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तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस और वाल्मीकि रचित रामायण में रावण को विलेन का रोल अदा करते हुए दिखाया गया है। जिसका वध रामजी ने किया। ये सब प्रतीक हैं, जिनका खुलासा करना जरूरी है। इन ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिर असल में दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय। काम का अर्थ है- पुत्रैषणा अर्थात स्त्री संभोग की चाह, वित्तैषणा अर्थात धन कमाने की चाह, लोकैषणा यानी यश कमाने की चाह।
गीता में भी श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन, तू पूरी शक्ति से इस काम रूपी दुर्जय शत्रु को मार। उन्होंने बताया कि किस प्रकार काम से क्रोध तथा अन्य दुष्प्रवृत्तियों का जन्म होता है और इससे मनुष्य के भीतर मौजूद प्राण तत्व का स्तर एक आवश्यक स्तर से नीचे चला जाता है। इससे मानव शरीर में विभिन्न तरह के रोगों के पनपने की जमीन तैयार हो जाती है। इनमें आधुनिक रोग जैसे डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, दिल का दौरा, टीबी, पक्षाघात, कैंसर और एड्स जैसी बीमारियां भी शामिल हैं।
मान लीजिए किसी गांव में तीन सौ लोग रहते हैं। वहां हैजा फैलता है तो सौ लोग बीमार होकर मर जाते हैं, दूसरे सौ लोग बीमार होते हैं, पर ठीक हो जाते हैं। परंतु सौ लोग ऐसे भी हैं जो बीमार ही नहीं होते। इसका कारण यही है कि तीनों प्रकार के लोगों में काम, क्रोध आदि रूपी रावण के कारण उनके प्राणिक स्तर अलग-अलग थे। मक्खी वहीं बैठती है, जहां गंदगी होती है। बैक्टीरिया या वायरस तभी असर करते हैं, जब रावण द्वारा उनको पनपने के लिए जमीन तैयार मिलती है अर्थात जब दस मनोभावों द्वारा मन और शरीर दूषित हो चुका होता है।
रामायण और महाभारत के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था। भाव यह था कि आम लोगों को ये बातें कथाओं के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएं ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके। इनमें वर्णित घटनाएं हर युग में घटित होती हैं, बस उनके नाम एवं रूप बदल जाते हैं। सीता हरण एवं द्रोपदी चीर हरण, असत्य, छल, कपट, घोटाले जैसी घटनाएं आज भी हो रही हैं। जब ऐसा होता है, तब समाज का विनाश होता है।
डा. फिटजोफ कापरा ने अपनी पुस्तक 'ताओ ऑफ फिजिक्स' में कहा हैै : 'भारतीय धर्म के गूढ़ ज्ञानियों, विशेषकर हिंदुओं ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों एवं प्रतीकों की भाषा में लिखा है। उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कल्पना शक्ति से अनेकों देवी-देवताओं की कल्पना की, जो इन कहानियों के पात्र बने और इन्हें इन दो महाकाव्यों में संग्रह किया।'
वेद की मुख्य शिक्षा है कि इन दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण ही जीवात्मा को मृत्यु के बाद चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए अनेक प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं और जीवन-मृत्यु के अनंत चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए इसी मानव योनि में पूरा प्रयास करके मोक्ष पा लेना चाहिए। ऋषि जन यह समझा-समझा कर थक गए, तब उन्हें भगवान राम और भगवान विष्णु की कहानी गढ़नी पड़ी। जो बात ऋषि कह रहे थे, उसी को दोनों भगवानों के मुख से कहलवा दिया।
वेद हिंदुओं का आधारभूत ग्रंथ है। उसमें कहीं भी राम और कृष्ण का जिक्र नहीं है। इस प्रकार के लेखन का उद्देश्य था कि समाज में पापाचार कम से कम हों और जनमानस एक पीढ़ी में न सही, तो धीरे-धीरे प्रयास करते संस्कारित हो। इसलिए उन्होंने प्रतीकों का जाल तैयार किया तथा मूर्ति पूजा का विधान बनाकर सनातन धर्म की स्थापना की। पूरे समाज को आस्था एवं विश्वास के बल पर श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की भक्ति का संदेश देकर मोक्ष के स्थान पर मुक्ति पाने का सुगम मार्ग बतलाया।
तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस और वाल्मीकि रचित रामायण में रावण को विलेन का रोल अदा करते हुए दिखाया गया है। जिसका वध रामजी ने किया। ये सब प्रतीक हैं, जिनका खुलासा करना जरूरी है। इन ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिर असल में दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय। काम का अर्थ है- पुत्रैषणा अर्थात स्त्री संभोग की चाह, वित्तैषणा अर्थात धन कमाने की चाह, लोकैषणा यानी यश कमाने की चाह।
गीता में भी श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन, तू पूरी शक्ति से इस काम रूपी दुर्जय शत्रु को मार। उन्होंने बताया कि किस प्रकार काम से क्रोध तथा अन्य दुष्प्रवृत्तियों का जन्म होता है और इससे मनुष्य के भीतर मौजूद प्राण तत्व का स्तर एक आवश्यक स्तर से नीचे चला जाता है। इससे मानव शरीर में विभिन्न तरह के रोगों के पनपने की जमीन तैयार हो जाती है। इनमें आधुनिक रोग जैसे डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, दिल का दौरा, टीबी, पक्षाघात, कैंसर और एड्स जैसी बीमारियां भी शामिल हैं।
मान लीजिए किसी गांव में तीन सौ लोग रहते हैं। वहां हैजा फैलता है तो सौ लोग बीमार होकर मर जाते हैं, दूसरे सौ लोग बीमार होते हैं, पर ठीक हो जाते हैं। परंतु सौ लोग ऐसे भी हैं जो बीमार ही नहीं होते। इसका कारण यही है कि तीनों प्रकार के लोगों में काम, क्रोध आदि रूपी रावण के कारण उनके प्राणिक स्तर अलग-अलग थे। मक्खी वहीं बैठती है, जहां गंदगी होती है। बैक्टीरिया या वायरस तभी असर करते हैं, जब रावण द्वारा उनको पनपने के लिए जमीन तैयार मिलती है अर्थात जब दस मनोभावों द्वारा मन और शरीर दूषित हो चुका होता है।
रामायण और महाभारत के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था। भाव यह था कि आम लोगों को ये बातें कथाओं के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएं ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके। इनमें वर्णित घटनाएं हर युग में घटित होती हैं, बस उनके नाम एवं रूप बदल जाते हैं। सीता हरण एवं द्रोपदी चीर हरण, असत्य, छल, कपट, घोटाले जैसी घटनाएं आज भी हो रही हैं। जब ऐसा होता है, तब समाज का विनाश होता है।
डा. फिटजोफ कापरा ने अपनी पुस्तक 'ताओ ऑफ फिजिक्स' में कहा हैै : 'भारतीय धर्म के गूढ़ ज्ञानियों, विशेषकर हिंदुओं ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों एवं प्रतीकों की भाषा में लिखा है। उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कल्पना शक्ति से अनेकों देवी-देवताओं की कल्पना की, जो इन कहानियों के पात्र बने और इन्हें इन दो महाकाव्यों में संग्रह किया।'
वेद की मुख्य शिक्षा है कि इन दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण ही जीवात्मा को मृत्यु के बाद चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए अनेक प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं और जीवन-मृत्यु के अनंत चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए इसी मानव योनि में पूरा प्रयास करके मोक्ष पा लेना चाहिए। ऋषि जन यह समझा-समझा कर थक गए, तब उन्हें भगवान राम और भगवान विष्णु की कहानी गढ़नी पड़ी। जो बात ऋषि कह रहे थे, उसी को दोनों भगवानों के मुख से कहलवा दिया।
वेद हिंदुओं का आधारभूत ग्रंथ है। उसमें कहीं भी राम और कृष्ण का जिक्र नहीं है। इस प्रकार के लेखन का उद्देश्य था कि समाज में पापाचार कम से कम हों और जनमानस एक पीढ़ी में न सही, तो धीरे-धीरे प्रयास करते संस्कारित हो। इसलिए उन्होंने प्रतीकों का जाल तैयार किया तथा मूर्ति पूजा का विधान बनाकर सनातन धर्म की स्थापना की। पूरे समाज को आस्था एवं विश्वास के बल पर श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की भक्ति का संदेश देकर मोक्ष के स्थान पर मुक्ति पाने का सुगम मार्ग बतलाया।
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