www.goswamirishta.com
पुराने समय से यह धारणा चली आ रही है कि घर-गृहस्थी भक्ति, मोक्ष और ज्ञान के मार्गों पर चलने में बाधक है। गृहस्थ जीवन को त्याग कर ही इन मार्गों पर चला जा सकता है। लेकिन यह धारणा सत्य नहीं है।
प्राचीन भारत के अधिकांश ऋषि-मुनि गृहस्थ ही थे। पत्नी-पुत्र आदि उनके तत्वचिन्तन में, उनके ऋषि जीवन में कभी बाधा नहीं बने, अपितु गृहस्थ उनके लिए आनन्द योग का सहायक ही सिद्ध हुआ। वे भी इन्दिय भोग भोगते थे, किन्तु उनका प्रभाव अपने चित्त पर नहीं पड़ने देते थे।
मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ब्रह्मा जी के अलग अलग दो भागो से प्रगट हुए। इनकी तीन बेटिया हुई। आकूति , प्रसूति और देवहूति। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति से हुआ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति से हुआ। ये वही दक्ष हैं जो माता पार्वती के पूर्वजन्म में उनके पिता थे और भगवान् शिव के पार्षद वीरभद्र ने जिनका यज्ञ विध्वंश किया था।
कर्दम मुनि का विवाह मनु जी की तीसरी बेटी देवहूति से हुआ। राजकुमारी देवहूति ने कर्दम ऋषि के साथ उस तपोवन में रहकर पति की सेवा करती रही। राजपुत्री होने का जरा भी उन्हें अभिमान नहीं था। कर्दम ऋषि काफी प्रसन्न एवं संतुष्ट हुए। उन्होंने पत्नी देवहूति को देवदुर्लभ सुख प्रदान किया।
परम तेजस्वी दम्पति के गृहस्थ धर्म में पहले नौ कन्याओं का जन्म हुआ। इन नौ कन्याओं का विवाह ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न नौ ऋषिओं से हुआ ।
(1) कला - मरीचि ऋषि के साथ विवाहित
(2) अनुसूया - अत्रि ऋषि के साथ विवाहित
(3) श्रद्धा - अड्गिंरा ऋषि के साथ विवाहित
(4) हविर्भू - पुलस्त ऋषि के साथ विवाहित
(5) गति - पुलह ऋषि के साथ विवाहित
(6) क्रिया - क्रत्तु ऋषि के साथ विवाहित
(7) ख्याति - भृगु ऋषि के साथ विवाहित
(8) अरूंधति - वशिष्ठ ऋषि के साथ विवाहित
(9) शान्ति देवी - अथर्वा ऋषि के साथ विवाहित
कर्दम ऋषि ने सन्यास लेना चाहा तो ब्रह्माजी ने उन्हें समझाया कि अब तुम्हारे पुत्र के रूप में स्वयं मधुकैटभ भगवान कपिलमुनि पधारने वाले हैं। प्रतीक्षा करो।
कर्दम एवं देवहूति की तपस्या के फलस्वरूप भगवान श्री कपिलमुनि उनके गर्भ से प्रकट हुए।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम ग्रुहस्थ गोस्वामी और त्यागी मे कोइ अन्तर नहि है "जय दशनाम"
प्राचीन भारत के अधिकांश ऋषि-मुनि गृहस्थ ही थे। पत्नी-पुत्र आदि उनके तत्वचिन्तन में, उनके ऋषि जीवन में कभी बाधा नहीं बने, अपितु गृहस्थ उनके लिए आनन्द योग का सहायक ही सिद्ध हुआ। वे भी इन्दिय भोग भोगते थे, किन्तु उनका प्रभाव अपने चित्त पर नहीं पड़ने देते थे।
मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ब्रह्मा जी के अलग अलग दो भागो से प्रगट हुए। इनकी तीन बेटिया हुई। आकूति , प्रसूति और देवहूति। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति से हुआ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति से हुआ। ये वही दक्ष हैं जो माता पार्वती के पूर्वजन्म में उनके पिता थे और भगवान् शिव के पार्षद वीरभद्र ने जिनका यज्ञ विध्वंश किया था।
कर्दम मुनि का विवाह मनु जी की तीसरी बेटी देवहूति से हुआ। राजकुमारी देवहूति ने कर्दम ऋषि के साथ उस तपोवन में रहकर पति की सेवा करती रही। राजपुत्री होने का जरा भी उन्हें अभिमान नहीं था। कर्दम ऋषि काफी प्रसन्न एवं संतुष्ट हुए। उन्होंने पत्नी देवहूति को देवदुर्लभ सुख प्रदान किया।
परम तेजस्वी दम्पति के गृहस्थ धर्म में पहले नौ कन्याओं का जन्म हुआ। इन नौ कन्याओं का विवाह ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न नौ ऋषिओं से हुआ ।
(1) कला - मरीचि ऋषि के साथ विवाहित
(2) अनुसूया - अत्रि ऋषि के साथ विवाहित
(3) श्रद्धा - अड्गिंरा ऋषि के साथ विवाहित
(4) हविर्भू - पुलस्त ऋषि के साथ विवाहित
(5) गति - पुलह ऋषि के साथ विवाहित
(6) क्रिया - क्रत्तु ऋषि के साथ विवाहित
(7) ख्याति - भृगु ऋषि के साथ विवाहित
(8) अरूंधति - वशिष्ठ ऋषि के साथ विवाहित
(9) शान्ति देवी - अथर्वा ऋषि के साथ विवाहित
कर्दम ऋषि ने सन्यास लेना चाहा तो ब्रह्माजी ने उन्हें समझाया कि अब तुम्हारे पुत्र के रूप में स्वयं मधुकैटभ भगवान कपिलमुनि पधारने वाले हैं। प्रतीक्षा करो।
कर्दम एवं देवहूति की तपस्या के फलस्वरूप भगवान श्री कपिलमुनि उनके गर्भ से प्रकट हुए।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम ग्रुहस्थ गोस्वामी और त्यागी मे कोइ अन्तर नहि है "जय दशनाम"
No comments:
Post a Comment
Thanks to visit this blog, if you like than join us to get in touch continue. Thank You