(ॐ ) शब्द को परमात्मा का पर्याय माना गया

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पांच अवयव- ‘अ’ से अकार, ‘उ’ से उकार एवं ‘म’ से मकार, ‘नाद’ और ‘बिंदु’ इन पांचों को मिलाकर ‘ओम’ एकाक्षरी मंत्र बनता है।

श्रीमद्भागवत गीता में ओम (ॐ ) शब्द को परमात्मा का पर्याय माना गया है। अनेक ऋषियों, मुनियों और संतों ने माना है कि ओम शब्द का निरंतर वाणी और मन से उच्चारण करने पर हृदय में पवित्र विचार आते हैं। बुद्धि और मन शुद्ध होकर सकारात्मक कार्यों के लिये प्रवृत्त होता हैं। ओम शब्द के वाणी से उच्चारण करने पर शरीर के सारे अंगों पर ऐसा प्रभाव होता है कि अंतर्मन में अद्भुत प्रकाश दीप प्रज्जवलित हो उठता है। उनके विचार तथा व्यवहार में यह प्रकाश विसर्जित दूसरे लोगों को भी प्रसन्नता देता हैं जिन लोगों को संस्कृत के श्लोक मन ही मन दोहराने में परेशानी होती है वह चाहें तो केवल ओम शब्द का जाप करें।
अथर्ववेद में कहा गया है कि

त्रयः सुपर्णास्त्रिवृता यदायत्रेकाक्षस्मभि-संभूय शका शका।
प्रत्यौहन्मृत्युमृतेन सत्कमन्तर्दधान्त दुरितानी विश्वा।।
हिन्दी में भावार्थ-जब समर्थ तीन सुवर्ण तिहरे होकर एक अक्षर में सब प्रकार मिल रहे हैं। वे अमृत के साथ सब अनिष्टों को मिटाकर मृत्यु को दूर करते हैं।
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