान। मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै। हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै। हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै। सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले। हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै। तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै। कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥ रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है। यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥ यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है। कहत 'कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥ झीनी-झीनी बीनी चदरिया, काहे कै ताना, काहै कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया। इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया। साँई को सियत मास दस लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया। दास 'कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया॥ मन लागो मेरो यार फकीरी में। जो सुख पावौं राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में। भली बुरी सबकी सुनि लीजै, कर गुजरान गरीबी में॥ प्रेम नगर में रहनि हमारी, भलि-बनि आई सबूरी में। हाथ में कूंडी बगल में सोंटा, चारों दिस जागीरी में॥ आखिर यह तन खाक मिलैगो, कहा फिरत मगरूरी में। कहत 'कबीर सुनो भई साधो, साहिब मिलै सबूरी में॥
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