मीरा के पद

मीरा के पद दरद न जाण्यां कोय हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय। घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय। जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय। दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय। मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥ # अब तो हरि नाम लौ लागी सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी। कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी। मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी। मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव। स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव। पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै। दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥ # राम रतन धन पायो पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो। बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो। जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो। सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो। मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥ # हरि बिन कछू न सुहावै परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै। राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै। आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै। तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै। चरण कंवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै। मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्यौ, आंणद बरण्यूं न जावै॥ # झूठी जगमग जोति आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि। झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति। झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति। झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर। सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर। छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगिन में दाग। लूण अलूणो ही भलो है, अपणो पियाजी को साग। देखि बिराणै निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज। कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज। छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ। ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ। वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ। जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ। अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत। मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥ # अब तो मेरा राम अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥ माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई। साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥ सतं देख दौड आई, जगत देख रोई। प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥ मारग में तारग मिले, संत राम दोई। संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥ अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई। राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥ अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई। दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥ # म्हारे तो गिरधर गोपाल म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥ जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥ छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥ संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥ चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई। मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥ अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥ भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
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