जो दिल से कमाई जाती हैं—इंसानियत, प्यार और सम्मान Those earned from the heart – humanity, love and respect

 किशनगढ़ के रईस सेठ, रामदास जी, अपनी ईमानदारी और उदारता के लिए पूरे इलाके में मशहूर थे। उनके घर में कई नौकर काम करते थे, जो उनके परिवार के सदस्य जैसे ही थे। उनमें से एक था शंकर, जो रामदास जी के परिवार और सभी नौकरों के लिए खाना बनाता था। शंकर का स्वभाव शांत और मेहनती था, और वह अपने काम में बहुत निपुण था।

एक दिन, जब रामदास जी अपने भोजन के लिए बैठे, तो उन्होंने देखा कि सब्जी में कुछ अजीब सा स्वाद है। उन्होंने सब्जी चखी तो समझ गए कि शंकर ने गलती से सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी है। परंतु, उन्होंने बिना कुछ कहे बड़े चाव से पूरी सब्जी खा ली। शंकर, जो खाने के दौरान ही रसोई के कामों में व्यस्त था, इस गलती से अनजान था।

खाना खत्म होने के बाद, रामदास जी ने शंकर को अपने पास बुलाया और स्नेह भरे स्वर में पूछा, "शंकर, क्या तुम परेशान हो? तुम्हारे चेहरे पर थकावट झलक रही है। क्या बात है?"

शंकर ने अपने चेहरे पर चिंता की लकीरों को छिपाने की कोशिश की, लेकिन फिर बोला, "सेठ जी, मेरी पत्नी पिछले कई दिनों से बीमार है। रात भर उसकी देखभाल में ही बीत जाती है, इसलिए शायद काम में थोड़ी गलती हो गई।"

रामदास जी ने उसकी स्थिति समझते हुए उसे कुछ पैसे दिए और कहा, "शंकर, तुम अभी घर चले जाओ और अपनी पत्नी की देखभाल करो। जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती, तुम्हें काम पर आने की कोई जरूरत नहीं। और अगर पैसों की जरूरत पड़े, तो बिना संकोच के आकर मुझसे ले जाना।"

शंकर की आँखों में कृतज्ञता के आंसू छलक आए। उसने सेठ जी के चरणों में झुककर धन्यवाद दिया और घर की ओर चल पड़ा।

शंकर के जाने के बाद, रामदास जी की पत्नी, सविता देवी, जो कि सेठानी के नाम से जानी जाती थीं, कुछ चिंतित होकर बोलीं, "आपने उसे अभी क्यों जाने दिया? बाकी लोग अभी तक भूखे हैं, सारा काम पड़ा है।"

रामदास जी मुस्कुराते हुए बोले, "सविता, शंकर की नीयत साफ और दिल बड़ा है। वह अपनी पत्नी की बीमारी के बावजूद एक दिन की छुट्टी भी नहीं ले रहा था, क्योंकि उसे हमारे परिवार की चिंता थी। आज उसने सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी, और मैंने जानबूझकर उसके सामने कुछ नहीं कहा, ताकि उसे अपनी गलती का पता न चले।"

सविता देवी ने आश्चर्य से पूछा, "लेकिन यह तो बहुत छोटी सी गलती है। बाकी लोग जब यह सब्जी खाएंगे तो शंकर का मजाक उड़ाया जाएगा और उसे शर्मिंदगी महसूस होगी। इसलिए मैंने इसे जानवरों को खिला देने का सुझाव दिया और नई सब्जी बनवाने की बात कही।" 

जो दिल से कमाई जाती हैं—इंसानियत, प्यार और सम्मान Those earned from the heart – humanity, love and respect

सविता देवी ने सर हिलाते हुए कहा, "आप भी कमाल करते हैं, रामदास जी। हमारे पास संपत्ति है, सम्मान है, फिर भी आप नौकरों की इतनी चिंता क्यों करते हैं?"

रामदास जी ने अपनी पत्नी के चेहरे पर नजरें टिकाते हुए गहराई से कहा, "सविता, जो कुछ भी हमारे पास है, वह इन लोगों की मेहनत और ईमानदारी का फल है। पैसे और संपत्ति असली संपत्ति नहीं हैं, बल्कि यह रिश्ते और मानवता ही असली धन हैं। जो सम्मान और प्यार हमने इस जीवन में कमाया है, मैं उसे कभी नहीं खोना चाहता।"

सविता देवी ने अपने पति की बातों को ध्यान से सुना और मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिलाया। उन्होंने समझा कि जीवन में सबसे मूल्यवान चीज़ें वे हैं, जो दिल से कमाई जाती हैं—इंसानियत, प्यार और सम्मान। रामदास जी का यह दृष्टिकोण ही उन्हें बाकी लोगों से अलग बनाता था और यही कारण था कि उनके घर के नौकर-चाकर भी उन्हें अपने परिवार के सदस्य जैसा ही मानते थे।

उस दिन सविता देवी ने अपनी आँखों से देखा कि असली धन दौलत नहीं, बल्कि वह प्यार और आदर है, जो जीवन के हर रिश्ते में झलकता है। यही वह संपत्ति थी, जिसे रामदास जी ने सालों से संजोकर रखा था, और वह इसे कभी खोना नहीं चाहते थे।

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