कहाँ गए हमारे संस्कार ? Where have our values ​​gone?

 कहाँ गए हमारे संस्कार ?

कहाँ गए हमारे संस्कार ? Where have our values ​​gone?


1. गाने और मनोरंजन की बदलती परिभाषा:

पहले के समय में, जब गानों का चयन सोच-समझकर किया जाता था, कुछ पुरुष रात के अंधेरे में छिपकर उन गीतों को सुनते थे, जिनमें अश्लीलता का अंश होता था। ये गाने आमतौर पर कोठों पर सुने जाते थे और समाज से छिपाए जाते थे। लेकिन आज, वह समय नहीं रहा। आज के दौर में, वही गाने जिन्हें 'आइटम सॉन्ग्स' का नाम दिया गया है, खुलेआम हमारे घरों में बजते हैं, और बहन-बेटियों के साथ मिलकर इन्हें सुना जाता है। यही नहीं, समारोहों में इन्हीं गानों पर उत्तेजक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं, जो कभी शर्मनाक समझे जाते थे, अब वह सामाजिक समारोहों का हिस्सा बन गए हैं।

2. आइटम सॉन्ग्स और अभिनेत्री का बदलता मापदंड:

पहले के दौर में, जो अभिनेत्रियाँ आइटम सॉन्ग्स करती थीं, उन्हें बी-ग्रेड की अभिनेत्री माना जाता था। समाज में उनकी जगह सीमित होती थी। लेकिन आज, वही अभिनेत्रियाँ जो कभी बी-ग्रेड में गिनी जाती थीं, अब ए-ग्रेड में शामिल होती हैं। ये अभिनेत्रियाँ आज अपनी अश्लील हरकतों को पर्दे पर प्रस्तुत करके अपनी कला का प्रदर्शन करती हैं और पुरस्कार तक जीतती हैं। यह परिवर्तन सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज के सोचने के तरीके में भी देखा जा सकता है।

3. रतिचित्रित फिल्मों और अभिनेत्रियों का उदय:

पहले, रतिचित्रित फिल्मों की अभिनेत्रियों को समाज में घृणा की नजर से देखा जाता था। उनकी प्रतिष्ठा का स्तर बहुत निम्न माना जाता था। लेकिन आज, भारत के जाने-माने निर्देशक इन अभिनेत्रियों को अपनी फिल्मों में ब्रेक देते हैं। इस वजह से, भारतीय अभिनेत्रियों और किशोरियों के लिए फिल्मों में प्रवेश का एक नया मार्ग खुल गया है। यह परिवर्तन इतना व्यापक हो चुका है कि अब उन्हें टीवी शो, सीरियल, और अन्य मनोरंजन माध्यमों में भी स्थान दिया जा रहा है। ऐसे बदलाव से समाज में एक नई दिशा उत्पन्न हो रही है, जिसमें यह कहना मुश्किल हो गया है कि क्या सही है और क्या गलत।

4. शराब, गाली और जुआ:

पहले, शराब पीना, गाली देना और जुआ खेलना जैसी आदतों को समाज में बहुत नीच और अपमानजनक कृत्य माना जाता था। लोग इन आदतों से दूर रहते थे और इन्हें समाज में स्वीकार्यता नहीं मिलती थी। लेकिन आज, समाज का यह दृष्टिकोण पूरी तरह बदल चुका है। अब समारोहों में सरेआम शराब परोसी जाती है, और इसे आधुनिकता का प्रतीक समझा जाता है। महिलाओं का भी इसमें शामिल होना, अब समाज में आम बात हो गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि हमारी नैतिकता और संस्कृति कहाँ जा रही है?

5. माँ की शिक्षा और समाज का प्रभाव:

पहले की माँओं का प्रयास होता था कि उनकी बेटियाँ कभी सार्वजनिक रूप से असहज न महसूस करें। वे अपनी बेटियों को सिखाती थीं कि कैसे अपने आप को ढककर रखा जाए, कैसे आचरण किया जाए। लेकिन आज, वे ही माँएं अपनी बच्चियों को 'ब्यूटी कॉन्टेस्ट' और 'मॉडलिंग' जैसे क्षेत्र में धकेल रही हैं, जहाँ स्विमिंग सूट राउंड जैसी प्रतियोगिताएं होती हैं। इस दौर में, माँओं का यह सोच बदल चुका है कि उनकी बेटियों को सामाजिक मंच पर कैसे प्रस्तुत होना चाहिए। और दुख की बात यह है कि यह बदलाव समाज में गर्व के साथ स्वीकार किया जा रहा है।

6. वेशभूषा और लज्जा का सवाल:

पहले, जब किसी युवती की चुनरी वक्षस्थल से हट जाती थी, तो वह तुरंत असहज महसूस करती थी और उसे ढकने का प्रयास करती थी। यह लज्जा का प्रतीक था। लेकिन आज, सलवार के साथ चुनरी का गायब होना, और शर्ट, टॉप, जीन्स जैसे परिधानों का प्रचलन बढ़ गया है। इस बदलाव ने न सिर्फ हमारे परिधान को, बल्कि हमारे आचरण, स्वभाव और व्यक्तित्व पर भी गहरा प्रभाव डाला है। यह धीमा जहर मार्केट ने समाज के हर हिस्से में फैला दिया है, और हम इसे आधुनिकता का नाम देकर अपनाते जा रहे हैं।

अंत में:

'मॉडर्नाइजेशन' ने सिर्फ 75 वर्षों में हमारी लाखों साल पुरानी संस्कृति को निगल लिया है, और भारत को 'इंडिया' में बदल दिया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय परिवार ही भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। अगर हमें अपनी संस्कृति को बचाना है, तो हमें अपने परिवारों में इसे संरक्षित करना होगा। परिवार के भीतर ही हमें अपने बच्चों को सही संस्कार देना होगा, ताकि हम अपनी संस्कृति को बनाए रख सकें और इसे अगले पीढ़ी तक पहुंचा सकें।

ध्यान रखिए: संस्कार हमारी पहचान हैं। अगर हमने इन्हें खो दिया, तो हम खुद को भी खो देंगे।

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