एक दिन रिया और उसकी सहेली नीलम एक कैफे में बैठी थीं, दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी की बातें कर रही थीं। बातचीत के दौरान नीलम ने रिया से पूछा, "तुम्हारे घर में तो हाल ही में खुशखबरी आई थी, बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया?"
रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ भी नहीं, नीलम।"
नीलम का चेहरा थोड़ा हैरानी भरा हो गया। उसने सवाल करते हुए कहा, "क्या यह अच्छी बात है? क्या तुम्हारे पति की नजर में तुम्हारी कोई कीमत नहीं?"
लफ्ज़ों का यह ज़हरीला बम गिरा कर नीलम ने रिया को उसकी सोच और फिक्र में उलझा दिया और फिर कैफे से उठकर चली गई। रिया उस वक्त तो कुछ नहीं बोली, लेकिन नीलम के इन शब्दों ने उसके दिल में एक बवंडर सा खड़ा कर दिया।
शाम को जब रिया का पति, अमित, घर लौटा, उसने देखा कि रिया का चेहरा लटका हुआ था। उसने तुरंत पूछा, "क्या हुआ, रिया? सब ठीक तो है?"
लेकिन रिया ने बात टाल दी और कहा, "कुछ नहीं, बस यूं ही।"
हालांकि, रिया के अंदर नीलम के शब्द गूंज रहे थे। धीरे-धीरे इस असंतोष ने रिया और अमित के बीच दूरी पैदा कर दी। हर छोटी-छोटी बात पर दोनों में झगड़ा होने लगा। एक दिन, जब झगड़ा अपनी चरम सीमा पर पहुंचा, तो दोनों ने एक-दूसरे को कड़वी बातें कह दीं। हालात इस कदर बिगड़ गए कि आखिरकार दोनों का तलाक हो गया।
इस पूरी घटना की शुरुआत उस फिजूल के सवाल से हुई थी, जो नीलम ने बिना सोचे-समझे रिया से पूछा था।
दूसरी ओर, रवि और उसके जिगरी दोस्त सुनील की कहानी है। रवि ने एक दिन सुनील से पूछा, "तुम कहाँ काम करते हो?"
सुनील ने जवाब दिया, "मैं फ्लोरा स्टोर में काम करता हूँ।"
रवि ने हैरानी से कहा, "फ्लोरा स्टोर में? वहां तो तनख्वाह बहुत कम होती होगी। कितनी तनख्वाह मिलती है?"
सुनील ने कहा, "अठारह हजार रुपये मिलते हैं।"
रवि ने फिर तंज कसते हुए कहा, "अरे बस! इतने में तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है, यार?"
सुनील ने गहरी सांस खींचते हुए जवाब दिया, "क्या बताऊँ, रवि।"
रवि की ये बातें सुनील के दिल में घर कर गईं। कुछ दिनों बाद, सुनील अपने काम से बेरूखा हो गया। उसने अपने बॉस से तनख्वाह बढ़ाने की मांग कर दी। लेकिन जब उसकी मांग नहीं मानी गई, तो उसने नौकरी छोड़ दी और बेरोजगार हो गया। अब उसके पास न तो नौकरी थी और न हीं कोई साधन जिससे वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। पहले वह किसी तरह गुजारा कर रहा था, लेकिन अब उसके पास कुछ भी नहीं था। रवि के बिना सोचे-समझे सवाल ने सुनील की जिंदगी में मुश्किलें बढ़ा दीं।
अब हम आते हैं एक और कहानी पर। रामशरण, एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो अकेले रहते थे। उनका बेटा, अजय, जो शहर में नौकरी करता था, कभी-कभी उनसे मिलने आता था। रामशरण अपने बेटे के व्यस्त जीवन को समझते थे और कभी शिकायत नहीं करते थे।
लेकिन एक दिन, उनका एक पुराना दोस्त, मोहन, उनसे मिलने आया और कहा, "तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है। क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही?"
रामशरण ने जवाब दिया, "अरे नहीं, मोहन। अजय बहुत व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है। उसके बीवी-बच्चे भी हैं, उसे वक्त कम मिलता है।"
मोहन ने फिर से तंज करते हुए कहा, "वाह! यह क्या बात हुई? तुमने उसे पाला-पोषा, उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, और अब उसे बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता! यह तो ना मिलने का बहाना है।"
इस बातचीत के बाद, रामशरण के दिल में अजय के प्रति एक शंका पैदा हो गई। जब भी अजय मिलने आता, रामशरण यही सोचते रहते कि उनके बेटे के पास सबके लिए वक्त है, सिवाय उनके।
धीरे-धीरे, इस शंका ने रामशरण और अजय के रिश्ते में एक खटास पैदा कर दी। अजय ने महसूस किया कि उसके पिता अब उससे उतने प्यार से बात नहीं करते, जितना पहले करते थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो उसके पिता अब उससे नाराज रहने लगे हैं।
ये सभी घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि शब्दों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
हम अक्सर सोचते हैं कि हमारे सवाल मासूम हैं और हम बस हालचाल जानने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बिना सोचे-समझे बोले गए ये शब्द किसी की ज़िंदगी में नफरत और शंका का बीज बो सकते हैं।
जैसे-
तुमने यह क्यों नहीं खरीदा?
तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है?
तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे बिता सकते हो?
तुम उसे कैसे मान सकते हो?
इन सवालों का असर हो सकता है, भले ही वे हमें मामूली लगते हों।
आज के समय में हमारे समाज और घरों में जो तनाव बढ़ता जा रहा है, उसकी जड़ में अक्सर ऐसे ही सवाल और बातें होती हैं, जिन्हें हम बिना सोचे-समझे बोल देते हैं।
हमें यह समझना चाहिए कि शब्दों की शक्ति बहुत होती है।
इसलिए, हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि हम दूसरों के जीवन में सकारात्मकता फैलाएं, न कि नकारात्मकता।
लोगों के घरों में जाकर उनकी समस्याओं पर नमक छिड़कने के बजाय, हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम उनकी समस्याओं का समाधान बनें।
याद रखें, जब भी हम किसी के घर जाएं, तो उनकी खुशियों का हिस्सा बनें, न कि उनकी समस्याओं का कारण।
जुबान से निकले शब्द नफरत या मोहब्बत का बीज बो सकते हैं। इसलिए, सोच-समझकर बोलें।
कभी-कभी, अंधे बनकर किसी के घर जाएं और वहां से गूंगे बनकर निकलें।
यह विचार जीवन को सुखद और संबंधों को मजबूत बना सकता है।
No comments:
Post a Comment
Thanks to visit this blog, if you like than join us to get in touch continue. Thank You