25 February 2012

बुराई को भलाई से जीतने वाला राजा ही श्रेष्ठ

राजा का रथ एक बार मल्लिक राजा और ब्रह्मदत्त राजा के रथ संकरे रास्ते में आमने-सामने मिल गए। चूंकि दोनों राजाओं के रथ एक साथ निकल नहीं सकते इसलिए दोनों के सारथी एक-दूसरे से पीछे हटने के लिए कहने लगे किंतु कोई भी अपना रथ पीछे खींचने के लिए तैयार नहीं हुआ। बहुत समय तक दोनों में बहस चलती रही। आखिर में ब्रह्मदत्त राजा के सारथी ने कहा कि- दोनों राजाओं में जो श्रेष्ठ और महान है उसका रथ पहले निकलना चाहिए। मल्लिक राजा के सारथी ने कहा कि- दोनो राजा राज्य और सम्पत्ति में समान हैं, दोनों की उम्र भी बराबर है। तो फिर इस बात का निर्णय कैसे हो सकता है? ब्रह्मदत्त राजा के सारथी ने कहा- जो सदगुण और सदाचार में श्रेष्ठ है उसका रथ पहले निकलेगा। मल्लिक राजा के सारथी ने कहा कि- यह बिल्कुल ठीक है तब तो पहले मेरे राजा का रथ ही पहले जाएगा। क्योंकी वह कठोर आदमी को कठोरता से और कोमल आदमी को कोमलता से जीतते हैं। किंतु मेरे राजा क्रोधी को क्षमा से, स्वार्थी और कंजूस को उदारता से और दुराचारी को सदाचार से जीतते हैं। ब्रह्मदत्त राजा के सारथी ने बीच में ही मल्लिक राजा के सारथी को टोकते हुए कहा। ये वार्तालाप सुनकर मल्लिक राजा ने कहा- ब्रह्मदत्त का रथ पहले जाना चाहिए क्योंकी वह मुझसे ज्यादा श्रेष्ठ और महान है। इसकी वजह यह है कि वह दुर्गुण को सदगुण से जीतता है, बुराई को भलाई से जीतता है। मल्लिक राजा के सारथी ने रथ वापस मोड़ लिया और ब्रह्मदत्त राजा के रथ को आगे बढ़ने दिया।

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