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Thursday, February 9, 2012

भाग्‍य बडा या कर्म ?????

भाग्‍य बडा या कर्म .. इस बात पर अबतक सर्वसम्‍मति का अभाव है। दोनो पक्ष के लोग अपनी अपनी बातों को सही साबित करने के लिए अलग अलग तर्क दिया करते हैं , अलग अलग कहानियां गढा करते हैं। कर्म को मानने वाले लोगों का मत है कि हम जैसे कर्म करते हैं , वैसा ही फल मिलता है। असफलता स्थिति में हमें अपने भीतर झांकना चाहिए कि चूक कहां हुई। लेकिन हम धागे, टोने-टोटकों , माथे या हाथों की लकीरों और जन्‍मकुंडलियों से भाग्य को समझने की कोशिश करते हैं, यदि कर्म अच्छे हैं तो भाग्य अपने आप अच्छा हो ही जाएगा। इस दुनिया राजा से रंक और रंक से राजा बनने के कहानियों की कोई कमी नहीं। दूसरी ओर भाग्‍य को मानने वाले लोगों का कहना है कि क्यों कुछ बच्‍चे मजबूत शरीर और कुछ कई बीमारियों के साथ या बिना हाथ पांव के जन्‍म लेते हैं। क्‍यूं कुछ बच्‍चे सुख सुविधा संपन्न परिवारों में तो कुछ का जन्‍म दरिद्रों के घर में होता है। कुछ अच्‍छे आई क्‍यू के साथ जन्‍म लेते हैं , तो कुछ अविकसित मस्तिष्‍क के साथ ही इस दुनिया में कदम रखते हैं। कुछ का पालन पोषण माता पिता और परिवार जनों के भरपूर लाड प्‍यार में होता है , तो कुछ इससे वंचित रह जाते हैं। जबकि इन बच्‍चों ने कोई गल्‍ती नहीं की है। इसी प्रकार बडे होने के बाद किसी को मनोनुकूल जीवनसाथी मिलते हैं,तो विवाह के बाद किसी का जीवन नर्क हो जाता है। किसी को अनायास संतान का सुख मिलता है , तो कई जीवनभर डॉक्‍टरों और देवी देवताओं के चक्‍कर काटते हैं। सचमुच विपरीत पक्ष वालों के लिए इसका जबाब दे पाना कठिन है। वास्‍तव में कार्य कारण के नियमों से पूरी प्रकृति भरी पडी है। इतनी बडी प्रकृति में हमने कोई भी काम बिना नियम के होते नहीं देखा है। सूर्य अपने पथ पर तो बाकी ग्रह उपग्रह भी अपने पथ पर चल रहे हैं। पृथ्‍वी पर स्थित एक एक जड चेतन अपने अपने स्‍वभाव के हिसाब से काम कर रहे हैं। हम जैसा कर्म करेंगे , वैसा फल मिलेगा ही । बिना संतुलन के दौडेंगे , तो गिरेंगे , गिरेंगे तो चोट लगेगी। यदि कार्य और कारण का संबंध न हो तो हम कोई नियम स्‍थापित नहीं कर सकते। पर बालक ने जन्‍म लेते साथ जो पाया , वह उसके कर्म का फल नहीं। पर यहां भी तो कोई नियम काम करना चाहिए , आज विज्ञान माने या न माने , पर यह फल बिना किसी नियम के उसे नहीं मिल सकता। जबतक कर्म से अधिक फल की प्राप्ति होती रहती है , कोई भी भाग्‍य की ताकत को स्‍वीकार नहीं करता। उसे महसूस होता है कि उसे उसके किए का ही फल मिल रहा है। जिन्‍हें फल नहीं मिल रहा , वे कर्म ही सही नहीं कर रहें। पर जब कर्म की तुलना में प्रतिफल नहीं मिल पाता , लोग भाग्‍य की ताकत को महसूस करने लगते हैं। अपने आरंभिक जीवन में सफल रहनेवाले लोग इसे स्‍वीकार नहीं कर पाते , पर जैसे ही उनके जीवन में भी बिना किसी बुरे कर्म के विपत्तियां दिखाई पडती हैं , उन्‍हें भी भाग्‍य की ताकत महसूस होने लगती है। जीवन के प्रारंभिक दौर में असफलता प्राप्‍त करने वाले लोग तो जीवन में संतुलन बना भी लेते हैं , बाद में भाग्‍य के कारण असफलता प्राप्‍त करने वालों को अधिक कष्‍ट होता है। भाग्‍य को जानने के लिए अक्‍सर लोग ज्‍योतिषियों से संपर्क करते हैं , पर प्रारब्‍ध की जानकारी ज्‍योतिषियों को भी नहीं होती। भिन्‍न भिन्‍न स्‍तर वाले परिवार में भी बच्‍चे का जन्‍म एक समय में हो सकता है यानि एक जन्‍म कुंडली होते हुए भी बच्‍चे का भाग्‍य अलग अलग हो सकता है। नक्षत्रों और ग्रहों पर आधारित ज्‍योतिष मात्र काल गणना का विज्ञान है। जिस तरह घडी के समय के आधार पर अंधरे उजाले को देखते हुए दिनभर के और कैलेण्‍डर के आधार पर जाडे , गर्मी , बरसात के मौसम को समझते हुए वर्षभर के कार्यक्रमों को अंजाम दिया जाता है , उसी प्रकार हम जन्‍म कालीन ग्रहों के आधार पर अपने जीवन के उतार चढाव को समझकर तदनुरूप कार्यक्रम बना सकते हैं। जीवन में कभी समय आपके अनुकूल होता है तो कभी प्रतिकूल , प्रतिकूल समय में आपके अनुभव बढते हैं , जबकि अनुकूल समय में आपको अच्‍छे परिणाम मिलते हैं। अच्‍छे वक्‍त की जानकारी से आपका उत्‍साह, तो बुरे वक्‍त की जानकारी से आपका धैर्य बढता है। किसी खास परिवार , देश या माहौल में जन्‍म लेना तो मनुष्‍य के वश में नहीं , इसलिए जीवन में जैसी जैसी परिस्थिति मिलती जाए , उसे स्‍वीकार करना हमारी मजबूरी है , पर आशावादी सोंच के साथ अच्छे कर्म किए जा सकते हैं और उनके सहारे अपने भाग्‍य को मजबूत बनाया जा सकता है। महीने के पहली तारीख को मिले तनख्‍वाह को कम या अधिक करना आपके वश में नहीं , पर उससे पूरे महीने या पूरे जीवन अच्‍छे या बुरे तरीके से जीवन निर्वाह करना आपके वश में है। आप पहले ही दिन महीनेभर क्‍या भविष्‍य के भी कार्यक्रम बनाकर नियोजित ढंग से खर्च कर सकते हैं या बाजार में अंधाधुंध खरीदारी कर , शराब पीकर , जुआ खेलकर महीने या भविष्‍य के बाकी दिनों को बुरा बना सकते हैं। इसलिए किसी खास परिस्थिति में होते हुए भी कर्म के महत्‍व से इंकार नहीं किया जा सकता। हां , जीवन में कभी कभी ऐसा समय भी आता है ,जब भाग्‍य के साथ देने से मित्रों , समाज या कानून का कुछ खास सहयोग आपको मिलने लगता है ,किसी तरह के संयोग से आपके काम बनने लगते हैं , तो कभी दुर्भाग्‍य से असामाजिक तत्‍वों को भी आपको झेलना पडता है। 100 वर्ष की लंबी आयु में कभी दस बीस वर्षों तक ग्रहों का खास अच्‍छा या बुरा प्रभाव हमपर पड सकता है। उस भाग्य या दुर्भाग्य से खुद को फायदा दिलाने के लिए हमें आक्रामक या सुरक्षात्‍मक ढंग से जीवन जीना चाहिए। जैसे जाडे की सूरज की गर्मी को सेंककर हम खुद को गर्म रखते हैं या गर्मी की दोपहर के सूरज की ताप में बचने के किसी पेड़ की छाया में या वातानुकूलित घर में शरण लेते हैं। पर ध्‍यान रखें , जीवन में कभी भी हमारा मेहनत विफल नहीं होता । प्रकृति में प्रत्‍येक वस्‍तु का महत्‍व है , किसी में कुछ गुण हैं ,उसे विकसित करने की दिशा में कदम बढाए , आज या कल , उसकी कद्र होगी ही। कोई बीज तीन चार महीने में तो कोई दस बीस वर्ष में फल देना आरंभ करता है। हर पशु पक्षी का भी हर काम का अलग अलग समय है। देखने में एक जैसे होते हुए भी हर मनुष्‍य अलग अलग तरह के बीज हैं , इन्‍हें फलीभूत होने के लिए भी अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता होती है । आसमान में गोचर के ग्रह मनुष्‍य के सम्‍मुख विभिन्‍न परिस्थितियों का निर्माण करते हैं , जिसके आधार पर कर्म का सुंदर फल प्राप्‍त होता है। लोग भले ही इसे भाग्‍य का नाम दें , पर वह हमारे सतत कर्म का ही फल होता है।
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