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Saturday, August 24, 2024

असली दौलत गहनों और कपड़ों में नहीं, बल्कि उन रिश्तों में होती है Real wealth is not in jewelry and clothes, but in relationships

 माँ की मृत्यु के बाद घर की फिजा में एक अजीब सी खामोशी पसर गई थी। चारु का मन भारी था, और उसकी आँखों में आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। तेरहवीं की रस्म पूरी हो चुकी थी, और घर में अब केवल माँ की यादें ही बची थीं। चारु ने अपने भाई, अर्जुन, से विदा लेने का मन बनाया। उसके होंठ कांप रहे थे और आँखों से बहते आँसू उसकी बेचैनी को बयान कर रहे थे।

असली दौलत गहनों और कपड़ों में नहीं, बल्कि उन रिश्तों में होती है Real wealth is not in jewelry and clothes, but in relationships

"भैया, सब काम खत्म हो गए, माँ चली गई... अब मैं चलती हूँ," चारु ने नम आवाज में कहा, मानो खुद को समझा रही हो।

अर्जुन, जो खुद भी अपने आंसुओं को छुपाने की कोशिश कर रहा था, ने चारु की ओर देखा। उसने कुछ सोचते हुए कहा, "रुक चारु, अभी एक काम बाकी है... ये ले, माँ की अलमारी की चाभी। तुझे जो सामान चाहिए, तू ले जा।" कहते हुए उसने चाभी चारु के हाथों में थमा दी।

चारु ने एक नजर चाभी पर डाली और फिर भाभी, सुमन, की ओर देखते हुए बोली, "नहीं भाभी, ये आपका हक है। आप ही खोलिए।" चारु ने चाभी सुमन के हाथों में रख दी।

सुमन ने अर्जुन की स्वीकृति पाकर अलमारी खोली। अलमारी के दरवाजे खोलते ही सामने माँ के कीमती गहने और सुंदर कपड़े दिखाई दिए। अर्जुन ने प्यार से कहा, "देख, ये माँ के गहने और कपड़े हैं। तुझे जो चाहिए, ले जा। माँ की चीज़ों पर सबसे ज्यादा हक़ बेटी का होता है।"

चारु ने एक पल के लिए गहनों और कपड़ों की ओर देखा, लेकिन उसके चेहरे पर एक अलग ही भावना उभर आई। वह धीमी आवाज में बोली, "भैया, मैंने तो हमेशा इन गहनों और कपड़ों से कहीं ज्यादा कीमती चीज़ यहाँ देखी है। मुझे वही चाहिए।"

अर्जुन ने हैरान होते हुए पूछा, "चारु, हमने माँ की अलमारी को हाथ भी नहीं लगाया। जो कुछ भी यहाँ है, तेरे सामने है। आखिर किस कीमती चीज़ की बात कर रही है तू?"

चारु ने एक गहरी सांस ली और सुमन की ओर देखते हुए कहा, "भैया, इन गहनों और कपड़ों पर तो भाभी का हक है, क्योंकि उन्होंने माँ की सेवा बहू बनकर नहीं, बल्कि बेटी बनकर की है। मुझे तो वो कीमती चीज़ चाहिए, जो हर बहन और बेटी चाहती है।"

सुमन ने चारु की बात सुनकर उसकी ओर प्यार भरी नजरों से देखा और बोली, "दीदी, मैं समझ गई कि आपको किस चीज़ की चाह है। आप चिंता मत कीजिए, माँ के बाद भी आपका यह मायका हमेशा सलामत रहेगा। लेकिन फिर भी, माँ की कोई निशानी समझकर कुछ तो ले लीजिए।"

चारु की आँखें आंसुओं से भर आईं और वह सुमन के गले लग गई। उसके दिल में सुमन के लिए अपार प्रेम और कृतज्ञता उमड़ आया। चारु ने सिसकते हुए कहा, "भाभी, जब मेरा मायका सलामत है, मेरे भाई और भाभी के रूप में, तो मुझे किसी निशानी की जरूरत नहीं। फिर भी, अगर आप कहती हैं, तो मैं यह हंसते-खेलते मेरे मायके की तस्वीर ले जाना चाहूंगी, जो मुझे हमेशा यह एहसास कराएगी कि भले ही माँ नहीं रही, लेकिन मेरा मायका है।"

चारु ने धीरे से परिवार की तस्वीर उठाई, जिसमें माँ, पिता, अर्जुन, सुमन, और खुद उसकी भी तस्वीर थी। यह तस्वीर उन हंसी-खुशी के पलों की याद दिलाती थी, जो अब केवल यादों में ही बसते थे। उसने एक आखिरी बार अपने भाई और भाभी को गले लगाया और नम आँखों से विदा ली।

जैसे ही वह घर के दरवाजे की ओर बढ़ी, उसके दिल में एक अजीब सा सुकून था। माँ की यादें और अपने भाई-भाभी का प्यार ही उसके लिए सबसे बड़ी विरासत थी। उस दिन चारु ने समझा कि असली दौलत गहनों और कपड़ों में नहीं, बल्कि उन रिश्तों में होती है, जो जीवनभर साथ रहते हैं, चाहे समय कितना भी बदल जाए।

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