विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
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Thursday, February 2, 2012
हनुमानजी एक शिक्षा देते हैं
दुख किसके जीवन में नहीं आता। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति भी दुखी रहता है। पहुंचे हुए साधु से लेकर सामान्य व्यक्ति तक सभी के जीवन में दुख का समय आता ही है। कोई दुख से निपट लेता है और किसी को दुख निपटा देता है। दुख आए तो सांसारिक प्रयास जरूर करें, पर हनुमानजी एक शिक्षा देते हैं और वह है थोड़ा अकेले हो जाएं और परमात्मा के नाम का स्मरण करें।
सुंदरकांड में अशोक वाटिका में हनुमानजी ने सीताजी के सामने श्रीराम का गुणगान शुरू किया। वे अशोक वृक्ष पर बैठे थे और नीचे सीताजी उदास बैठीं हनुमानजी की पंक्तियों को सुन रही थीं। रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।
वे श्रीरामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, जिन्हें सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया। तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ।। तब हनुमानजी पास चले गए। उन्हें देखकर सीताजी मुख फेरकर बैठ गईं। हनुमानजी रामजी का गुणगान कर रहे थे। सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया। दुख किसी के भी जीवन में आ सकता है।
जिंदगी में जब दुख आए तो संसार के सामने उसका रोना लेकर मत बैठ जाइए। परमात्मा का गुणगान सुनिए और करिए, बड़े से बड़ा दुख भाग जाएगा। आगे तुलसीदासजी ने लिखा है कि हनुमानजी को देखकर सीताजी मुंह फेरकर बैठ गईं। यह प्रतीकात्मक घटना बताती है कि हम भी कथाओं से मुंह फेरकर बैठ जाते हैं और यहीं से शब्द अपना प्रभाव बदल लेते हैं। शब्दों के सम्मुख होना पड़ेगा, शब्दों के भाव को उतारना पड़ेगा, तब परिणाम सही मिलेंगे। इसी को सत्संग कहते हैं।
मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
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