सिद्धि बहुत अभ्यास के बाद ही मिलती है

कहते हैं कोई भी सिद्धि बहुत अभ्यास के बाद ही मिलती है। लगातार किसी चीज का अभ्यास हमें उसमें निपुण बनाता है और यह निपुणता ही हमारी सिद्धि कहलाती है। पुराणों में सिद्धियों के आठ प्रकार बताए गए हैं लेकिन ये सब तप से मिलती हैं। अधिकांश तंत्र साधना का हिस्सा हैं। हम जिन सिद्धियों की बात कर रहे हैं वे हमारे व्यवहार से आती हैं। पुराणों में ऐसे पात्रों का भी उल्लेख मिलता है जिनके व्यवहार से ही प्रसिद्ध थे, और उनका व्यवहार ही सिद्धि था। जैसे सत्य बोलना। ऐसा माना जाता है कि हम अगर कई वर्षों तक सत्य बोलते रहे, कभी मजाक में भी किसी से झूठ ना कहें तो ये हमारी वाक सिद्धि होती है। महाभारत में कुंती की वाक सिद्धि मानी गई है। ऐसा कहा जाता है कि कुंती ने कभी कोई झूठ नहीं बोला। उसने वो ही कहा जो सत्य था। जब पांचों पांडव द्रौपदी के स्वयंवर से लौटे। अर्जुन ने मछली की आंख भेदकर द्रौपदी को जीता था। वे गए थे भिक्षा मांगने और स्वयंवर मे चले गए। कुंती को यह बात पता नहीं थी। भाइयों ने आकर मां से कहा देखो मां आज हम क्या लेकर आए हैं। कुंती ने बिना देखे कह दिया पांचों भाई बराबर बांट लो। युधिष्ठिर ने कहा मां ने आज तक कभी असत्य नहीं कहा। मां का हर वचन सत्य होता है। नतीजतन पांचों भाइयों ने द्रौपदी से विवाह किया। ये प्रताप था कुंती के सत्य बोलने का। वो जो कहती थी वो सच होता था। हम अपने व्यवहार में ऐसी बातें लाएं, उनका कठोरता से पालन भी करें तो सिद्धि मिलना कोई मुश्किल नहीं है। इसके लिए जरूरत है लगातार अभ्यास और इसे व्यवहार में उतारने की।
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