विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
Saturday, August 31, 2024
सदाबहार सुनहरे बॉलीवुड गाना evergreen vintage bollywood song
Thoughts that will give you the courage to win in every situation -विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा
Thoughts that will give you the courage to win in every situation -
विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा
सफलता आती है जब मेहनत और लगन का सही मिश्रण हो। सफलता पाने के लिए कार्य करने होते हैं। आज के जीवन में हर कोई सफल बनना चाहता है। चाहे वह स्कूल हो ऑफिस हो अपने करियर में हर कोई हर क्षेत्र में सफल बनना चाहता है। लेकिन जीवन में सफलता पाने का रास्ता बहुत ही कठिन होता है अगर बीच में थोड़ी सी भी नकारात्मक बातें आ जाती है तो हम रास्ता भटक जाते हैं, आगे बढ़ने का हौसला टूट जाता है। परंतु अगर हम सकारात्मक सोचते हैं, तो हम जीवन में आगे प्रगति कर सकते हैं। यदि कामयाब होना चाहते हैं तो आइये जाने सफलता के अनमोल विचार।
सफलता के अनमोल विचार
1. जीवन में विजेता कुछ अलग नहीं करते परंतु वह चीजों को ही अलग तरीके से करते हैं।
2. सफलता का एकमात्र उपाय कड़ी मेहनत करना ही है।
3. जब तक आप चीजों को अलग तरीके से नहीं देखते तब तक आप उसे अलग तरीके से नहीं कर सकते।
4. कुछ कर सकने में सफलता आती है और कुछ ना कर सकने में असफलता आती है।
5. अपने मिशन में सफल होने के लिए आपको अपने लक्ष्य के प्रति एक चित भाव से समर्पित होना पड़ेगा ।
6. यदि आप अपने सपने साकार नहीं करेंगे तो कोई और खुद के लिए आपको भाड़े पर रख लेगा ।
7. सफलता अनुभव से आती है और अनुभव हमेशा बुरे अनुभव से आता है ।
8. सफलता तुम्हारा परिचय दुनिया से करवाती है और असफलता तुम्हें दुनिया का परिचय करवाती है।
9. जो लोग गिरने से डरते हैं वह कभी भी जीवन में उड़ान नहीं भर सकते।
10. यदि आप बहाने बनाते हैं मतलब सफल तो बनना चाहते हैं लेकिन कार्य करने से जी चुराते हैं। सफलता और बहाने कभी एक साथ नहीं हो सकते।
11. कोशिश हमें अंतिम क्षण तक करनी चाहिए जीवन में सफलता मिले या ना मिले परंतु तजुर्बा तो मिलेगा ही।
12. जितना और हारना यह तो आपकी सोच पर निर्भर करता है मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी।
13. लड़ाई लड़ने वाला तो विजय प्राप्त करता है परंतु दूर से देखने वाला तो सिर्फ तालियां बजाता रह जाता है।
14. हमारी समस्याओं का समाधान तो केवल हमारे पास ही है दूसरों के पास तो केवल सुझाव है।
15. जीवन में कामयाब होने के लिए अच्छे मित्रों की जरूरत होती है परंतु ज्यादा कामयाब होने के लिए अच्छे शत्रुओं की जरूरत होती है।
16. हमेशा चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए इससे सफलता मिलेगी या तो शिक्षा।
17. अगर नियत अच्छी होती है तो नसीब कभी भी बुरा नहीं होता।
18. भले ही आप इस दुनिया में अकेले आए हो परंतु जाने के बाद दुनिया में अपने विचार और बुद्धि तो देकर जा सकते हैं।
19. सफल बनने के लिए सबकी सुनने की आदत होनी चाहिए परंतु करना वही चाहिए जो अपने मन को बेहतर लगे।
20. कुछ लोग केवल सफल होने के सपने देखते हैं जबकि अन्य लोग जाते हैं और इसके लिए कठिन मेहनत करते हैं।
21. एक मिनट की सफलता बरसों की असफलता की कीमत चुका देती है।
22. अपने छोटे-छोटे कामों में भी अपने दिल ,दिमाग और आत्मा को लगा दीजिए, यही सफलता का रहस्य है ।
23. सफलता की ख़ुशी मनाना अच्छा है पर उससे जरूरी है अपनी असफलता से सीख लेना।
24. जिन व्यक्तियों को जीवन में पढ़ने की आदत होती है वह कभी भी अकेले नहीं हो सकते।
25.जीवन में संघर्ष जितना कठिन होगा सफलता उतनी ही ऊंची और शानदार होगी।
26. खुद पर विश्वास करें निश्चित है कि बड़े से बड़ा लक्ष्य आपके कदम चूमेगा।
27. खुद को इतना परफेक्ट बनाओ कि आपकी एक झलक देखने के लिए लोग अपनी पलके बिछा दे।
28. सोच जितनी बड़ी होगी सफलता उतनी ही बड़ी होगी।
29. जीवन में सफलता का मार्ग आसान नहीं होता।
30. यदि आप हार मान लेते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको जीता नहीं सकती ,इसलिए कहा गया है ,” मन में हारे हार है मन के जीते जीत”।
31. जीवन में सफलता पाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
32. 100 बार असफलता प्राप्त करने के बाद भी जो इंसान प्रयास करता रहता है उसे सफलता अवश्य मिलती है।
33. कभी हार मत मानो, आज कठिन है, कल और बेहतर होगा लेकिन कल के बाद का दिन सुनहरा होगा।
34. यदि मुझे एक पेड़ काटने के लिए 8 घंटे दिए जाए तो मैं 6 घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में बिताऊंगा।
35. आपको जीवन में इतना मिलेगा कि आप सपने में भी नहीं सोच सकते, लेकिन उससे पहले अपने फील्ड के पक्के खिलाड़ी तो बनो ।
36. आपको खेल के नियम सीखने होंगे और फिर आपको किसी और से बेहतर खेलना होगा ।
37. तुम्हारा काम है अपनी दुनिया को खोजना और फिर दिलों जान के साथ खुद को उस में डुबो देना।
38. यदि आप जीवन में सफल होते हैं तो दुनिया में लोग सलाम ठोकते हैं और अगर आप असफल होते हैं तो वही लोग आप का मजाक उड़ाते हैं।
39. सफल बनने के लिए सबसे पहले असफलता का डर मन में से निकालना चाहिए।
40. हारना सबसे बड़ी असफलता नहीं है परंतु हारने के बाद प्रयास करना छोड़ देना हमारी सबसे बड़ी असफलता है।
41. सफलता की राह में रोकने वाले हजारों लोग मिल जाएंगे परंतु खुद को हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए।
42. सफल बनने के लिए खुद मैं इतना वक्त लगा दो कि किसी और की बुराई करने का वक्त ही ना मिले।
43. लहरों के डर से नौका कभी पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
44. एक सफल व्यक्ति वह है जो औरों द्वारा अपने ऊपर फेंके गए ईटों से एक मजबूत नींव रख सकता है ।
45. किसी भी चीज से बढ़कर तैयारी, सफलता की कुंजी है ।
46. सफलता का एक आसान फार्मूला है, आप अपना सर्वोत्तम दीजिए और हो सकता है लोग उसे पसंद कर ले।
47.थोड़ी सी और दृढ़ता, थोड़ा सा प्रयास और जो एक निराशाजनक असफलता दिख रही है वह एक शानदार सफलता में बदल सकती है।
48. अपने कार्यों को ईमानदारी और मेहनत से करने वाला हमेशा अपने कार्य में सफल होता है।
49. सफलता के लिए धैर्य कहो ना उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है।
50. अपनी असफलता पर अफसोस करने के बजाय फिर से शुरुआत करें, अफसोस करने में व्यक्त ना गवाएं।
Swami Vivekananda Quotes in Hindi: एक प्रसिद्ध समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
“जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
भारतीय चुनाव प्रक्रिया का सबसे बड़ा दोष क्या है ? What is the biggest flaw of the Indian election process?
भारत की जनता को सरकारी सुविधा या नौकरी देने के लिए जिस तरह सरकार द्वारा शर्तों का मकड़ जाल बुना गया है, उस तरह राजनीति और शासकों के लिए क्यों नहीं ?
अगर राजनीति और शासन में शामिल लोगों पर भी यह शर्तों का मकड़ जाल लागू हो जाये तो भारत की तमाम समस्याएं स्वतः खत्म हो जाएंगी।
Just as the government has woven a web of conditions to provide government facilities or jobs to the people of India, why not the same for politics and rulers?
If this web of conditions is applied to the people involved in politics and governance, then all the problems of India will automatically end.
Call from Vrindavan - Iss Raj Mei Mai Kho Jaun - Teri Mitti
Main Radha Vallabh Ki | Radha Krishna Bhajan | Latest Krishna Song
Friday, August 30, 2024
Ashutosh Shashank Shekhar
Zinda Hai Lashe Murda Zamin Hai | Begana | Kishore Kumar hits | Old hindi song | Matlabi Hai Log
सच्चे कल्याण की उम्मीद-hope for true well-being
एक समय की बात है, एक महिला जिसका नाम नीरा था, पेशे से वेश्या थी। उसकी जिंदगी में एक दिन ऐसा आया जब उसे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर उसका कल्याण कैसे हो सकता है? इस विचार ने उसे बेचैन कर दिया। वह जानना चाहती थी कि वह किस रास्ते पर चले जिससे उसका आत्मिक कल्याण हो सके।
पहले वह एक साधु के पास गई। साधु ने उसे समझाया, "साधुओं का संग करो, उनके सेवा में ही कल्याण है। साधु लोग त्यागी होते हैं, इसलिए उनकी सेवा करने से तुम्हारा उद्धार होगा।"
नीरा ने साधु की बात सुनी, लेकिन उसे संतुष्टि नहीं मिली। फिर वह एक ब्राह्मण के पास गई। ब्राह्मण ने उसे कहा, "साधु लोग बनावटी हो सकते हैं, पर हम ब्राह्मण जन्म से ही श्रेष्ठ हैं। ब्राह्मण सबके गुरु होते हैं, इसलिए ब्राह्मणों की सेवा करने से ही तुम्हारा कल्याण होगा।"
ब्राह्मण की बात भी नीरा को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकी। इसके बाद वह एक सन्यासी के पास गई। सन्यासी ने कहा, "हम सन्यासी सबसे ऊंचे होते हैं। हमारे संग में रहो और सेवा करो, तभी तुम्हारा उद्धार होगा।"
नीरा को यहाँ भी समाधान नहीं मिला। फिर वह वैरागियों के पास गई। वैरागियों ने कहा, "हम सबसे अधिक शक्तिशाली और तेजस्वी हैं। हमारी सेवा करने से ही तुम्हारा कल्याण हो सकता है।"
नीरा को हर जगह अलग-अलग बातें सुनने को मिलीं, लेकिन कोई भी उत्तर उसे संतोषजनक नहीं लगा। वह अलग-अलग संप्रदायों और मतों के गुरुओं के पास भी गई, लेकिन हर जगह उसे वही पक्षपात और आग्रह दिखाई दिया। सभी ने उसे अपने-अपने धर्म या संप्रदाय की सेवा करने का सुझाव दिया। हर एक ने उसे अपने अनुयायी बनने के लिए कहा, लेकिन किसी ने उसे सच्चे कल्याण का मार्ग नहीं दिखाया।
थक-हारकर नीरा के मन में एक अनोखा विचार आया। उसने सोचा, "जब साधु लोग, ब्राह्मण, सन्यासी और वैरागी सभी अपने-अपने मत का आग्रह करते हैं, तो मैं क्यों न अपने जैसे वेश्याओं की सेवा करूं? शायद इसी से मेरा कल्याण हो।" उसने निर्णय लिया कि वह अपने जैसी अन्य वेश्याओं के लिए एक भोज का आयोजन करेगी।
उसने सभी वेश्याओं को भोज के लिए आमंत्रित किया। जब उस गांव के बाहर रहने वाले एक विरक्त संत, स्वामी अद्वैतानंद को इस भोज की खबर लगी, तो वे नीरा को कुछ सिखाने के लिए वहां पहुंचे।
भोज की तैयारियां चल रही थीं, और नीरा अपनी छत पर खड़ी थी। उसने देखा कि स्वामी अद्वैतानंद चावल के पानी (मांड) से अपने हाथ धो रहे थे, जो नाली में गिराया जा रहा था। नीरा को यह देखकर अजीब लगा और उसने स्वामी से कहा, "बाबा, आप क्या कर रहे हैं? यह तो गंदा पानी है, इससे आपके हाथ और गंदे हो जाएंगे।"
स्वामी अद्वैतानंद ने नीरा की ओर देखा और बोले, "बेटी, तुम भी तो मुझसे यही पूछ सकती हो कि यह गंदा पानी हाथ साफ कैसे कर सकता है? अगर गंदे पानी से हाथ साफ नहीं होते, तो क्या गंदे कर्मों से आत्मा शुद्ध हो सकती है?"
नीरा के मन में जैसे कुछ जगमगा उठा। उसने पूछा, "तो फिर बाबा, मेरे कल्याण का मार्ग क्या है?"
स्वामी अद्वैतानंद ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटी, सच्चा संत वही होता है जिसके मन में किसी भी तरह का स्वार्थ, पक्षपात या अहंकार न हो। जो सच्चे मन से सिर्फ जीवों के कल्याण की इच्छा रखता हो। ऐसे संत का संग करना, उनकी बातें सुनना, और उनकी सेवा करना ही सच्चा कल्याण है। संप्रदाय, वर्ण, और जाति के भेदभाव में पड़कर तुम सच्चाई से दूर होती जा रही हो।"
नीरा को अब समझ में आ गया कि सच्चा संत कौन होता है और उसने अपने जीवन में उस ज्ञान को अपनाने का निर्णय लिया। उसने सोचा कि अब वह किसी भी बाहरी दिखावे या धर्म के नाम पर छलावे में नहीं पड़ेगी। वह अब सच्चे संत की तलाश में आगे बढ़ी।
तात्पर्य यह है कि जहाँ स्वार्थ, अभिमान, और अहंकार होता है, वहाँ सच्चे कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती। सच्चा कल्याण तभी संभव है जब हम बिना किसी भेदभाव के सच्चे मार्ग पर चलें और सच्चे संत का संग करें, जिनके पास कोई स्वार्थ या अहंकार नहीं होता।
Yeh Duniya Yeh Mehfil Mere Kaam Ki Nahi : Mohammad Rafi Song | Raaj Kumar | Heer Ranjha 1970 Songs
14 अगस्त 1947 की उस काली रात को ऐसा क्या हुआ था ? || What happened on that night of 14 August 1947?
जानिए हमारे किए गए कर्म कैसे हमारे सामने आते हैं || Know how our deeds are revealed to us
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ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा जी, लक्ष्मी जी, इनमें से किसका नाम जपूँ, कौन सर्वश्रेष्ठ है -Brahma, Vishnu, Mahesh, Durga ji, Lakshmi ji, whose name should I chant, who is the best?
00:00 - ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा जी, लक्ष्मी जी, इनमें से किसका नाम जपूँ, कौन सर्वश्रेष्ठ है ?
09:06 - महाराज जी मैंने बहुत पाप किये हैं, महादेव जी ने मुझे आपके पास भेजा है मेरा उद्धार करें !
13:42 - क्या मनुष्य के प्रारब्ध उससे अच्छे या बुरे कर्म कारवाता हैं ?
16:56 - जैसा भाव भक्तों को प्राप्त हुआ है वैसा भाव प्राप्त करने के लिए कैसी दिनचर्या और भजन होना चाहिए ?
22:49 - गुस्से में अगर किसी के लिए बद्दुआ निकल जाए तो क्या वापस लिया जा सकता है ?
24:00 - डर लगता है हम भी इस माया में फंस गये तो क्या होगा ?
28:16 - जीवन भर भजन किया हो पर अंतिम सांस बेहोशी में निकल जाए तो उसकी क्या गति होगी ?
34:31 - थोड़ा बहुत भजन करते हैं और बाकी समय सांसारिक कार्य तो हमारी क्या गति होगी ?
41:31 - भजन में चलता हूँ तो परिवार छूटता है और परिवार को लेकर चलता हूँ तो भजन, अब क्या करूँ ?
Bhajan Marg by Param Pujya Vrindavan Rasik Sant Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj, Shri Hit Radha Keli Kunj, Varah Ghat, Vrindavan Dham
मुझे रास आ गया है तेरे दर पे सर झुकाना-I have liked bowing my head before you-mujhe-ras-aa-gaya-hai-tere-dar-pe-sar-jhukana
कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना-Whoever goes to Vrindavan, take my message.
कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना,
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना ।
ये कहना मुरली वाले से मुझे तुम कब बुलाओगे,
पड़े जो जाल माया के उन्हे तुम कब छुडाओगे ।
मुझे इस घोर दल-दल से, मेरे भगवान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
जब उनके सामने जाओ तो उनको देखते रहना,
मेरा जो हाल पूछें तो ज़ुबाँ से कुछ नहीं कहना ।
बहा देना कुछ एक आँसू मेरी पहचान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
जो रातें जाग कर देखें, मेरे सब ख्वाब ले जाना,
मेरे आँसू तड़प मेरी..मेरे सब भाव ले जाना ।
न ले जाओ अगर मुझको, मेरा सामान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
मैं भटकूँ दर ब दर प्यारे, जो तेरे मन में आये कर,
मेरी जो साँसे अंतिम हो..वो निकलें तेरी चौखट पर ।
‘हरिदासी’ हूँ मैं तेरी.. मुझे बिन दाम ले जाना॥
कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ मेरा प्रणाम ले जाना ॥
खुद को माफ करना सीखो-जो हो गया, उसकी चिंता, करना छोड़ों -Learn to forgive yourself-Stop worrying about what has happened
जीवन मैं अकेले रहो और मौन रहना शुरू कर दो- Be alone in life and start being silent
परिवार में कलह-क्लेश मचा हो तो क्या करें-What to do if there is discord in the family
अकेले रहो खुद पे काम करो : अकेलेपन की ताकत || Be alone, work on yourself: the power of loneliness
जब एक संत माता जी बोली कि इसका उत्तर उन्हें 24 साल से कहीं नहीं मिला ? Bhajan Marg-When a saint mother said that she could not find the answer anywhere for 24 years
माँ और बेटे के बीच के संवाद-dialogue between mother and son
आधी रात का समय था, जब निर्मला की नींद अचानक टूट गई। वह अनायास ही अपने बेटे की चिंता में घिर गई। जब उसने देखा कि उसका बेटा, जो अब एक जिम्मेदार और वयस्क पुरुष था, अपनी पत्नी के साथ कमरे में सोने की बजाय, उसी की तरह अपने पुराने बिस्तर पर आड़ा-तिरछा लेटा हुआ है, तो उसकी ममता भरी आँखों में एक अनजाना सा भय तैरने लगा।
निर्मला के दिल में चिंता की लहरें उठने लगीं। उसने धीरे से बेटे के माथे पर हाथ फेरा और धीमी आवाज़ में पूछा, "बेटा, तू कुछ परेशान सा लगता है...?"
बेटे, जिसका नाम विवेक था, हल्की नींद में ही था। उसने अपनी मां की आवाज़ को पहचानते हुए कहा, "नहीं, मां...," और फिर करवट लेते हुए, माँ के और भी करीब आ गया।
पिछले महीने निर्मला के पति, यानी विवेक के पिता का निधन हो गया था। उस दिन के बाद से निर्मला की नींद में स्थायी हल्कापन आ गया था। वह रातों को बस यूँ ही करवटें बदलती रहती थी। लेकिन इन दिनों, उसे बेटे की बढ़ती बेचैनी ने और भी चिंतित कर दिया था।
निर्मला ने विवेक की ओर फिर से सवाल उछाला, "आजकल तू मेरे पास क्यों आकर सो जाता है? क्या बहू से कोई बात हो गई है?"
विवेक ने इस सवाल को भी टालने की कोशिश करते हुए कहा, "नहीं, माँ... ऐसा कुछ नहीं है।"
निर्मला ने महसूस किया कि बेटा कुछ छिपा रहा है। उसने पास ही रखे तांबे के लोटे से एक घूंट पानी पिया और बिस्तर पर सीधा लेटने की बजाय एक तकिया अपने पीछे रख दीवार का सहारा ले कर बैठ गई। वह बेटे से एकदम साफ-साफ बात करना चाहती थी।
"फिर क्या बात है, बेटा? मुझे बता, तुझे क्या परेशान कर रहा है?" माँ का यह सवाल इस बार एक माँ के आदेश जैसा लगा।
विवेक को मां की घबराहट का अहसास हुआ। उसने अब और कोई बहाना नहीं बनाया और मां के हाथों को अपने सीने पर रखकर बोला, "मां, आपको याद है, जब मैं बड़ा हो रहा था, पापा ने मेरा कमरा अलग कर दिया था?"
"हाँ, बेटा, तुम्हीं ने तो जिद की थी अलग कमरे की," निर्मला ने हल्की मुस्कान के साथ याद दिलाया।
"हां मां, लेकिन फिर भी, जब मैं सो जाता था, आप अक्सर मेरे कमरे में आकर मेरे माथे को सहलातीं और वहीं मेरे बिस्तर पर सो जाती थीं," विवेक ने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी नर्मी और पुरानी यादों की मिठास थी।
"हां, और फिर सुबह तुम मुझसे एक सवाल पूछते थे, याद है?" निर्मला ने बेटे की स्मृतियों को कुरेदने की कोशिश की।
विवेक ने हंसते हुए कहा, "हां मां, याद है। मैं हमेशा आपसे पूछता था, 'क्या आप पापा से नाराज हो?'"
निर्मला की आँखों में एक पुरानी याद की चमक उभर आई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "बिल्कुल सही, बेटा। लेकिन तुझे ऐसा क्यों लगता था कि मैं पापा से नाराज़ हूं?"
आज इतने सालों बाद, शायद निर्मला भी जानना चाहती थी कि उसके बेटे के मन में उस समय क्या चलता था।
विवेक ने माँ के हाथों को और भी मजबूती से पकड़ते हुए कहा, "क्योंकि, मां, मैं आपको हमेशा पापा के साथ देखना चाहता था।"
निर्मला के चेहरे पर इस जवाब ने एक हल्की सी उदासी और सुकून की मुस्कान बिखेर दी। उसने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली, "बेटा, जैसे तुम मुझे और पापा को साथ देखना चाहते थे, वैसे ही मैं भी तुझे और तेरी पत्नी को हमेशा साथ देखना चाहती हूं।"
विवेक ने मां की गोद में सिर रखते हुए कहा, "मां, तब आप पापा को अकेले छोड़कर मेरे पास क्यों आ जाती थीं?"
इस सवाल का जवाब शायद वर्षों से विवेक के मन में कैद था, और आज वह जानना चाहता था कि ऐसा क्यों होता था।
निर्मला ने एक गहरी सांस ली और बोली, "बेटा, मुझे डर लगता था कि अकेले कमरे में तुझे कहीं कोई डर न सताए। मैं तुम्हें सुरक्षित महसूस कराना चाहती थी।"
विवेक की आंखों में हल्की नमी आ गई। उसने धीरे से कहा, "मां, अब जब पापा नहीं रहे, मुझे भी डर लगता है।"
निर्मला को बेटे की इस बात ने भीतर तक झकझोर दिया। उसने बेटे से तुरंत पूछा, "क्यों बेटा, तुझे क्या डर सताता है?"
विवेक की आवाज़ में एक अनकही वेदना थी, "मां, अब मुझे डर लगता है कि कहीं आप अपने अकेलेपन से डर न जाओ। इसलिए मैं आपके पास आ जाता हूं, ताकि आप अकेला महसूस न करें।"
इसके आगे विवेक कुछ कह ही नहीं पाया। उसकी आवाज़ टूट गई और माँ-बेटे एक-दूसरे से लिपट कर रो पड़े। दोनों के आंसुओं में उन सारे अनकहे शब्द और भावनाएं बह गईं, जिन्हें वे शायद कभी कह नहीं पाए थे।
माँ और बेटे के बीच के इस संवाद ने उनकी एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम को और भी गहरा कर दिया था। वे जानते थे कि जीवन के इस मोड़ पर उन्हें एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ना है। और अब, उनके दिलों में बस एक ही ख्याल था—कि वे एक-दूसरे के साथ हमेशा खड़े रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।
शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?, How appropriate is it to help the daughter after marriage
"शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?"
" बेटा ससुराल में सब ठीक है ना दामाद जी का तेरे सास ससुर का सबका व्यवहार कैसा है ?" नवविवाहित बेटी रिया पहली बार मायके आई तो मां साधना जी ने पूछा।
" हां मां सब ठीक है !" बेटी बोली।
" कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकती हो !" साधना जी फिर बोली।
" वो मम्मी वहां पर ऑटोमेटिक गैस चूल्हा नहीं है वही पुराने फैशन का चूल्हा है मुझसे वहां खाना नही बनता मम्मी जी से बोला था वो बोली भी जल्दी दूसरा मंगा देंगी पर तब तक परेशानी झेलनी होगी ।" रिया मुंह बनाते हुए बोली।
साधना जी उस वक्त चुप रही पर शाम को जब बेटी ससुराल वापिस जाने लगी तो ....
" मेरी बेटी छोटी सी चीज के लिए परेशानी क्यों झेले !" गैस चूल्हा रिया के हाथ में देते हुए साधना जी बोली और बेटी को गले लगा लिया।
रिया भी खुशी खुशी वापिस चली गई। ससुराल में सास के पूछने पर उसने कहा मम्मी ने दिलाया है तो सास चुप हो गई।
कुछ दिन बाद रिया अपने मायके कुछ दिन रहने आई।
" बेटा गैस चूल्हा सही काम कर रहा है ना अब तो कोई परेशानी नहीं ? " साधना जी ने चाय नाश्ते के बाद बेटी से पूछा।
" हां मम्मी ठीक है पर वहां माइक्रोवेव नही है जो खाना झटपट गर्म हो जाए बार बार गर्मी में गैस के आगे खड़े होकर ही सब काम करने पड़ते हैं !" रिया बोली।
" बेटा इस माइक्रोवेव को भी गाड़ी में रखवा लो!" रिया जिस दिन वापिस जा रही थी उस दिन साधना जी बाहर से आई और ऑटो रिक्शा से माइक्रोवेव उतरवाते हुए बोली।
" पर मम्मी ये आपने क्यों खरीदा !" रिया माइक्रोवेव देख बोली।
" कोई बात नही बेटा तुम यहां रहने आई हो कोई उपहार तो देना ही था तो यही सही !" साधना जी बोली और रिया इस बार भी खुशी खुशी वापिस चली गई।
" साधना मुझे लगता है तुम्हे माइक्रोवेव नही लाना चाहिए था !" साधना के पति श्रीकांत बोले।
" अरे अपनी इकलौती बेटी को ऐसे कैसे परेशान होने दे सकती हूं मैं छोटी सी चीज के लिए !" साधना जी ने कहा और अंदर चली गई।
" बेटा दिवाली आ रही है सबके उपहार तो हमने खरीद लिए तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ ?" साधना जी ने बेटी से फोन पर कहा।
" वो मम्मी यहां फ्रिज छोटा है और पुराना भी अगर हो सके तो ...!" रिया ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
" चलो बेटा मिलते है दिवाली पर!" साधना जी ने ये कह फोन काट दिया। दिवाली के तोहफों के साथ एक डबल डोर फ्रीज लेकर साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के घर पहुंच गए थे।
ऐसे ही वक्त गुजरता गया और रिया अपने घर में कुछ न कुछ चीज की कमी का रोना रोती और साधना जी तुरंत वो चीज उपलब्ध करवा देती। श्रीकांत जी पत्नी को बहुत समझाते पर वो बेटी के मामले में उनकी एक न सुनती।
आज रिया की शादी की दूसरी सालगिरह है साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के ससुराल जाने की तैयारी कर ही रहे थे की रिया वहां आ गई।
" मम्मी पापा पुलकित ( रिया के पति ) को एक गाड़ी खरीदनी है जो दस लाख की है उसके पास पांच लाख तो है क्या पांच लाख आप दे सकते है हम जल्दी ही पैसा लौटा देंगे !" रिया बोली।
" पर बेटा गाड़ी तो हमने दी थी तुम्हारी शादी में फिर अब दूसरी क्यों ?" श्रीकांत जी बोले।
" पापा वो तो सस्ती वाली है पुलकित को लेटेस्ट मॉडल लेना है !" रिया चहकती हुई बोली।
" लेकिन बेटा इतनी बड़ी रकम का इंतजाम तो मुश्किल है 40-50 हजार की बात होती तो अलग बात थी अब तुम्हारे पापा भी रिटायर हो गए हैं !" साधना जी बोली।
रिया नाराज हो घर से चली गई उसे लगा उसके मम्मी पापा पैसा देना नही चाह रहे पापा को रिटायरमेंट का पैसा तो मिला होगा जबकि वो नही जानती थी रिटायरमेंट के पैसे उसकी शादी के कर्ज में चले गए हैं।
" रिया बेटा तुम वापिस क्यों आ गई हो सब ठीक तो है?" दो दिन बाद बेटी को दरवाजे पर देख साधना जी चौंक पड़ी ।
" वो मम्मी पुलकित नाराज है बोलते है गाड़ी में तुम भी तो घूमोगी आधे पैसे का जुगाड मेने कर लिया आधा तुम नही ला सकती क्या अपने मां बाप से वैसे तो वो तुम्हारी सहूलियत को हर चीज देते थे आज मैने बोला तो नखरे दिखा रहे हैं। अपने घर जाओ और पैसे लेकर लौटना!" रिया ने रोते हुए सारी बात बताई।
" बेटा ये तो दामाद जी ने बहुत गलत किया 10-20 हजार की चीज और 5 लाख रुपए में जमीन आसमान का अंतर है !" साधना जी तनिक रोष में बोली।
" पर मम्मी वो बाद में लौटा देंगे ना आप प्लीज अभी दे दो पैसा !" रिया बोली।
" बेटा पैसा है कहां सब तो तुम्हारी शादी के कर्ज चुकाने में खत्म हो गया। हम खुद अपना गुजारा पेंशन से कर रहे हैं ... मैं अभी दामाद जी से बात करता हूं इस बारे में !" श्रीकांत जी वहां आकर बोले और दामाद को फोन लगाया पर उसने उठाया नहीं कई बार कोशिश करने पर भी फोन नही उठा।
" पापा वो नाराज़ है अगर पैसे नही मिले तो वो मुझे घर में नही घुसने देंगे !" रिया रोते हुए बोली।
साधना जी और श्रीकांत जी ने बेटी को दिलासा दिया और शाम को बेटी को लेकर उसके ससुराल पहुंचे पर वहां ताला था। रिया की सास तो बेटे के पास गांव गई हुई थी और पुलकित ऑफिस के काम से दूसरे शहर गया था।
घर वापिस आकर रिया अपने कमरे में जाकर रोने लगी क्योंकि पुलकित ने उसे शहर से बाहर जाने का नही बताया था और अब वो फोन भी नही उठा रहा था। काफी दिन बीत गए पर पुलकित ने उसे फोन नही किया उसे ऐसा लग रहा था वो अकेली है उसका कोई नही हैं। क्योंकि पति ने पैसों के लिए उसकी सुध नहीं ली और उसे लगता था मां बाप पैसा देना नही चाहते।
" साधना ये सब तुम्हारा किया धरा है मैं तुम्हे पहले ही कहता था यूं हर बार बेटी की मदद करना ठीक नहीं तुम्हारे बार बार बेटी को जरूरत का सामान देने से बेटी और दामाद जी को ये लगने लगा है हम कैसे भी करके उन्हे पैसे देंगे ही आज जो तुम्हारी बेटी यूं घर बैठी है उसमे गलती तुम्हारी ही है क्या हो जाता अगर वो साधारण चूल्हा इस्तेमाल करती , छोटा फ्रीज इस्तेमाल करती या बाकी चीजे ना इस्तेमाल करती !" श्रीकांत जी पत्नी से गुस्से में बोले।
" सही कहा आपने मुझे लगा था मैं अपनी इकलौती बेटी की मदद कर रही हूं पर नहीं जानती थी मैं तो उसे पंगु बना रही हूं। बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे पर अब इसे किसी तरह सुधारिए !" साधना जी दुखी हो बोली।
" चलते है कल समधनजी के पास मुझे यकीन है वो पुलकित को जरूर समझाएंगी !" श्रीकांत जी बोले।
अगले दिन सुबह ही वो रिया को लेकर पुलकित के भाई के घर चले गए । वहां रिया की सास से बात हुई उन्हे नही पता था रिया को पुलकित ने मायके भेज दिया है । हालांकि उन्होंने भी साधना जी और श्रीकांत जी से कहा की आज जो हुआ उसमे कही न कही वो दोनो जिम्मेदार हैं बेटी की शादी की है तो उसे थोड़ा खुद भी संघर्ष करने दीजिए जरूरी नहीं जो पीहर में हो वही ससुराल में भी हो। फिर उन्होंने तुरंत पुलकित को फोन करके आने को कहा शाम तक पुलकित आया और मां की डांट पड़ने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वो रिया को साथ ले गया। साधना जी और श्रीकांत जी अपनी समधन का शुक्रिया अदा करते नही थक रहे थे उनकी समझदारी ने बेटी का घर फिर से बसा दिया।
दोस्तों ऐसा अक्सर होता है बेटी को ससुराल में थोड़ी भी परेशानी हो या किसी चीज की कमी हो माता पिता तुरंत दिला देते हैं । जरूरत बाद में आदत बन जाती है और बेटी दामाद अनावश्यक मांगें करने लगते है जिनको पूरा न करने की दशा में बेटी को परेशानी भी झेलनी पड़ जाती या रिश्तों में खटास आ जाती है। बेटी को उपहार देना गलत नही पर हर बार उसकी छोटी छोटी जरूरतें पूरी करना बच्चों को पंगु बना देता है और उन्हें सहारे की आदत पड़ जाती है। आपने बेटी की शादी की है अब उसका सुख दुख में साथ दीजिए पर कुछ परेशानियों का सामना खुद भी करने दीजिए।
शुद्धता की जाँच करें-check purity
1. जीरा (Cumin seeds)
✨जीरे की परख करने के लिए थोड़ा सा जीरा हाथ में लीजिए और दोनों हथेलियों के बीच रगड़िए।
✨अगर हथेली में रंग छूटे तो समझ जाइए कि जीरा मिलावटी है क्योंकि जीरा रंग नही छोड़ता।
👉🏻2. हींग (Hing)
✨हींग की गुणवत्ता जांचने के लिए उसे पानी में घोलिए।
✨अगर घोल दूधिया रंग का हो जाए तो समझिए कि हींग असली है।
✨ दूसरा तरीका है हींग का एक टुकड़ा जीभ पर रखें अगर हींग असली होगी तो कड़वापन या चरपराहट का अहसास होगा।
👉🏻3. लाल मिर्च पाउडर (Red chilli powder)
✨लाल मिर्च पाउडर में सबसे ज्यादा मिलावट की जाती है।
✨ इसकी जांच करने के लिए पाउडर को पानी में डालिए, अगर रंग पानी में घुले और बुरादा जैसा तैरने लगे तो मान लीजिए की मिर्च पाउडर नकली है।
👉🏻4. सौंफ और धनिया (Fennel & Coriander)
✨इन दिनों मार्केट में ऐसी सौंफ और धनिया मिलता है जिस पर हरे रंग की पॉलिश होती है ये नकली पदार्थ होते हैं,
✨इसकी जांच करने के लिए धनिए में आयोडीन मिलाएं,
✨अगर रंग काला हो जाए तो समझ जाइए कि धनिया नकली है।
👉🏻5. काली मिर्च (Black pepper)
✨काली मिर्च पपीते के बीज जैसी ही दिखती है इसलिए कई बार मिलावटी काली मिर्च में पपीते के बीज भी होते हैं।
✨इसको परखने के लिए एक गिलास पानी में काली मिर्च के दानें डालें।
✨ अगर दानें तैरते हैं तो मतलब वो दानें पपीते के हैं और काली मिर्च असली नहीं है।
👉🏻6. शहद (Honey)
✨शहद में भी खूब मिलावट होती है।
✨शहद में चीनी मिला दी जाती है, इसकी गुणवत्ता जांचने के लिए शहद की बूंदों को गिलास में डालें,
✨ अगर शहद तली पर बैठ रहा है तो इसका मतलब वो असली है नहीं तो नकली है।
👉🏻7. देसी घी (Ghee)
✨घी में मिलावट की जांच करने के लिए दो चम्मच हाइट्रोक्लोरिक एसिड और दो चम्मच चीनी लें और उसमें एक चम्मच घी मिलाएं।
✨अगर मिश्रण लाल रंग का हो जाता है तो समझ जाइए कि घी में मिलावट है।
👉🏻8. दूध (Milk)
✨दूध में पानी, मिल्क पाउडर, कैमिकल की मिलावट की जाती है।
✨ जांच करने के लिए दूध में उंगली डालकर बाहर निकाल लीजिए।
✨अगर उंगली में दूध चिपकता है तो समझ जाइए दूध शुद्ध है। अगर दूध न चिपके तो मतलब दूध में मिलावट है।
👉🏻9. चाय की पत्ती (Tea)
✨चाय की जांच करने के लिए सफेद कागज को हल्का भिगोकर उस पर चाय के दाने बिखेर दीजिए।
✨ अगर कागज में रंग लग जाए तो समझ जाइए चाय नकली है क्योंकि असली चाय की पत्ती बिना गरम पानी के रंग नहीं छोड़ती।
👉🏻10. कॉफी (Coffee)
✨कॉफी की शुद्धता जांचने के लिए उसे पानी में घोलिए।
✨शुद्ध कॉफी पानी में घुल जाती है, लेकिन अगर घुलने के बाद कॉफी तली में चिपक जाए तो वो नकली है।🙋♂
problems in relationships #बेड_टच_गुड_टच
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यदि आपने गौर किया हो तो देखा होगा घर में छोटे बच्चों में जो लड़की है वो अपने रहन सहन खास तौर पर कपड़ो को लेकर बेहद चौकन्नी होती है।
जिन घरो में छोटी लड़कियों को फ्राक पहनाई जाती है वे अबोध बच्चियाँ जब बैठती है तो बड़े सलीके से अपनी फ्राक को ठीक करके बैठती है जबकि उसी आयु का लड़का कपड़ो को लेकर लापरवाह होता है।
फ्राक ठीक करके बैठना उसे किसीने सिखाया नही पर मर्यादा और लज्जा का गुण उसे जन्मजात मिला होता है जो इस कार्य के लिए उसे प्रेरित करता है। पर आजकल होता यह है की "नारी स्वातन्त्र्य" के मारे माता पिता उसे छोटे और जगह जगह से कटे फटे फैशनेबल डिजाइनर कपडे दिलवा कर उसकी नैसर्गिक लज्जा प्रवत्ति को खत्म कर देते है। जब बाल्यकाल में ही स्पर्श की उसकी नैसर्गिक अनुभूति को क्षीण कर दिया जाएगा तो निश्चित ही किशोरावस्था तक आते आते उसे अस्वीकार्य माने जाने वाला किसी भी तरह का स्पर्श उसको असहजता पैदा नही करेगा।
पहले किसी लड़की के कंधे को हाथ लगाना भी सम्भव नही था, खुली जांघ पर हाथ मारने के परिणाम की तो आप कल्पना भी नही कर सकते। पर चूँकि योजना बद्ध ढंग से इसी तरह के कपड़े फैशन में आ रहे जो ख़ास तौर पर शरीर के इन्ही संवेदन शील हिस्सों को विपरीत लिंगी स्पर्श का मौक़ा देते है जो एक समय बाद लड़की के अंतर्मन में निर्लज्जता की अवस्था को पैदा कर देते है। जब कोई पुरुष किसी स्त्री के वक्ष पर दृष्टिपात करता है तो स्त्री के हाथ यंत्रवत स्वयमेव अपनी साड़ी के पल्लू या चुनरी को ठीक करने के लिए सक्रिय हो जाते है उसके हाथो को ये आदेश उसके अंतर्मन से सीधे प्रसारित होते है उसे इसके लिए सोचने की आवश्यकता नही पड़ती।
अगर आपके घर में गाय या बैल हो तो आपको पता ही होगा की कोई अपरिचित अगर गाय के कंधो या पुट्ठों को छु ले तो वो गुस्सा हो जाती है!
आखिर क्यों ?
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इसीलिए क्योंकि गाय के वे अंग सबसे संवेदनशील और ऊर्जा भरे होते है जो उसके पानीदार होने का प्रमाण देते है। अच्छा होगा की हम नादान बच्चियों को स्कुल में "गुड टच बेड टच" का ज्ञान देकर आत्मसम्मान की रक्षा का पाठ पढ़ाने के बजाय उसे नैसर्गिक रूप से मिले शील लज्जा और मर्यादा के पवित्र भावो को विकसित करने पर ध्यान दें
ताकि विवाहित अवस्था में उसे शीलवती विशेषण के साथ सम्मानजनक जीवन का आनंद मिल सके।
बहू के साथ किए गए व्यवहार-treatment done to daughter-in-law
नई नवेली बहू के साथ किए गए व्यवहार, चाहे अच्छा हो या बुरा बहू या पत्नी जिंदगी भर नहीं भूल पाती.....
भारत में ‘गुरुकुल शिक्षा पद्धति’ - Gurukul education system in India
भारत में ‘गुरुकुल शिक्षा पद्धति’ की बहुत लंबी परंपरा रही है । गुरुकुल में विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे । तपोस्थली में सभा, सम्मेलन और प्रवचन होते थे जबकि परिषद में विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी । गुरु के समीप्य में रहनेवाला विद्यार्थी उनके कुल के सदस्य के समान ही रहता था तथा गुरु भी उससे पुत्रवत स्नेह करते थे । गुरुकुल का विद्यार्थी ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हुए शिक्षा ग्रहण करता था । गुरु की सेवा उसका परम कर्तव्य होता था । उसकी निष्ठा के बदले में गुरु भी प्रत्येक शिष्य पर व्यक्तिगत ध्यान देते थे तथा पूरी लगन के साथ उसे विविध विद्याओं और कलाओं की शिक्षा प्रदान करते थे ।
प्राचीन मनीषियों ने गुरु के साथ विद्यार्थी के सानिध्य को समझा और गुरुकुल पद्धति पर बल दिया । गुरु के चरित्र तथा आचरण का विद्यार्थी के मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता था तथा वह उसका अनुकरण करता था । पारिवारिक वातावरण से दूर रहने के कारण उसमें आत्मनिर्भरता विकसित होती थी तथा वह संसार की गतिविधियों से अधिक अच्छा ज्ञान प्राप्त करता था । उससे आत्मानुशासन की प्रवृत्ति का भी विकास होता था । महाभारत में गुरुकुल शिक्षा को गृहशिक्षा से अधिक प्रशंसनीय बताया गया है ।
प्राचीन भारत में शिक्षा पद्धति की सफलता का मुख्य आधार गुरुकुल ही थे जो किसी न किसी महान तपधारी ऋषि की तपोभूमि तथा विद्यार्जन के स्थल थे । प्राचीन काल में गुरुकुल और समाज के मध्य पृथक्करण नहीं था जिसके कारण से तत्कालीन समाज में इस शिक्षा प्रणाली तथा गुरुजनों के प्रति अगाध श्रद्धा थी । गुरु का कार्यक्षेत्र केवल गुरुकुल तक ही सीमित नहीं था अपितु उनके तेजोमय ज्ञान का प्रसार राष्ट्र के सभी क्षेत्रों में था । उनकी विद्वता और उत्तम चरित्र तथा व्यापक मानव सहानुभूति की भावना के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली होती थी । गुरु के आचार-विचार में भेद नहीं होता था । गुरुकुल में प्रवेश पानेवाले शिक्षार्थी के अन्तर्मन में झाँककर गुरु उसकी योग्यता, आवश्यकता एवं कठिनाइयों को भलीभांति समझते थे । गुरुकुलों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में उत्तम मानस का निर्माण करना था । वे विद्यार्थियों में स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति तथा आत्मानुशासन को प्रेरित करते थे । वस्तुतः स्वयं गुरु ही विद्यार्थियों के आदर्श थे जिनसे प्रेरित होकर वे उनका अनुसरण करते थे और संयमी, गम्भीर तथा अनुशासनयुक्त जीवन का निर्माण करते थे । इस कारण से तत्कालीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अत्यन्त प्रशंसनीय और आदरयुक्त थी ।
प्राचीन काल में धौम्य, च्यवन ऋषि, द्रोणाचार्य, सांदीपनि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, गौतम, भारद्वाज आदि ऋषियों के आश्रम प्रसिद्ध रहे । बौद्धकाल में बुद्ध, महावीर और शंकराचार्य की परंपरा से जुड़े गुरुकुल जगप्रसिद्ध थे, जहाँ विश्वभर से मुमुक्षु ज्ञान प्राप्त करने आते थे और जहाँ गणित, ज्योतिष, खगोल, विज्ञान, भौतिक आदि सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी । प्रत्येक गुरुकुल अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध था । कोई धनुर्विद्या सिखाने में कुशल था तो कोई वैदिक ज्ञान देने में, कोई अस्त्र-शस्त्र सिखाने में तो कोई ज्योतिष और खगोल विज्ञान की शिक्षा देने में दक्ष था ।
वेद से प्रारम्भ होकर पुराणोतिहास पर्यन्त भारतीय तत्व चिन्तन चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) पर ही आश्रित दृष्टिगोचर होता है । भारत का समग्र प्राचीन चिन्तन क्रम मानवीय कर्तव्यों तथा उसकी आवश्यकताओं की आध्यात्मिक व्याख्या ही प्रतीत होता है । यह आध्यात्मिकता चार पुरुषार्थों और उसमें भी चरम पुरुषार्थ अर्थात् मोक्ष को ही पाने के लिए उद्वत दिखाई देती है । भारतीय संस्कृति में कहा गया है – सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वही है जो हमें सब बन्धनों से मुक्त कर दे । वस्तुतः मोक्ष की प्राप्ति ही भारतीय जीवन पद्धति की सहज अवधारणा मानी जा सकती है । पौराणिक युग की शिक्षा में यह अवधारणा मानव मात्र के लिए है । किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित अथवा प्रतिबन्धित नहीं दिखाई देती ।
गुरुकुल का अर्थ
गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है। प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था। गुरुकुल के छात्रों को लिए आठ साल का होना अनिवार्य था और पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।
अहम विशेषताएं (Salient Features)
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अपनी खूबियों के चलते वर्षों से दुनिया को प्रेरित कर रही है। इस सेक्शन में इस शिक्षा प्रणाली की खासियतों और काम करने के तरीके के बारे में भी बताया गया है।
शिक्षा संस्कृति और धर्म से प्रभावित थी जो प्राचीन भारतीय समाज के अहम तत्व थे।
प्रोफेशनल, सोशल, धार्मिक और अध्यात्मिक शिक्षा पर फोकस करते हुए इसमें समग्र (Holistic) शिक्षा पर जोर दिया जाता था।
गुरुकुल में चुने जाने का आधार बच्चों का ऐटिट्यूड यानी रवैया और मॉरल स्ट्रैंथ यानी नैतिक मजबूती थे जो छात्रों के कंडक्ट या आचरण में नजर आते थे
कला, साहित्य, शास्त्र और दर्शन की जानकारी के साथ छात्रों को व्यावहारिक हुनर भी सिखाए जाते थे और उन्हें अलग-अलग कामों के लिए तैयार किया जाता था।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से छात्र का पूरी तरह से विकास होता था और जोर शिक्षण के साइकोलॉजिकल या मनोवैज्ञानिक तरीके पर होता था।
गुरुकुल शिक्षा के उद्देश्य
Gurukul Education System कई उद्देश्य पर आधारित थी। यहाँ का मुख्य उद्देश्य ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता है। सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता है। इस शिक्षा प्रणाली से मिले निर्देश छात्रों को अपनी तरह की लाइफ बनाने में मदद करते थे। इस तरह से छात्र को जीवन के कठिन समय में भी खुद को दृढ़ता से खड़े रखने में मदद मिलती थी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के कुछ खास उद्देश्य ये रहे-
सम्पूर्ण विकास (Holistic Development)
व्यक्तित्व विकास (Personality growth)
आध्यात्मिक जाग्रति (Spiritual Awakening)
प्रकृति और समाज के प्रति जागरूकता (Awareness about nature and society)
पीढ़ी-दर पीढ़ी ज्ञान और कल्चर को आगे बढ़ाना (Passing on of knowledge and culture through generations)
जीवन में सेल्फ कंट्रोल और अनुशासन (Self-control and discipline in life)
अनमोल शिक्षा
यहां पर धर्मशास्त्र की पढ़ाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती है। योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है। यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था। उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !
गुरु के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:| अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति क्या थी?
प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति में पढ़ने वाले बच्चों को गुरु के यहां जाना होता था। यहां वो गुरू के यहां रह कर ही अपनी पढ़ाई करते थे। वहां जाने वाले बच्चों की आयु 8 से 10 साल होती थी। विद्यार्थी वहीं रह कर गुरु की आज्ञा का पालन करते थे और उनके दिए निर्देशों के अनुसार अपनी शिक्षा लेते थे। गुरुकुल में बच्चों को दिनचर्या के सभी कार्य करने होते थे।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की अहमियत (Importance of the Gurukul Education System)
तकनीक के लगातार बदलते आयामों के साथ दुनिया ने फॉरमल एजुकेशन (formal educational) की तरफ थोड़ा और आगे बढ़ा है, जो गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से काफी अलग है। इस प्रणाली का भारतीय क्षेत्र पर एकाधिकार हुआ करता था। इस प्रणाली की अहमियत कई गुना ज्यादा थी। इससे मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम बहुत कुछ सीख सकता है। यहां गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की उन खासियतों की लिस्ट दी जा रही है जिनको बिलकुल भी इग्नोर नहीं किया जा सकता है-
प्राकृतिक वातावरण में अहम जानकारी जिसमें सहायक जानकारी दी जाती थी और इसका समाज पर कोई गलत प्रभाव भी नहीं पड़ता था।
एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी (extra-curricular ) जैसे खेल, योग और चहलकदमी पर फोकस जिससे छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता था।
लर्निंग स्किल (learning skills) जैसे क्राफ्ट, डांसिंग या सिंगिंग पर जोर और हर छात्र को उनके पैशन को पहचानने के लिए उत्साहित करना। साथ में उनके स्किल को और विकसित करना।
छात्रों को अपने रोजमर्रा के काम खुद ही करने होते थे, जिसकी वजह से वह आत्मनिर्भर बनते थे। इस तरह से उन्हें जीवन निर्वाह के लिए जरूरी स्किल सीखने में मदद मिलती थी।
पर्सनालिटी डेवलपमेंट, बौद्धिकता और आत्म विश्वास पर काम किया जाता था। छात्र अपने विकास के लिए सोचने की योग्यता भी विकसित कर लेते थे।
Superhit Ghazals By Pankaj Udhas | Chitthi Aai Hai | Halki Halki Si Baarish | Pankaj Udhas Ghazals
Timestamp
00:00:00 - Start
00:00:05 - KISI NE BHI TO NA DEKHA
00:06:08 - CHITTHI AAI HAI
00:13:23 - WOH LADKI JAB GHAR SE
00:19:18 - Kami Hai To Bas Itni
00:26:03 - Zindagi Se Ulajh Ke
00:33:06 - Sab Kuchh Usse Puchha
00:40:45 - Dekhiye Kya Mod Leti
00:45:41 - Halki Halki Si Baarish
00:53:01 - Kami Hai To Bas Itni
00:59:46 - Khuda Mujhko Aise Khudayi Na De
01:04:47 - Zindagi Ka Yahi Fasana Hai
01:09:58 - Shaher Mein Lekin
01:16:18 - Yeh Kiske Chehre Ka Jadoo
01:21:53 - Tumhe Rakha Hai
01:29:13 - Woh Jo Ham Mein Tum Mein
01:34:47 - Yeh Shayaron Ke Naghme Kavion Ki Kalpanayen
#chitthiaaihai
#halkihalkisibarrish
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#pankajudas
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#ghazal2023
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UP Social Media Policy: क्या है यूपी की सोशल मीडिया नीति
₹8 लाख तक कैसे और किसे मिलेगा, क्यों हो रहा विवाद ?
UP Social Media Policy: यूपी सरकार ने प्रदेश में जनकल्याणकारी योजनाओं की उपलब्धियों की जानकारी और उससे होने वाले लाभ को जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से ‘उत्तर प्रदेश डिजिटल मीडिया नीति-2024’ को लागू करने का निर्णय लिया है। फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और यूट्यूब चलाने वाले और इन्फ्लूएंसर्स को उनके सब्सक्राइबर्स या फॉलोअर्स के आधार पर प्रति माह आठ लाख रुपये तक का भुगतान करेगी।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक नई सोशल मीडिया नीति लेकर आई है। बीते मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में उत्तर प्रदेश डिजिटल मीडिया नीति-2024 को मंजूरी दे दी गई। इसमें सोशल मीडिया पर काम करने वाली एजेंसी व फर्म को विज्ञापन की व्यवस्था की गई है।
हालांकि, विपक्ष ने इस नीति पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे ‘तरफदारी के लिए दी जाने वाली भाजपाई घूस’ करार दिया है। वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने नीति को सच को दबाने का एक और तरीका बताया है।
आइये जानते हैं कि यूपी की नई सोशल मीडिया नीति क्या है? इसमें किसे फायदा मिलेगा? विज्ञापन के लिए शर्त क्या रखी गई हैं? विपक्ष इस नीति पर क्या कह रहा? सरकार अपने फैसले पर क्या कह रही ?
यूपी की नई सोशल मीडिया नीति क्या है ?
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में जनकल्याणकारी योजनाओं की उपलब्धियों की जानकारी और उससे होने वाले लाभ को जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से ‘उत्तर प्रदेश डिजिटल मीडिया नीति-2024’ को लागू करने का निर्णय लिया है। 27 अगस्त को हुई कैबिनेट की बैठक में इस नीति को मंजूरी दे दी गई। डिजिटल मीडिया हैंडल्स संचालकों / डिजिटल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को विज्ञापन मान्यता कैसे मिलेगी, इससे जुड़ी प्रक्रिया और मार्गदर्शिका 28 अगस्त को जारी की गई।
इसमें किसे फायदा मिलेगा ?
नई सोशल मीडिया नीति के तहत उत्तर प्रदेश सरकार प्रदे के भीतर और बाहर से संचालित होने वाले डिजिटल मीडिया हैन्डल, पेज, चैनल, अकाउंट होल्डर, संचालक, डिजिटल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स और कन्टेन्ट राइटर या इनसे जुड़ी एजेंसी/फर्म के लिए है। सरकार के कार्यक्रमों और योजनाओं की सूचना और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ डिजिटल माध्यम से लोगों तक पहुंचाने वालों को उत्तर प्रदेश सरकार के विज्ञापन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से जोड़ा जाएगा। फिर इन्हें विभाग में सूचीबद्ध कर नियम के अनुसार विज्ञापन दिया जाएगा।
विज्ञापन पाने के लिए शर्त क्या हैं?
जिन्हें विज्ञापन दिया जाएगा उनका कम से कम दो साल से अस्तित्व में होना जरूरी है। इससे जुड़ा जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराना होगा है।
सूचीबद्धता के लिए आवेदन करते समय पिछले छह महीने की डिजिटल मीडिया एनालिटिक्स रिपोर्ट देनी होगी। इसी आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में डिजिटल मीडिया हैन्डल, पेज, चैनल, अकाउंट होल्डर, संचालक, डिजिटल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स, कन्टेन्ट राइटर या इनसे संबंधित एजेंसी या फर्म को सूचीबद्ध किया जायेगा।
इनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए, इसका शपथ पत्र देना होगा।
इनके पास वीडियो,पोस्ट या कंटेन्ट आदि बनाने के लिए खुद के शूटिंग से जुड़े सभी उपकरण होने चाहिए।
कितने रुपये मिलेंगे ?
राज्य सरकार फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म चलाने वाले और इन्फ्लूएंसर्स को उनके सब्सक्राइबर्स या फॉलोअर्स के आधार पर प्रति माह 8 लाख रुपये तक का भुगतान करेगी। इसके लिए चार अलग-अलग श्रेणियां बांटी गई हैं। एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम के लिए श्रेणीवार अधिकतम भुगतान सीमा क्रमशः ₹ 5 लाख, ₹ 4 लाख, ₹ 3 लाख और ₹ 2 लाख प्रति माह निर्धारित की गई है।
वहीं यूट्यूब पर वीडियो, शॉर्ट्स, पॉडकास्ट के लिए श्रेणीवार अधिकतम भुगतान सीमा क्रमशः ₹ 8 लाख, ₹ 7 लाख, ₹ 6 लाख और ₹ 4 लाख प्रति माह तय की गई है।
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विपक्ष इस नीति पर क्या कह रहा?
तमाम विपक्षी दलों ने इस नीति पर की आलोचना की है। सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा कि ये तरफदारी के लिए दी जाने वाली भाजपाई घूस है। भाजपा भ्रष्टाचार की थाली में झूठ परोस रही है। जनता के टैक्स के पैसे से आत्म प्रचार एक नये तरीके का भ्रष्टाचार है।
वहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने नीति पर की आलोचना करते हुए कहा कि 'तुम दिन को कहो रात तो रात, वरना हवालात' नीति सच को दबाने का एक और तरीका है। क्या भाजपा लोकतंत्र और संविधान को कुचलने से ज्यादा कुछ सोच ही नहीं सकती?
सरकार अपने फैसले पर क्या कह रही?
मंगलवार को यूपी कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्री संजय निषाद ने कहा, ‘सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम के लिए नीति बन रही है। अब उनका विनियमन होगा और उन्हें विज्ञापन भी दिए जाएंगे। बहुत सारी नीतियां बनाई गई हैं।’
इसके अलावा एक बयान में उत्तर प्रदेश सरकार ने डिजिटल मीडिया नीति-2024 के अंतर्गत अभद्र टिप्पणी पर आजीवन कारावास तक की सजा के प्रावधान को भ्रामक सूचना करार दिया है। बयान के अनुसार यूपी सरकार की ओर से डिजिटल मीडिया नीति में ऐसा कोई प्रस्ताव स्वीकृत नहीं किया गया है।
Source : https://www.amarujala.com/india-news/up-social-media-policy-registration-in-hindi-up-social-media-policy-2024-pdf-2024-08-29?pageId=1
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Thursday, August 29, 2024
चरैवेति-चरैवेति, यही तो मंत्र है अपना - Charaiveti-Charaiveti, this is our mantra
चरैवेति-चरैवेति, यही तो मंत्र है अपना ।
नहीं रुकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना ।
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥
हमारी प्रेरणा भास्कर, है जिनका रथ सतत चलता।
युगों से कार्यरत है जो, सनातन है प्रबल ऊर्जा।
गति मेरा धरम है जो, भ्रमण करना भ्रमण करना।
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥१॥
हमारी प्रेरणा माधव, है जिनके मार्ग पर चलना।
सभी हिन्दू सहोदर हैं, ये जन-जन को सभी कहना।
स्मरण उनका करेंगे और, समय दे अधिक जीवन का।
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥२॥
हमारी प्रेरणा भारत, है भूमि की करें पूजा।
सुजल-सुफला सदा स्नेहा, यही तो रूप है उसका।
जिएं माता के कारण हम, करें जीवन सफल अपना।
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥३॥
चरैवेति-चरैवेति, यही तो मंत्र है अपना ।
नहीं रुकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना ।
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥
स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना
स्वयं अब जागकर हमको,जगाना देश है अपना
जगाना देश है अपना, जगाना देश है अपना ॥ध्रु.॥
हमारे देश की मिट्टी हमें प्राणों से प्यारी है
यहीं के अन्न जल वायु परम श्रद्धा हमारी है
स्वभाषा है हमें प्यारी ओ प्यारा देश है अपना ॥1॥
जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना
समय है अब नहीं कोई गहन निद्रा में सोने का
समय है एक होने का न मतभेदों में खोने का
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे वो करना मेल है अपना ॥2॥
जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना
जतन हो संगठित हिंदू सक्रिय भाव भरने का
जगाने राष्ट्र की भक्ति उत्तम कार्य करने का
समुन्नत राष्ट्र हो भारत यही उद्देश्य है अपना ॥3॥
जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना
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मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, जिसमें न कोई हिंदू न कोई मुस्लिम,लेकिन आज लोग मानवता भूल कर एक दूसरे के खून के दुश्मन बने हुए हैं। इसलिए लोगों को मानवता का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि सभी का भला हो सके।
आज काम, क्रोध, मोह-माया विकारों के आवेश में आकर इंसान क्रूर से क्रूर कृत्य करने से नहीं परहेज करता है। गाय माता का वध किया जाता है जो इंसान के पतन का कारण है।
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एकांतिक वार्तालाप / Ekantik Vartalaap / Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
परिवार और मां एक प्रेरणादायक कहानी Family and mother an inspirational story
एक गांव में एक सुखी परिवार रहता था। उस परिवार में तीन भाई और एक बहन थी। उनके मां-बाप उन चारों से बेहद प्यार करते थे मगर बीच वाले बेटे से थोड़ा परेशान थे। बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डॉक्टर बन गया था और छोटा बेटा भी पढ़ लिखकर इंजीनियर बन गया था। मगर बीच वाला बेटा बिल्कुल गंवार और आवारा किस्म का था। कुछ समय बाद उनके दोनो बेटे डॉक्टर और इंजीनियर ने शादी कर ली और महीनों के बाद ही इनकी बेटी का भी एक अच्छे घराने में विवाह हो गया मगर बीच वाला बेटा अभी भी कुंवारा ही था। वह अनपढ़ था और कहीं पर मजदूरी का छोटा सा काम करता था। उसको शादी के लिए कोई भी लड़की नहीं मिल रही थी। उसके मां-बाप उस से बहुत परेशान हो चुके थे। अब जब भी उसकी बहन अपने मायके आती तो वह अपनी डॉक्टर और इंजीनियर दोनों भाइयों से मिलती थी मगर बीच वाले भाई से बहुत कम मिलती थी। क्योंकि वह उसे ज्यादा पैसे नहीं दे पाता था। लेकिन फिर भी वह अपनी बहन से बहुत अधिक प्यार करता था।
कुछ समय बाद उनके पिताजी की बीच वाले बेटे की बिना शादी किए बिना ही मृत्यु हो गई। उनकी मां ने सोचा कहीं अब किसी के मुंह से बंटवारे की बात निकले इसलिए अपने ही गांव में एक सीधी-सादी लड़की से मंझले बेटे की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ? अनपढ़ बेटा मन लगाकर काम करने लगा और पहले से कहीं ज्यादा मेहनत भी करने लगा। अब कोई भी पुराना दोस्त उसको मटरगस्ती के लिए बुलाने आता तो वह मना कर देता। एक दिन उसके डॉक्टर और इंजीनियर भाई ने सोचा कि यह तो गंवार और अनपढ़ है। हम इससे कहीं ज्यादा पैसे कमा लेते हैं। इसलिए अब हमें बंटवारा कर लेना चाहिए। मां के लाख मना करने के बाद भी दोनों बेटों ने बंटवारे की तारीख तय कर दी और उन्होंने अपनी बहन को भी बुला लिया। तभी उनका गंवार भाई कहता है? कि तुम लोग बंटवारा कर लो मुझे जो बचे वो दे देना या ना देना। मैं शाम को आकर अंगूठा लगा दूंगा। तभी उसकी बहन कहती है अरे! बेवकूफ तू तो हमेशा बेवकूफ ही रहेगा। जमीन का हिस्सा तो आमने- सामने बैठकर होता है। और उसकी मां भी उसे काम पर जाने से रोकती है। उसी वक्त वकील भी वहां आ जाता है और कहता है कि आपका सारा हिस्सा मिलाकर 10 बीघा जमीन और एक मकान है। अब यह बताओ किसको कितना हिस्सा देना है मैं उसी हिसाब से कागज बनवा दूंगा। तब गवार भाई कहता है वकील साहब 5-5 बीघा जमीन हमारे दोनों भाइयों के नाम लिख दो और यह हमारा घर है, मेरी प्यारी बहन के नाम कर दो। तब दोनों भाई पूछते हैं कि तू अपने हिस्से में क्या लेगा? गंवार भाई कहता है कि मेरे हिस्से में मेरी प्यारी मां है। वह अपनी पत्नी की तरफ मुस्कुराते हुए कहता है क्यों क्या मैंने गलत कहा। उस गंवार और अनपढ़ की पत्नी अपनी सास से लिपट कर कहती है मां से बड़ी वसीयत क्या होगी मेरे लिए। उसी वक्त उसका गंवार पति भी अपनी मां से लिपट जाता है। गंवार बेटे और बहू के प्यार ने जमीन जायदाद के बंटवारे को एक सन्नाटे में बदल दिया। तभी बहन अपने गंवार भाई के गले लग कर लिपट कर रोते हुए कहती है कि माफ कर दो भैया। मैं आपको सम्मान नहीं दे सकी। तभी उसका भाई कहता है मेरी प्यारी बहन इस घर में जितना अधिकार हमारा है। उतना ही तुम्हारा भी है और रही बात बंटवारे की तो बंटवारा नहीं करने से जीवन खत्म तो नहीं हो जाएगा। क्यों करते हैं हम बंटवारा? क्या हम एक साथ मिलकर नहीं रह सकते। जैसे हम बचपन में मिलकर खेलते रहते थे। एक साथ मिलकर रहने को ही तो कहते हैं एक अच्छा परिवार और उसके परिवार को संभालती है एक मां। तभी उसके दोनों भाई भी बहुत शर्मिंदा होते हैं और वह बंटवारे के सभी कागज फाड़ कर फेंक देते हैं और उस दिन के बाद से उनका पूरा परिवार खुशी खुशी एक साथ रहने लगा।
परिवार में प्रेम कैसे बनाए रखें ? How to maintain love in the family?
हम अच्छी बात को याद नहीं रख सकते हैं तो बुरी बातों भी याद नहीं रखना चाहिए, तभी परिवार में सुख बना रहता है, दो भाइयों के बीच हो गई लड़ाई, घर और व्यापार का बंटवारा हो गया, इसी तरह कई साल बीत गए, तभी एक संत ने भाई को समझाया कि छोटे से मतभेद खत्म कर लेना चाहिए,
घर में प्रेम और सुख बना रहे, इसके लिए परिवार के सभी सदस्यों के बीच आपसी तालमेल होना जरूरी है। छोटी-छोटी बातों की वजह से होने वाले विवादों से आपसी रिश्ते खराब नहीं करना चाहिए। एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक परिवार में दो भाई बड़े प्रेम से रहते थे। दोनों का विवाह साथ में ही हुआ।
विवाह के बाद कुछ दिन तो सब ठीक रहा, लेकिन दोनों भाइयों की पत्नियों की वजह से झगड़े होने लगे। रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर इनके माता-पिता बीमार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। माता-पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों ने घर और व्यापार का बंटवारा कर लिया।
दोनों की दुकानें आसपास ही थी। दोनों भाई रोज अपनी-अपनी दुकान आते, लेकिन एक-दूसरे से बात नहीं करते थे। इसी तरह कई साल निकल गए। छोटे भाई की लड़की का विवाह तय हो गया। उसकी पत्नी ने कहा कि बड़े भाई को भी विवाह में बुलाना चाहिए।
छोटा भाई सभी विवाद भूल कर बड़े भाई को विवाह में आमंत्रित करने गया, लेकिन उसने शादी में आने से मना कर दिया। इस बात से छोटा भाई बहुत दुखी था। तभी उसे मालूम हुआ कि उसका भाई किसी संत के प्रवचन सुनने जाता है। वह भी संत के पहुंच गया और पूरी बात बता दी।
संत ने उससे कहा कि ठीक है, मैं तुम्हारे भाई को समझाने की कोशिश करूंगा। जब बड़ा भाई संत के पास पहुंचा तो संत ने उसे छोटे भाई के यहां विवाह में जाने के लिए कहा। तब बड़े भाई ने कहा कि मैं अपने भाई से नाराज हूं, उसने मुझसे झगड़ा किया था।
तब संत ने उससे कहा कि अच्छा ये बताओ मैंने पिछले सप्ताह सत्संग में कौन सी कथा सुनाई थी। वह व्यक्ति बोला कि गुरुजी आजकल काम बहुत बढ़ गया है। उसके बाद घर की परेशानियां, ऐसे में मुझे पिछले सप्ताह के सत्संग की बातें मैं भूल गया हूं।
संत बोले कि भाई जब तुम अच्छी बातें एक सप्ताह भी याद नहीं रखते हो तो छोटे भाई की बुरी बातों को इतने सालों के बाद भी क्यों नहीं भूल रहे हो। परिवार में अच्छी-बुरी बातें होती रहती हैं, लेकिन अच्छी बातों को याद रखना चाहिए और बुरी बातों को भूल जाना चाहिए। तभी परिवार में प्रेम और सुख बना रहता है।
बड़े भाई को अपनी गलती समझ आ गई। इसके बाद वह संत से आज्ञा लेकर अपने छोटे भाई के घर पहुंचा और दोनों भाइयों के बीच का झगड़ा खत्म हो गया।
Feetured Post
कुंभ का महत्व
भारत के नाट्य शास्त्र में जिन नाटकों के मंचन का उल्लेख मिलता है उनमें 'अमृत मंथन' सर्वप्रथम गिना जाता है। भारतीय नाटक देवासुर-संग्र...