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श्री दूधेश्वरनाथ महादेव का अद्भुत दिव्य प्राचीनतम सिद्धपीठ गाजियाबाद (गाजियाबाद उत्तर प्रदेश) मे है। यहा पर अति प्राचीन श्री दूधेश्वर महादेव का बड़ा ही अद्भुत दिव्य मन्दिर है जो कि दर्शनीय है और जिसके दर्शन पूजन करने से सुख शान्ति का अनुभव होता है।
लगभग साढ़े पाच सौ वर्ष पहले की बात होगी कि कोड़ नामक ग्राम मे बड़े ही महान् उच्चकोटि के पहुचे हुए जूना अखाड़ा के एक जटिल दशनमी सन्यासी सिद्ध महात्मा रहा करते थे। उन्हे स्वप्न मे भगवान श्री शकर जी महाराज ने कृपा करके दर्शन दिया और उन्हे इस स्थान पर आने का आदेश दिया। भगवान् का आदेश पाकर अपने शिष्यो सहित गरीब गिरि जी यहा आ गये। वह यहा रहकर भगवान् श्री शकर जी की पूजा, आराधना, तपस्या करने लगे।
कुछ दिनो के पश्चात् पूज्य प्रात: स्मरणीय गोब्राह्मण प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज अपने लश्कर के साथ अकस्मात् इधर आ निकले। आपने यहा पर भगवान् श्री दूधेश्वर जी महाराज,विश्वेश्रवा के कैलास की प्रसिद्धि और प्रशसा सुनी। आप तो एक कट्टर सनातनधर्मी परमआस्तिक ठहरे। आपका सारा जीवन ही देव-मन्दिरो की रक्षा के लिए समर्पित था। भला, ऐसा सुअवसरहाथ से कैसे जाने देते ?
आप बड़ी श्रद्धा-भक्ति से अपने साथ के अपने अन्य मराठे सैनिको सहित इस स्थान पर पधारे और श्री दूधेश्वर महादेव का दर्शन किया, पूजन किया और यहा पररहने वाले सत-महात्माओ का सत्सग किया। आप भला ऐसे दिव्य स्थान को इस प्रकार की जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे कैसे देख सकते थे ? उन्होने पूज्य सत महात्माओ की आज्ञानुसार, सनातनधर्म और शास्त्रानुसार पूर्ण विधि-विधान से पूज्य वेदपाठी ब्राह्मणो द्वारा श्री शिव मन्दिर की स्थापना कराई। शिवाजी महाराज के द्वारा सविधि-शास्त्रानुसार मन्दिर की स्थापना से मन्दिर की औरभी महत्ता बढ़ गई।
लगभग साढ़े पाच सौ वर्ष पहले की बात होगी कि कोड़ नामक ग्राम मे बड़े ही महान् उच्चकोटि के पहुचे हुए जूना अखाड़ा के एक जटिल दशनमी सन्यासी सिद्ध महात्मा रहा करते थे। उन्हे स्वप्न मे भगवान श्री शकर जी महाराज ने कृपा करके दर्शन दिया और उन्हे इस स्थान पर आने का आदेश दिया। भगवान् का आदेश पाकर अपने शिष्यो सहित गरीब गिरि जी यहा आ गये। वह यहा रहकर भगवान् श्री शकर जी की पूजा, आराधना, तपस्या करने लगे।
कुछ दिनो के पश्चात् पूज्य प्रात: स्मरणीय गोब्राह्मण प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज अपने लश्कर के साथ अकस्मात् इधर आ निकले। आपने यहा पर भगवान् श्री दूधेश्वर जी महाराज,विश्वेश्रवा के कैलास की प्रसिद्धि और प्रशसा सुनी। आप तो एक कट्टर सनातनधर्मी परमआस्तिक ठहरे। आपका सारा जीवन ही देव-मन्दिरो की रक्षा के लिए समर्पित था। भला, ऐसा सुअवसरहाथ से कैसे जाने देते ?
आप बड़ी श्रद्धा-भक्ति से अपने साथ के अपने अन्य मराठे सैनिको सहित इस स्थान पर पधारे और श्री दूधेश्वर महादेव का दर्शन किया, पूजन किया और यहा पररहने वाले सत-महात्माओ का सत्सग किया। आप भला ऐसे दिव्य स्थान को इस प्रकार की जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे कैसे देख सकते थे ? उन्होने पूज्य सत महात्माओ की आज्ञानुसार, सनातनधर्म और शास्त्रानुसार पूर्ण विधि-विधान से पूज्य वेदपाठी ब्राह्मणो द्वारा श्री शिव मन्दिर की स्थापना कराई। शिवाजी महाराज के द्वारा सविधि-शास्त्रानुसार मन्दिर की स्थापना से मन्दिर की औरभी महत्ता बढ़ गई।
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