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लक्ष्मी को तो एक न एक दिन जाना है
सेठ करोड़ीमल नाम का एक व्यक्ति था जैसा उसका नाम था वैसा ही वो धनवान था। माता लक्ष्मी की उस पर बहुत कृपा थी। धनवान होने के कारण उसमें अभिमान आने लगा। एक रात उसके सपने में माता लक्ष्मी आईं और बोली- सेठ करोड़ीमल तुमने बहुत धन कमाया है शायद इसलिए तुम अभिमानी हो गए हो। मैं कुछ समय के लिए तुम्हें छोड़ गंगा पार हलवाई के पास जा रही हूं। अब तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा। यह सुनकर सेठ करोड़ीमल की आंखे खुल गई।
अगले ही दिन उसने सारा धन छत की कड़ियों में छिपा दिया। लेकिन उसकी किस्मत खराब थी। कुछ दिन बाद ही भूकम्प आ गया और सेठ के मकान की छत गिर गई। उसकी कड़ियां गंगा में बहकर दूसरे किनारे पहुंच गई। गंगा किनारे बैठे नाविक बुलाकी ने जब वे कड़ियां देखी तो सोचा क्यों न इसे बेचकर कुछ पैसा बना लूं। सो उसने वे कड़ियां फकीरा हलवाई को बेच दी।
जब फकीरा हलवाई ने वे कड़ियां लुहार को तोड़ने को दी तो उसमें से सोने की अशर्फियां निकली और वे उन्हें अपने घर लेकर आ गया। उधर सेठ का बुरा हाल था। उसके घर में खाने तक के लाले पड़ गए। वह जानता था कि उसकी लक्ष्मी फकीरा के पास पहुंच गई है। एक दिन उसने सोचा कि क्यों न फकीरा के पास जाकर विनती करूं कि वह मेरी लक्ष्मी मुझे लौटा दे।
सेठ रोटी लेकर घर से निकला यात्रा के दौरान बुलाकी नाविक ने उसे गंगा पार कराई और अपना किराया मांगा तो सेठ ने उससे कहा कि मेरे पास दो रोटी हैं सो एक तुम ले लो और नाविक ने बात मान ली। गंगा के पार पहुंचते ही वह सीधा फकीरा हलवाई के पास पहुंचा और उसे सारी बात कह सुनाई। फकीरा को उस पर तरस आ गया और उसने दो लड्डू सेठ को दिए। जिसमें अशर्फियां छिपी थी।
सेठ किरोड़ीमल को कुछ समझ में नहीं आया और वह लड्डू लेकर वापस गंगा पार जाने के लिए बुलाकी नाविक के पास जा पहुंचा। नाविक ने जब किराया मांगा तो हताश सेठ ने दोनों लड्डू नाविक को दे दिए और घर लौट आया। वापिस आकर नाविक ने सोचा कि इतने बड़े लड्डू खाकर मैं क्या करूंगा। मैं इन्हें फकीरा हलवाई को बेच आता हूं। उसने कुछ रुपयो में वे दोनों लड्डू फकीरा हलवाई को बेच दिए।
इसलिए कहते हैं कि लक्ष्मी चंचल हैं उन्हें जहां रहना है, वहीं जाना हैं, भूकंप, नाविक, और कड़ियां तो एक बहाना हैं।
मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
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